सोमवार, 13 दिसंबर 2010
इस हमले से कैसे बचें ??
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
सरकारी फाइल और मुआवजे का मरहम

रविवार, 14 नवंबर 2010
एक रि पोस्ट :- काहे का बाल दिवस ??

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बुधवार, 10 नवंबर 2010
कोटक लाइफ इंश्योरेंस कंपनी :- भगवान् बचाए !!!
सवाल यह पैदा होता है जिस कंपनी के बन्दे अपने होने वाले ग्राहकों से किस मुद्दे पर असहमति होने पर ऐसा बर्ताव करते हो ....वह किसी ग्राहक को उसका पैसा लौटते समय क्या करते होंगे ???
खैर इस बदतमीजी देख सोचा कि इस मामले में कुछ तो जरूर किया जाना चाहिए .... नंबर को दोबारा जांचा तो पाया कि नंबर Reliance का है और दिल्ली का है .... हमारा नंबर भी Reliance का ही है और पोस्टपैड है सो तुरंत ही कस्टमर केयर पर कॉल लगाया और ड्यूटी पर मौजूद श्री अल्तमश जी से बात कर उनको पूरी बात बताई .... उन्होंने हमसे वह नंबर माँगा जिस से कॉल आई थी ... 011-32319222 नंबर दे दिया गया तो इस बात कि पुष्टि हुयी कि नंबर Reliance का ही है | श्री अल्तमश ने भी इस बात की पुष्टि की कि अगर आपका नंबर NATIONAL DO NOT DISTURB REGISTRY में रजिस्टर किया जा चूका है तो उस पर कोई भी Sales Call वर्जित है !
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सच यह है कि सरकार ने नियम तो बना दिया पर उसको सही तरीके से अमल में नहीं ला पा रही है ! और यह कंपनीयां इस का फायेदा उठा रही है और आम आदमी उनको झेलने के लिए मजबूर है !
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शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
ओबामा बच्चो के साथ मनायेगे दिवाली !!
यह दिवाली आपकी ज़िन्दगी खुशियों से भरी हो,
दुनिया उजालो से रोशन हो, घर पर माँ लक्ष्मी का आगमन हो!
शुभ दीपावली!
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गुरुवार, 4 नवंबर 2010
त्योहारी बाजार और लुभावनी स्कीमों का सच

कई सालों बाद वर्ष 2010 ऐसा साल आया है, जब मानसून की भरपूर मेहरबानी हुई है। देश के सभी बांध पानी से लबालब हैं। खरीफ की फसल में तमाम नुकसान के बावजूद इस साल पिछले कई सालों के मुकाबले इजाफा हुआ है और रबी की बुआई का रकबा पांच से सात फीसदी तक बढ़ गया है।
प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार डा. सी रंगराजन ने अनुमान व्यक्त किया है कि इस साल रबी की फसल में भारी इजाफे से कृषि के क्षेत्र में विकास की दर 4.5 फीसदी के आसपास रहेगी।
ये तमाम अनुकूल स्थितियां हैं, जिनकी वजह से इस बार त्योहारी बाजार में पिछले कुछ सालों के मुकाबले कहीं ज्यादा रौनक दिख रही है। 2009 औैर इसके पहले 2008 में भी हालांकि हमारी अर्थव्यवस्था की विकास दर छह फीसदी से ऊपर थी, लेकिन पूरी दुनिया में मंदी छाई होने के कारण त्योहारी बाजार में आशंकाओं के बादल मंडरा रहे थे, जिनसे इनकी रंगत फीकी रही, लेकिन अब हिंदुस्तान में तो कारपोरेट सेक्टर से खुशखबरियां आ रही हैं, दुनियावी अर्थव्यवस्था में भी धीरे-धीरे रंग दिखने लगे हैं।
यही कारण है कि इस बार त्योहारी बाजार नवरात्रों से कुछ पहले ही सज गया था और इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय तक पूरे शबाब में आ चुका था। शायद बाजार की नब्ज और ग्राहकों के मूड में दिख रहे सकारात्मक भावों का ही यह असर है कि इस साल त्योहारी बाजार ढेर सारे ऑफर लेकर आया है, जिससे ग्राहक खूब उत्साहित हैं और अपनी खरीददारी की सूची को या तो अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं या दे चुके हैं।
एलजी, सैमसंग, पैनासोनिक, फिलिप्स। लगभग हर कंपनी इस त्योहारी बाजार के लिए कोई न कोई धमाका ऑफर लेकर आई है। सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां ही नहीं, दूसरे उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियां भी ग्राहकों को लुभाने के लिए कई शानदार ऑफर लेकर आई हैं। यहां तक कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में रीयल मार्केट में डेवलपर्स फ्लैटों की कीमत में विशेष त्योहारी खरीददारी छूट देते हुए दो लाख से 15-16 लाख तक की छूट दे रहे हैं।
कई कंपनियां 'पुराना लाओ, नया ले जाओ' जैसी स्कीमों के तहत गिफ्ट और डिस्काउंट ऑफर कर रही हैं, जिससे बाजार में इस बार पिछली बार के मुकाबले 25 से 30 फीसदी ज्यादा बिक्री होने का अनुमान है। दिल्ली के कई शोरूम में विजिट के बाद यह देखने को मिला कि लोगों को पुराने के बदले नए ले जाने की स्कीम काफी लुभा रही है।
दरअसल, ग्राहक आमतौर पर दीवाली जैसे त्योहार के मौके पर घर की साफ-सफाई तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि वह चाहता है कि घर की पुरानी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसें भी नई हो जाएं। इस कारण पुराने के बदले में नया ले जाने का प्रस्ताव ग्राहकों को खूब आकर्षित कर रहा है।
बाजार के सेंटीमेंट अच्छे देखकर उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों ने इस बार समय से काफी पहले ही बाजार को गुलजार कर दिया है। उन्हें लगता है कि उपभोक्ताओं के पास इस साल खरीददारी के लिए इतने पैसे हैं कि वे उनकी उम्मीदों पर हर हाल में खरे उतरेंगे।
यही कारण है कि आश्वस्त बाजार अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए घडि़यां, डीवीडी प्लेयर, जूसर मिक्सर, वाटर प्योरीफायर से लेकर नकद और कैश बैक तक के ऑफर दे रहा है। पैनासोनिक इस त्योहारी शॉपिंग में ग्राहकों को 7,900 रुपये तक के गिफ्ट दे रही है तो कई दूसरी कंपनियों ने तोहफों की धनराशि 10,000 रुपये तक कर दी है, लेकिन यह भी सही है कि इतना बड़ा तोहफा पाने के लिए उसी अनुपात की खरीददारी भी करनी होगी।
एलजी ने इस बार ग्राहकों को 80 करोड़ रुपये तक के तोहफों को देने का मन बनाया है, क्योंकि उसकी बिक्री का अनुमान 4000 करोड़ रुपये से ऊपर का है। सिर्फ एलजी ही नहीं, सभी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों और दूसरे टिकाऊ उपभोक्ता सामग्री बनाने वाली कंपनियों को भरोसा है कि इस बार वह पिछले साल के मुकाबले 30 से 45 फीसदी तक की ज्यादा बिक्री करेंगी। हमेशा की तरह टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, म्यूजिक सिस्टम और ऑटोमोबाइल्स जैसे उपभोक्ता सामानों की बिक्री के इस साल भी ज्यादा रहने की उम्मीद है।
कुछ सालों पहले सीआईआई ने एक अध्ययन अनुमान से बताया था कि दीपावली के आसपास त्योहारी मौसम में भारतीय उपभोक्ता बाजार 40 से 50 हजार करोड़ की बिक्री कर लेता है, जो साल दर साल 15 से 20 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। मतलब यह कि अब इसके बढ़कर 55 से 60 हजार करोड़ रुपये हो होने की उम्मीद है।
जिस तरह से पिछले एक दशक से अर्थव्यवस्था में एक निरंतर वृद्धि जारी है, उसी तरह से पिछले एक दशक में उपभोक्ता बाजार में बिक्री का ग्राफ भी 15 से 20 फीसदी सालाना की दर से बढ़ा है और उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति में 25 से 30 फीसदी का उछाल आया है। लब्बोलुआब यह कि बढ़ी हुई बिक्री के बावजूद उपभोक्ता अभी भी ठोस बने हुए हैं।
हाल के सालों में टीवी, फ्रिज, एयरकंडीशनर, वैक्यूम क्लीनर, वाटर प्यूरोफायर, माइक्रोओवन, कंप्यूटर, होम थिएटर, लैपटॉप तथा ऑटोमोबाइल्स विशेषकर कारें और दुपहिया वाहन फेस्टिव सीजन में खरीददारों की खास पसंद बने हुए हैं। इन उत्पादों की बिक्री बाजार में होने वाले कुल कारोबार में 60 से 65 फीसदी तक की हिस्सेदारी रखती है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले एक दशक से इन उत्पादों का बाजार बिक्री के मामले में शीर्ष स्थान हासिल किए हुए है और अगले कई सालों तक बिक्री के लिहाज से शीर्ष में इन्हीं उत्पादों का कब्जा रहेगा।
यों तो हर कोई जानता है कि लुभावनी स्कीमों के पीछे ग्राहकों का भला नहीं, कंपनियों का अपना फायदा छिपा होता है। उनकी स्कीमें एक तरह से लुभावना जाल होती हैं, जो ग्राहकों को न सिर्फ खरीददारी के लिए फांसती हैं, बल्कि जरूरत न होने पर भी बाजार ग्राहकों का कुछ इस तरह से माइंड वॉश करता है कि माहौल के सुरूर में ही उपभोक्ता तमाम गैर जरूरी खरीददारी कर लेता है।
इस तरह देखा जाए तो स्कीमें ग्राहक को फांसने, उन्हें येन-केन प्रकारेण उत्पादों को बेचने का जरिया होती हैं। यही इनका एक मात्र मकसद भी होता है। बावजूद इसके आधुनिक अर्थशास्त्र में ऐसी स्कीमों की बिक्री की बढ़ोतरी में जबरदस्त हाथ होता है। इसलिए अगर त्योहारी बाजार में स्कीमों की बौछार हो रही हो तो इसके मकसद साफ हैं, ग्राहक को हर हाल में शिकार बनाना है।
खरीददारों का नया सलाहकार बन गया है इंटरनेट
इंटरनेट के जितने भी उपयोग दिखने में आएं, उतने कम हैं। दरअसल, इंटरनेट अब लगभग हर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है और हर किसी की जरूरत का जरूरी हिस्सा बन चुका है। यही कारण है कि त्योहारी खरीददारी में भी इंटरनेट की हाल के सालों में जबरदस्त भूमिका उभरकर सामने आई है।
इंटरनेट आज त्योहारी खरीददारों का ही नहीं, बल्कि हर मौसम और माहौल के खरीददारों का अच्छा खासा सलाहकार बन चुका है। फिर चाहे ऐसे खरीददार किसी भी उम्र समूह के हों। हां, यह बात जरूर है कि इंटरनेट के सबसे ज्यादा दीवाने और उस पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले युवा हैं। आज की तारीख में युवा जो कुछ भी खरीदते हैं, पहले उस उत्पाद को इंटरनेट में सर्च करते हैं और फिर ऑनलाइन ही बाजार में मौजूद वैसे ही तमाम उत्पादों की जांच-परख करते हैं। जो उत्पाद ज्यादा किफायती और ज्यादा बेहतर लगता है, उसे खरीदते हैं यानी अब युवा उपभोक्ताओं के खरीददारी की मन: स्थिति को तय करने में इंटरनेट की काफी बड़ी भूमिका है।
यही कारण है कि आज कंपनियां न सिर्फ इंटरनेट में ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन देने लगी हैं, बल्कि सभी कंपनियां खुद की वेबसाइटें प्राथमिकता के स्तर पर बनाती हैं ताकि इस वजह से उनकी बिक्री में किसी तरह की कमी न होने पाए। इंटरनेट ने जहां एक तरफ ग्राहकों के लिए एक जैसी विभिन्न उत्पादों की जांच-परख का मौका मुहैया कराया है, वहीं दूसरी तरफ वह उन्हें दुनिया के बाजारों तक भी ले गया है, जिससे ग्राहकों का भी फायदा हुआ है और उत्पादन जगत का भी। यही कारण है कि इंटरनेट की दोनों ही क्षेत्रों से खूब निभ रही है।
त्योहारी बाजार का मक्का क्यों बनी है दीवाली
आमतौर पर देखने में आता है कि जो लोग शॉपिंग में जरा भी रुचि नहीं रखते, दीवाली आते ही उन्हें भी शॉपिंगमेनिया घेर लेता है। अपने आगोश में ले लेता है। दरअसल, देश में तकरीबन दो करोड़ लोग संगठित क्षेत्र में नौकरी करते हैं और इस समय सात से नौ लाख तक लोग विभिन्न तरह की बहुराष्ट्रीय कंपनियों, निगमों आदि में काम करते हैं। इसके अलावा देश के छह से सात करोड़ लोग निजी क्षेत्र में काम करते हैं। इन सब लोगों को आमतौर पर वेतन वृद्धि का बकाया और बोनस दीवाली के मौके पर ही दिया जाता है।
देश का अधिकृत वित्तीय वर्ष भले अप्रैल माह से शुरू होता हो, लेकिन पारंपरिक वित्तीय वर्ष दीवाली से ही शुरू होता है। कुल मिलाकर देश का जॉब सेक्टर दीवाली के आसपास बाजार में खरीददारी के लिए उपभोक्ताओं के पास 90,000 से 1,00,000 करोड़ रुपये तक की नकदी मुहैया कराता है। इतने बड़े पैमाने पर बाजार में आने वाली यह नकदी बाजार का कायाकल्प कर देती है। तभी तो कई दुकानदार पूरे साल दीवाली के इंतजार में बिताते हैं। दीवाली के आसपास बाजार का न सिर्फ मुनाफा 20 से 40 फीसदी तक बढ़ जाता है, बल्कि बाजार की फ्रीक्वेंसी और बिक्री का वैल्यूम 400 से 600 फीसदी तक बढ़ जाता है। मीडिया और दूसरे संचार क्षेत्र वर्षा ऋतु जाते ही और त्योहारी मौसम के आहट देते ही इस किस्म का माहौल रच देते हैं कि उपभोक्ताओं में खरीददारी का एक जुनून पैदा हो जाता है।
नवरात्र के पहले ही उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियां अपने आकर्षक विज्ञापनों से बाजार को भर देती हैं। जिससे लोगों में उन उत्पादों की जरूरत न होने पर भी उनके खरीदने की लालसा कुलांचे भरने लगती है।
आलेख :- वीना सुखीजा
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अब यह आप को सोचना है कि आप बाज़ार की इस चाल में बाकी सब की तरह ही भेड़ चाल चलने वाले है या सच में एक जागरूक ग्राहक की तरह सिर्फ़ वही चीज़ बाज़ार से लेने जायेगे जिस की आपको सच में जरूरत है !
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जागो सोने वालो...
बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
रिश्वत मांगे अधिकारी तो एक फोन लगाएं

सरकारी बाबू द्वारा सताए गए लोगों को टोल फ्री नंबर 1800-11-0180 और 011-24651000 पर अपनी शिकायत दर्ज करानी होगी। सीवीसी के एक अधिकारी के मुताबिक यह सेवा उन लोगों के लिए फायदेमंद होगी जो किसी सरकारी विभाग के कर्मचारियों की रिश्वत की मांग के कारण अपने काम में अनावश्यक देरी से संबंधित समस्या का सामना कर रहे हैं। अधिकारी ने इस नई सेवा के बारे में कहा, 'कोई शिकायतकर्ता हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर सकता है और उसके साथ हुए अन्याय या उत्पीड़न की शिकायत कर सकता है। वह संबंधित विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी [सीवीओ] से भी सीधे संपर्क कर सकता है। सीवीओ फोन करने वाले व्यक्ति से सभी जानकारी लेंगे और पता लगाएंगे कि उसकी समस्या जायज है या नहीं। मामले के अनुसार जरूरी कार्रवाई की जाएगी।
अधिकारी ने कहा कि इस हेल्पलाइन का प्रारंभिक मकसद भ्रष्टाचार पर रोकथाम के अलावा बिना बाधा के लोगों का काम पूरा कराना है। उन्होंने बताया कि लोग केंद्र सरकार द्वारा संचालित विभागों और सार्वजनिक उपक्रम में रिश्वतखोरी व अन्य समस्याओं से संबंधित शिकायतें इस हेल्पलाइन में दर्ज करा सकते हैं। यह हेल्पलाइन सोमवार से शुक्रवार तक सुबह दस बजे से शाम सात बजे के बीच संचालित होगी।
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अब सब सुधर जाओ ....लेने वालो भी और देने वालो भी ......मालूम है इस हेल्पलाइन को पूरी तरह से लागू होने में थोडा समय लगेगा पर मान लो एक बार यह सही तरह से चल पड़ी तो फिर आप लोगो का क्या होगा ?? सिर्फ़ एक फोन और काम चालू ....सोचो.....सोचो ......अपने को तो बहुत मज़ा आ रहा है !!!
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जागो सोने वालो ...
रविवार, 24 अक्टूबर 2010
पर्यावरण पर आलेख प्रतियोगिता

यहाँ मैं उनकी पोस्ट का लिंक दे रहा हूँ साथ साथ पूरी पोस्ट भी दे रहा हूँ ताकि आप सब भी उनके इस सराहनीय प्रयास के बारे में जान सकें !
मित्रों, पर्यावरण प्रदूषण के कारण बहुत सारी समस्याएं हमें घेरती जा रही हैं, नित नए रोग जन्म लेते जा रहे जा रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो निरोग हो। हमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन के प्रति सचेत होना पड़ेगा। पूरे विश्व में इस दिशा में बहुत कार्य हो रहे हैं। इससे बचने के लिए हमारा जागरुक होना अत्यावश्यक है। विगत कई दिनों मैं बच्चों के बीच पर्यावरण के प्रति जागरुक का संदेश देने वाले कार्यक्रमों में गया,तब मेरे मन में आया की ब्लॉग जगत में एक आलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए क्योंकि हमारे ब्लॉग जगत में धुरंधर लिक्खाड़ों और विद्वानों की कमी नहीं है। इसलिए हम एक आलेख प्रतियोगिता आयोजन करने जा रहे हैं। जिसमें नगद पुरस्कार दिए जाएगें और उन्हे समारोह पूर्वक सम्मानित भी किया जाएगा। यह आयोजन यहाँ होगा। जहाँ नियमित स्वीकृत आलेखों का प्रकाशन होगा। संभव हुआ तो सार्थक टिप्प्णीकारों के लिए भी पुरस्कार की व्यवस्था की जाएगी। बाकी जानकारी अगली पोस्ट में दी जाएगी।
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जागो सोने वालो ...
बुधवार, 29 सितंबर 2010
शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी का अंतिम पत्र
वैसे इस सवाल का जवाब भी है मेरे पास .......जी हाँ ठीक इसी तरह ........बिलकुल इसी तरह से हम सब भी भुला दिए जाने वाले है !! अरे जब बड़े बड़े कारनामे करने वाले वीरो को हम लोग ने भुला दिया तो फिर हमारी तो औकात ही क्या है ?? क्यों कर याद रखा जाए हम लोगो को ......ऐसा क्या कर रहे है हम किसी के लिए भी जो हमे याद रखा जाए ??
आइये एक ख़त पढवाता हूँ आप सब को .....
“साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है – इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
आपका साथी,
भगत सिंह ”
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रविवार, 26 सितंबर 2010
सिर्फ़ २ बाते .... आपसे !!
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान !
बाहर खड़ा देवता सब से मांगे दान !
शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
ब्लॉग का जन्मदिन और ५० वी पोस्ट की गिफ्ट !!
बुधवार, 8 सितंबर 2010
मैनपुरी में कम्प्यूटर शिक्षा :- खुद फर्जी और बांट रहे असली ज्ञान - प्रशासन बेखबर , छात्र हैरान !!
रविवार, 29 अगस्त 2010
मेजर ध्यानचंद को भी मिले भारत रत्न !!

हाकी के जादूगर ध्यानचंद की उपलब्धियों को पेले, माराडोना और डान ब्रैडमेन के समकक्ष बताते हुए पूर्व दिग्गजों ने उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिए जाने की मांग की है। उनका यह भी कहना है कि भारतीय हाकी की सुध लेकर ही इस महान खिलाड़ी को सच्ची श्रृद्धांजलि दी जा सकती है।
बुधवार, 18 अगस्त 2010
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस :- साजिशो के दरमियाँ - कल भी और आज भी !!
मैं उन लोगो में से हूँ जो यह मानते है कि आज़ादी केवल किसी ' एक ' के कारण नहीं मिली और ना ही अहिंसा से मिली है बल्कि पूरे भारत की जनता की कोशिशो और खुनी बलिदानों का नतीजा है !
एक रिपोस्ट :- नेताजी की मृत्यु १८ अगस्त १९४५ के दिन किसी विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।
यहाँ आप सब के लिए एक और पोस्ट का भी लिंक दे रहा हूँ जिस में एक ऐसा चित्र है जो आप सब को चौंका देगा !!
नाज़-ए-हिन्द सुभाष की विशेष कड़ी: नेहरूजी के पार्थिव शरीर के पास खड़ा यह भिक्षु कौन है?
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अब फैसला ..............आप सब पर छोड़ता हूँ .......
जागो सोने वालो ...
रविवार, 15 अगस्त 2010
हमें नाज़ है आप सब पर !!
सोमवार, 26 जुलाई 2010
विजय दिवस पर विशेष :- नहीं भुलने चाहिए कारगिल युद्ध के सबक
गुरुवार, 22 जुलाई 2010
एक सवाल - क्यों कहें हम इन्हें माननीय?
इन्हें हम माननीय कहते हैं। कहें भी क्यों न, ये सरकार के समक्ष जनता का प्रतिनिधित्व जो करते हैं। जनता और सरकार के बीच एक मजबूत कड़ी बनकर आम आदमी के लिए काम करते हैं। इनके हर कदम सराहनीय और अनुकरणीय होते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से हमारे सांसदों और विधायकों की जो छवि सामने आई है, क्या वह इनके माननीय होने पर सवालिया निशान नहीं लगाती ??
कभी सदन में माइक उखाड़ना तो कभी कुर्सी-मेजें तोड़ना। कई बार तो आपस में हाथापाई कर इन लोगों ने सदन को अखाड़ा तक बना डाला। बुधवार को तो हद ही हो गई। बिहार के कुछ माननीयों ने तो स्पीकर पर चप्पल तक फेक दिया। अब प्रश्न यह उठता है कि शर्मसार करने वाली इस घटना के बाद कोई भला इन्हें माननीय क्यों कहे...??
बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और गोवा में जो पॉलिटिकल 'ड्रामा' चल रहा है, उसे राष्ट्रीय स्तर पर सदन में अक्सर चलने वाले 'नाटक' से जोड़ कर देखा जा सकता है। देश की सबसे बड़ी पंचायत में होने वाले हंगामे से राज्य स्तर पर भी नेता खूब 'प्रेरणा' लेते हैं। जनता के प्रति जवाबदेह इन नेताओं की ऐसी करतूत से उनका भले ही कुछ न बिगड़े लेकिन गरीबी, महंगाई की मारी जनता की गाढ़ी कमाई जरूर पानी में बह रही है।
रुपए की बर्बादी
एक संस्था द्वारा कराए गए अध्ययन के आकड़े बताते हैं कि संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर 25,000 रुपये से भी ज्यादा [यानी एक घटे में 15 लाख रुपये] खर्च होते हैं. इस बार की बात करें तो बजट सेशन 385 घंटे का तय हुआ था। इनमें से लोकसभा में 70 घंटे [निर्धारित घंटों का 36%] बर्बाद हुआ। वहीं राज्यसभा की बात करें तो लगभग 45 घंटे यानी निर्धारित घंटों का 28% समय बेकार गया। लोकसभा में 138 घंटे और राज्यसभा में 130 घंटे को इस्तमाल किया गया। इस तरह इस सत्र में कुछ 117 घंटों का समय माननीयों के व्यवधान के कारण बर्बाद हो गया। अध्ययन के मुताबिक इस दौरान लगभग 18 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। एक अनुमान के मुताबिक विधानसभाओं के मामले में भी काफी अधिक खर्च आता है। यानी भ्रष्टाचार के विरोध के नाम पर नाटक करने वाले केवल कुछ विधायकों की करतूत के चलते जनता के करोड़ों रुपये पानी में गए।
जनता बदहाल
यह हाल उस देश के सांसदों का है, जहा के लोगों की प्रति व्यक्ति सालाना आमदनी 38000 रुपये है। जिस बिहार में यह ड्रामा चल रहा है, वहा लोगों की प्रति व्यक्ति सालना आय तो 10000 रुपये से भी कम है।
माल-ए-मुफ्त
सासद-विधायक हंगामा करके ही जनता के पैसे में आग नहीं लगाते हैं, वे उनके पैसे खर्च करने में भी ज्यादा दिमाग नहीं लगाते, ताकि पैसे का अधिकतम सदुपयोग हो सके। संसद में बजट से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए दिए जाने वाले समय का औसत वर्ष 1952 से 1979 के बीच 23% था। 1980 के बाद के वर्षो में यह औसत 10% पर पहुंच गया है। 2004 में तो वित्त विधेयक बिना चर्चा के पास हो गया।
खुद पर खर्च
जनता का पैसा बिना सोचे-समझे खर्च करने का नतीजा यह रहा कि सासद अपने ऊपर ही खर्च बढ़ाने में खूब आगे रहे। 1993-94 में प्रति सासद सरकारी खर्च 1.58 लाख रुपये बैठता था। दस साल [2003-04] में ही यह आकड़ा 55.34 लाख पर पहुंच गया। यानी 3,400% का इजाफा! इसी अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकाक में 500% और सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह में करीब 900% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। पिछले पाच सालों में भी सासदों पर सरकार का खर्च बढ़ा ही है और अब तो सासद अपनी तनख्वाह 80 हजार रुपये प्रति महीना करवाने वाले हैं। यह हाल तब है जब सदन में उनका काम लगातार घट रहा है। 1980 में सदन का सत्र औसतन 143 दिन चलता था, जो 2001 में 90 दिन पर आ गया था।
अगर आप चौदहवीं लोकसभा से जुड़े इन तथ्यों पर गौर फरमाए तो हकीकत जानकार आश्चर्य में पड़ जाएंगे।
ø 2008 में लोकसभा की बैठक मात्र 46 दिन हुई। इतिहास में सबसे कम लोकसभा की कार्यवाही चलाने में सरकार के 440 करोड़ रुपए खर्च हुए।
ø काम की इतनी हड़बड़ी रही कि 17 मिनट में आठ बिल पारित कर दिए गए वह भी बिना किसी बहस के।
ø राज्यसभा ने भी जल्दबाजी दिखाई और 20 मिनट में तीन बिल निपटा दिए गए।
ø जनता के 56 नुमाइंदों ने पाच साल के पूरे कार्यकाल में संसद में एक सवाल पूछने की भी जहमत नहीं उठाई।
ø 67 सासद ऐसे थे, जिन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में 10 या इससे भी कम सवाल पूछे।
ø इस पर भी पैसे लेकर सवाल पूछने का मामला सामने आ गया और दस सासदों को बर्खास्तगी झेलनी पड़ी।
यह कैसी आजादी
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जागो सोने वालों...
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
आखिर कब तक चलेगा यह सब ??
भारतीय खाद्य निगम [एफसीआई] के हापुड़ डिपो में पंजाब से आई गेहूं की ढाई लाख बोरियां खुले में रखी थी जो रविवार और सोमवार को हुई बरसात में भींगने से खराब हो गई। निगम के हापुड़ डिपो में पंजाब से 13 स्पेशल मालगाड़ियों से लाए गए ढ़ाई लाख गेहूं बोरे खुले में छोड़ दिए गए |
कुछ ऐसी ही खबर गुजरात के वलसाड से भी आ रही है ........ वहाँ भी करोड़ों रुपये का गेहूं बारिश में रखा हुआ है और सरकार चैन से सो रही है !
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कितनी बढ़िया बात है ना ....................जिस देश में जहाँ एक दिन पहले बंद रखा गया था बढती हुयी कीमतों के विरोध में .............उसी देश आज करोड़ों रुपये का गेहूं बारिश से बर्बाद हो गया और अब बात हो रही है इस पर जांच करवाने की !!
आपको क्या लगता है यह पहली बार हुआ है ................ नहीं साहब नहीं ......... पिछले साल भी कोलकाता के खिदिरपुर बंदरगाह में लाखों टन दाल सड़ गई थी |
देखें :-
बंदरगाह में सड़ गई लाखों टन दाल
क्या कर लिया था तब किसी ने जो अब कुछ किया जायेगा ! पर सवाल यह पैदा होता है सरकार कब तक जनता के खून पसीने की कमाई को युही बर्बाद करती रहेगी ??आखिर कब हम लोगो को वह सब मिलेगा जिस का सपना लगातार ६३ सालो से देख रहे है हम ??
कब आखिर कब ???
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जागो सोने वालो...
मंगलवार, 29 जून 2010
अब क्या करोगे, राज भाई ??

ठाकरे अपने करीब 50 पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ गुरुवार को अमित का एडमीशन बैचलर ऑफ मास मीडिया [बीएमएम] के अंग्रेजी माध्यम में कराने के लिए माटुंगा स्थित रुइया कॉलेज पहुंचे थे।
सूत्रों के मुताबिक, 'मराठी को उसका हक दिलाने की बात करने वाले ठाकरे अपने बेटे के साथ सीधे प्रिंसिपल के केबिन में पहुंचे। वह अपने बेटे का एडमीशिन अंग्रेजी माध्यम में चाहते हैं।
उन्होंने बीएमएम में पढ़ाए जाने वाले विषयों के बारे में भी पूछा।' ठाकरे के कॉलेज आने की पुष्टि प्रिंसिपल सुहास पड़नेकर ने भी की। उन्होंने इस सत्र से बीएमएम कोर्स मराठी में शुरू किए जाने की भी बात कही।
ठाकरे की पत्नी शर्मिला का कहना है, 'वे कई कॉलेजों में एडमीशन के लिए जा रहे हैं। लेकिन अमित बीएमएम किस भाषा में पढ़ेगा इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।' इस बीच मनसे के प्रवक्ता ने कहा ठाकरे रुइया कॉलेज एक पिता की हैसियत से गए थे, राजनेता की तरह नहीं |
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हम तो कहीं के नहीं रहे ..................... अब क्या कहेगे "मराठी मानुष" से ? कैसे रोकेगे उत्तर भारतीय लोगो को महाराष्ट्र में आने से और हिंदी में बोलने से ?
"घर को आग लग गयी घर के चिराग से..............."
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देख लिया राज भाई ............हो गए ना आप भी मजबूर ?? भाषा कोई भी बुरी या भली नहीं होती ! धर्मं कोई भी बुरा या भला नहीं होता ! यह तो हमारी सोच का खेल है जो कभी कभी भली चीजो को भी बुरा बना देती है और बुरी को भली ! सो अपनी सोच को बदलो और जागो ..............!!
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जागो सोने वालों ...