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सोमवार, 23 नवंबर 2009

माल हमारा, ऐश करे पाक !!


बेलगाम मंहगाई ने देशवासियों का दम निकाल दिया है। सरकार इस पर काबू पाने में असमर्थ नजर आ रही है। देश में खाद्य पदार्थो की भारी किल्लत है। लाख कोशिशों के बावजूद मंहगाई से त्रस्त लोगों को राहत का रास्ता नहीं सूझ रहा है। इसके बावजूद पाकिस्तान को टमाटर, लहसून समेत कई चीजें आधे दामों पर निर्यात किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय करार के तहत ऐसा करना हमारी मजबूरी है।

भारतीयों को 60 रुपये प्रति किलो [फुटकर] मिलने वाला टमाटर पाकिस्तान को 17 रुपये प्रति किलो की दर से निर्यात किया जा रहा है। इसी तरह देश में लहसुन के लिए सौ रुपये प्रति किलो [फुटकर] अदा करने पड़ते हैं, वहीं पाकिस्तानियों को यही लहसुन महज 35 रुपये किलो ग्राम के हिसाब से भेजा जा रहा है।

इस बीच पाकिस्तान ने फिर भारत से आलू की मांग की है। पाकिस्तान स्थित पेप्सी कंपनी ने 700 टन आलू मांगा है। रविवार को आलू की पहली खेप भेजी गई है।

भारतीय व्यापारी अनिल मेहरा ने बताया कि पाक स्थित पेप्सी कंपनी ने फिर 700 टन आलू मंगवाया है। इसके लिए दो दिन पहले ही उनकी फर्म के साथ करार हुआ है। जबकि पाकिस्तान टमाटर भी फिर से मांग रहा है। टमाटर व लहसुन भारत में मंहगा होने के बावजूद क्यों भेजा जा रहा है। इस सवाल पर मेहरा कहते हैं कि यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मजबूरी है। जो सौदा पहले हो जाता है, उसे उसी समय के रेट में भेजना पड़ता है। भारत की मंडी में तेजी चल रही है। इसके बावजूद करार तोड़ा नहीं जा सकता। इसलिए मुनाफे के चक्कर में घाटा भी उठाना पड़ता है।

रविवार को अटारी सड़क सीमा के रास्ते तीन ट्रक आलू, पांच ट्रक सोयाबीन, दो ट्रक लहसुन, एक ट्रक टमाटर, दो ट्रक हरी मिर्च पाकिस्तान भेजी गई।

अमृतसर चेंबर आफ कार्मस के महासचिव राजेश सेतिया कहते हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार अंतरराष्ट्रीय पैमाने पर होता है। डालर के हिसाब से सारा कारोबार होता है। ऐसे में पहले से करार होने के चलते दाम कम-ज्यादा होने के बावजूद वहाँ भेजना या मंगवाना तो पड़ता ही है

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यह समझ नहीं आता कि कैसे भारत ने हर उस समझोते पर अपनी मोहर लगाई है जिस में पाकिस्तान का फायेदा है ?? एक तरफ़ अपने देश की जनता है जो अपनी दाल - रोटी भी बड़ी मुश्किल से चला पा रही है दूसरी और पाकिस्तान की जनता है जो हमारे देश का खा खा कर हमको ही आँखे दिखाती है ! वैसे अपनी सरकार भी मजबूर है सस्ते में माल दें तो क्या करे ..........?? माल देने की सूरत में वह लोग खाने यहाँ जाते है अपने साथीयों के साथ...........और ऊपर से नखरे इतने कि साहब खायेगे तो 'ताज' या 'ट्रिडेंट' में ही खायेगे कहीं और नहीं और वह भी ज़ोर ज़बरदस्ती से !!

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ठीक है जी मान लो आप उनकी बात .............पर कम से कम हम लोगो को भी कुछ खाने दो ..........कुछ हम को भी सस्ता दिलवा दो ............मान भी जाओ........हमारी तरफ़ कब तक मुंह कर के सोते रहोगे ..................जागो सोने वालों .....................


शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

इतिहास रचने को तैयार नौसेना की दो महिला अफसर


नौसेना की दो महिला अफसर 20 नवंबर को भारत की सशस्त्र सेनाओं के इतिहास का नया अध्याय लिखेंगी। नौसेना के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब दोनों महिला अफसर अपना प्रशिक्षण पूरा कर मोर्चे पर तैनात होंगी।

शार्ट सर्विस कमीशन [एसएससी] के जरिए चुनी गईं सब लेफ्टिनेंट सीमा रानी शर्मा और अंबिका हुडा नौसेना की पहली महिला विमानन पर्यवेक्षक होंगी। इन दोनों को 56 साल पहले गठित नौसेना की विमानन इकाई के मेरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट [एमपीए] दस्ते में पर्यवेक्षक कांबेट अफसर के रूप में तैनात किया जाएगा।

एसएससी में चयन के बाद उन्हें शुरू में भारतीय नौसेना अकादमी में प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद उन्हें यहां आईएनएस गरुण में स्थित आब्जर्वर स्कूल में प्रशिक्षण मिला। अपनी 16 महीने की ट्रेनिंग के दौरान दोनों महिला अफसरों ने डोर्नियर विमान उड़ाने के अलावा विभिन्न तरह का प्रशिक्षण लिया। नौसेना सूत्रों के अनुसार दोनों महिला अफसर विभिन्न हथियार, सेंसर्स व राडार बखूबी संचालित करती हैं और विमान उड़ाने में सक्षम हैं।

20 नवंबर को यहां एक समारोह के बाद दोनों को नौसेना के सामुद्रिक निगरानी स्क्वाड्रन में शामिल कर लिया जाएगा। यह दस्ता देश की सामुद्रिक सीमाओं की निगरानी का काम करता है।

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अब भी जिन साहब को कोई शक हो कि लड़कियां भी लडको के कंधो से कन्धा मिला कर चल सकती है कि नहीं ........................तो साहब एक ही बात कहनी है आपसे ......................जागो सोने वालों .............

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

काहे का बाल दिवस ??


आजादी के छह दशक से अधिक समय गुजरने के बावजूद आज भी देश में सबके लिए शिक्षा एक सपना ही बना हुआ है। देश में भले ही शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने की कवायद जारी है, लेकिन देश की बड़ी आबादी के गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने के मद्देनजर सभी लोगों को साक्षर बनाना अभी भी चुनौती बनी हुई है।

सरकार ने हाल ही में छह से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा प्रदान करने का कानून बनाया है, लेकिन शिक्षाविदों ने इसकी सफलता पर संदेह व्यक्त किया है क्योंकि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जद्दोजहद में लगा हुआ है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के लिए देश में दस लाख अतिरिक्त शिक्षकों की जरूरत पर जोर देते हुए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि और व्यापक शिक्षा के लिए आईसीटी के इस्तेमाल के अलावा शिक्षण के पेशे की गरिमा और मान सम्मान को बहाल करने की आवश्यकता बताई है।

इग्नू के जेंडर एजुकेशन संकाय की निदेशक सविता सिंह ने कहा कि गरीब परिवार में लोग कमाने को शिक्षा से ज्यादा तरजीह देते हैं। उनकी नजर में शिक्षा नहीं बल्कि श्रम कमाई का जरिया है।

सिंह ने कहा, ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के जीवनस्तर में सुधार किए बिना शिक्षा के क्षेत्र में कोई भी नीति या योजना कारगर नहीं हो सकती है बल्कि यह संपन्न वर्ग का साधन बन कर रह जाएगी। आदिवासी बहुल क्षेत्र में नक्सलियों का प्रसार इसकी एक प्रमुख वजह है।

सरकार के प्रयासों के बावजूद प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। इनमें बालिका शिक्षा की स्थिति गंभीर है।

विश्व बैंक की हालिया रपट में भारत में माध्यमिक शिक्षा की उपेक्षा किए जाने पर जोर देते हुए कहा गया है कि इस क्षेत्र में हाल के वर्षो में निवेश में लगातार गिरावट देखने को मिली है।

भारत में माध्यमिक शिक्षा पर विश्व बैंक रपट में माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में निवेश में गिरावट का उल्लेख किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले खर्च का जहां प्राथमिक शिक्षा पर 52 प्रतिशत निवेश होता है वहीं दक्ष मानव संसाधान को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में कुल खर्च का 30 प्रतिशत ही निवेश होता है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के कुल खर्च का 18 प्रतिशत हिस्सा आता है।

भारत में माध्यमिक स्तर पर 14 से 18 वर्ष के बच्चों का कुल नामांकन प्रतिशत 40 फीसदी दर्ज किया गया जो पूर्वी एशिया और लैटिन अमेरिका में वैश्विक प्रतिद्वन्दि्वयों के कुल नामांकन अनुपात से काफी कम है।

भारत से कम प्रति व्यक्ति आय वाले वियतनाम एवं बांग्लादेश जैसे देशों में भी माध्यमिक स्तर पर नामांकन दर अधिक है।

उच्च शिक्षा की स्थिति भी उत्साहव‌र्द्धक नहीं है। फिक्की की ताजा रपट में कहा गया है कि महत्वपूर्ण विकास के बावजूद भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में कई तरह की खामियां हैं जो भविष्य की उम्मीदों के समक्ष चुनौती बन कर खड़ी है।

रपट के अनुसार इन चुनौतियों में प्रमुख उच्च शिक्षा के वित्त पोषण की व्यवस्था, आईसीटी का उपयोग, अनुसंधान, दक्षता उन्नयन और प्रक्रिया के नियमन से जुड़ी हुई है।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन दर की खराब स्थिति को स्वीकार करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि स्कूल जाने वाले 22 करोड़ बच्चों में केवल 2.6 करोड़ बच्चे कालेजों में नामांकन कराते हैं। इस तरह से 19.4 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

सरकार का लक्ष्य उच्च शिक्षा में सकल नामांकन दर को 12 प्रतिशत से बढ़ा कर 2020 तक 30 प्रतिशत करने का है। इन प्रयासों के बावजूद 6।6 करोड़ छात्र ही कालेज स्तर में नामांकन करा पाएंगे, जबकि 15 करोड़ बच्चे कालेज स्तर पर नामांकन नहीं जा पाएंगे।

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क्या एसे ही 'बाल दिवस' मनाया जाएगा ?? मतलब मालूम है किसी नेता को 'बाल दिवस' का .......क्यों मनाया जाता है यह ?? क्या भावना थी 'बाल दिवस' मानाने के पीछे ??? कोई जवाब देगा क्या .............???

शायद आज के भारत में किसी भी नेता के पास इसका कोई जवाब नहीं है !! होगा भी कैसे ?? जो नेता अपने नेताओ को भूल गए वो उनकी बातो को याद रखेगे ...............न.. न ... हो ही नहीं सकता ........टाइम कहाँ है इतना ....और भी काम है .......बड़े आए 'बाल दिवस' मानाने .........कल आ जाना .....मूंछ दिवस के लिए ........तुम सब के सब हो ही ठलुआ ........चलो भागो यहाँ से !! यहाँ अपने लिए टाइम नहीं है और यह आए है 'बाल दिवस' मानाने ??

अच्छा सुनो जब आ ही गए हो तो P.A से मिल लो .......कुछ करवा देते है ........अरे कुछ और नहीं तो बच्चा सब टाफी तो खा ही लेगा .........है कि नहीं ?? अब खुश माना दिए न तुम्हारा 'बाल दिवस' !! अब जाओ बहुत काम बाकी है देश का निबटने को !!

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वैसे यह नेता ठीक कहते है क्या लाभ है 'बाल दिवस' मानाने का ?? जब आज भी हम इन बच्चो को वह माहौल नहीं दे पाये जब यह दो वक्त की रोटी की चिंता त्याग शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर पाए ! 'बाल दिवस' केवल मौज मस्ती के लिए तो नहीं था ........इसका मूल उद्देश तो हर बच्चे तक सब सरकारी सुविधाओ को पहुँचाना था .......कहाँ हो पाया यह आज़ादी के ६२ साल बाद भी ............जागो सोने वालों ............

श्रद्धांजलि देने का नायाब तरीका


ब्रिटेन के एक पूर्व सैनिक ने अफगानिस्तान में मारे गए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने का नायाब तरीका खोजा है। शान क्लार्क अपने शरीर पर अब तक अफगानिस्तान में मारे गए 223 सैनिकों के नाम गुदवा चुके हैं। उनकी ख्वाहिश है कि वह ऐसे प्रत्येक सैनिक का नाम गुदवाएं। उन्होंने बताया कि उन्हें पहला नाम गुदवाने में थोड़ा दर्द हुआ लेकिन उसके बाद वह सैनिकों को याद करते हुए चार घंटे तक अपने शरीर पर नाम गुदवाते रहे।

क्लार्क का यह सिलसिला यहीं खत्म होने वाली नहीं है। अभी कई शहीद सैनिकों के नाम बाकी हैं। क्लार्क 1989 से 1996 तक ब्रिटेन की लाइट इनफेंटरी रेजीमेंट में सेवा दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए मुझे कुछ दिन की पीड़ा सहनी पड़ेगी। लेकिन मेरा दर्द सैनिकों और उनके परिवार वालों के दर्द के आगे बहुत कम है। उनके देशप्रेम को देखते हुए टैटू बनाने वाले ने उनसे कोई शुल्क नहीं लिया। उसका कहना है कि वो भी क्लार्क की मदद करना चाहता है।

क्लार्क का इरादा न सिर्फ सैनिकों को श्रद्धांजलि देना है, बल्कि वह इसके जरिए कुछ पैसे कमाकर सैनिकों के परिवार वालों की मदद भी करना चाहते हैं। उन्होंने बताया, 'इस हरकत को देखकर मेरे परिवार का मानना था कि मैं पागल हो चुका हूं। लेकिन अब वो भी मेरे साथ हैं। मेरी बीवी मुझे हमेशा इसके लिए प्रोत्साहित करती रहती है।' दो बच्चों के पिता क्लार्क को उम्मीद है कि इसके जरिए वह 'हेल्प फार हीरोज' चैरिटी को 500 पौंड [करीब 40 हजार रुपये] तक कमाकर दे सकेंगे। उन्होंने कहा कि अपने शरीर के आधे भाग पर 223 नाम गुदवाना कुछ अटपटा जरूर लगता है लेकिन यह मेरा अपना तरीका है।

बकौल क्लार्क, 'सैनिकों की मदद कई लोग करते हैं लेकिन मैं कुछ अलग करना चाहता था। यह केवल पैसा कमाने के लिए नहीं है बल्कि इसके जरिए मैं जनता को उन लोगों की याद दिलाना चाहता हूं जिनकी वजह से उसकी आजादी बरकरार है।' इसके अलावा क्लार्क ने चैरिटी के लिए वेबसाइट भी जारी की है। उनकी वेबसाइट पर कई लोगों की प्रतिक्रियाएं भी आ चुकी हैं। सभी ने क्लार्क के इस कदम को सराहनीय बताया है।

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हर एक का देश प्रेम अलग अलग होता है - किसी में कम तो किसी में ज्यादा - पर होता जरूर है | आपने कभी सोचा यह आता कहाँ से है ?? वह कौन सी बात है जो हमे 'देश प्रेमी' बनाती है ?? क्या है वह जज्बा कि हम अपने देश के नाम को सुनते ही भावुक जाते है और इस के खिलाफ कुछ भी बर्दाशत करना गवारा नहीं करते ??

शायद इन सब बातो का केवल एक ही जवाब है और वह है हमारे 'संस्कार' !!

बचपन से ही हमे यह सिखाया जाता है कि अपने देश से प्रेम करो और अगर जरूरत आ पड़े तो इसके लिए बलिदान हो जाओ | बाकी सब सीखों कि तरह यह भी एक सीख ही है पर एक अलग दर्जे की - यह विश्व पटल पर आपकी पहचान से जुड़ी हुयी है ! इस लिए हमे यह कोशिश करनी चाहिए कि हम भी अपने बच्चो को एसे ही संस्कार दे कि आगे चल कर वह हमारा ही नहीं बल्कि देश का भी नाम रोशन करे |

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दिनांक :- ०१/११/२००९ ; स्थान :- इंडिया गेट ; समय :- शाम के ७ बजे - एक १७ - १८ साल की लड़की मोबइल पर 'किसी' को अपनी लोकेशन बता रही है," मैं इंडिया गेट पर हूँ ......कहाँ से क्या मतलब ??.......इंडिया गेट पर ......अच्छा वैसे ....वो जहाँ वो आग जल रही है न ........दिख रहा है .......बस उसी के सामने !!"

आप समझे मैडम कहाँ खड़ी थी ?? जी हाँ ..............सही समझे ........'अमर जवान ज्योति' के सामने !! थोड़ा अजीब तो आप को भी लगा होगा कि कैसे बड़े आराम से 'अमर जवान ज्योति' को सिर्फ़ मामूली सी जलती आग का रूप दे दिया गया ! पर क्या करे साहब यही तो है आज की 'जेनरेशन Y' !

तो सिर्फ़ एक विनती है आप भले ही किसी भी जेनरेशन के क्यों न हो पर रहेंगे तो भारतीय ही न सो अपने देश के प्रति सोये हुए अपने देश प्रेम को जगाये और विश्व में अपना और अपने देश का नाम रोशन करे |

वैसे जब जब जरूरत पड़ी हम तो अपनी आदत अनुसार कहते ही रहेगे.........जागो सोने वालों ........


सोमवार, 9 नवंबर 2009

महाराष्ट्र विधानसभा में एमएनएस की गुंडागर्दी


समाजवादी पार्टी के विधायक अबू असीम आजमी के हिंदी में शपथ लेने पर महाराष्ट्र विधानसभा में सोमवार को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [मनसे] के विधायकों ने जम कर हंगामा किया। मनसे ने सभी विधायकों से मराठी में षपथ लेने को कहा था। हंगामे के दौरान राज ठाकरे की पार्टी के एक सदस्य ने आजमी को थप्पड़ भी मार दिया।

आजमी के हिंदी में शपथ लेने पर मनसे के सभी 13 सदस्य आजमी की ओर दौड़े और माइक छीन लिया। वे आजमी के मराठी में शपथ लेने की मांग को लेकर नारे लगाने लगे। इसके बाद भी हंगामा जारी रहा और मनसे के विधायक राम कदम ने आजमी को थप्पड़ मार दिया। इसके चलते सदन को आधे घंटे के लिए स्थगित कर दिया गया।

मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण और ऊर्जा मंत्री अजीत पवार ने सदन में शांति कायम रखने की कोशिश की। मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने पिछले महीने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी के सदस्य सुनिश्चित करेंगे कि सभी विधायक मराठी में शपथ लें। राज ने चेतावनी दी थी कि अगर कोई विधायक मराठी में शपथ नहीं लेगा, तो सदन देखेगा कि क्या होता है।

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आज सब ने देख लिया कि भारत में कुछ भी हो सकता है ! मैं यहाँ भारत इस लिए कह रहा हूँ कि मैं यही मानता हूँ कि महाराष्ट्र भारत का ही एक अंग है !! गौर कीजियेगा मैंने महाराष्ट्र को भारत का एक अंग बताया है ............मैं किसी भी रूप में यह नहीं कह रहा हूँ कि भारत महाराष्ट्र का एक अंग है !! अगर इस भारत में अंग्रेजी को मान्यता मिली हुयी है तो बेचारी हिन्दी ने 'आपके' कौन से खेत खाए है ??

भरे सदन में किसी विधायक को मार खानी पड़े तो जनता खुश जरूर होगी पर 'आपको' यह ग़लत ख़बर कैसे लग गई कि मार खाने का कारण हिन्दी में शपथ लेना होना चाहिए ?? विधायक काम करे ....जनता का हित करे....गबन करे ............ - हमारी तरफ़ से भी लगवा देते तो कोई बात थी पर सिर्फ़ इस बात पर पिटवा दिया कि हिन्दी में कैसे बोला यह बात कुछ हज़म नहीं हुयी होगी 'आपके' 'मराठी मानुष' को भी अगरचे 'वो' 'मानुष' है तो !? अब 'आपके' ९ 'आमदार'......यही कहते है न 'आप' अपने विधायको को ............सदन में क्या क्या करने का प्लान बना रहे है यह तो 'आप' ही जानते होगे या आपके यह 'आमदार' पर बस इतना जान लीजिये जो भी हुआ किसी भी नज़रिए से तारीफ के काबिल नहीं था !! आज १३ सीट जीत कर 'आप' सदन को अपने मनमाने तरीके से चलवाने कि सोच रहे है उस दिन आप कहाँ थे जब 'आपका' यही 'मराठी मानुष' AK-४७ से निकली हुयी गोलियों का सामना कर रहा था 'आपके' ही महाराष्ट्र में ?? कितने मानुषो के घावो पर मरहम लगाने गए थे 'आप' बतायेगे ज़रा ?? क्या कहा याद नहीं ...........बहुत कमजोर है 'आपकी' यादाशत ......अभी पूरा एक साल भी तो नहीं हुआ है !! वैसे 'आप' सही है सुखद यादे रखनी चाहिए दुखद नहीं.....है न ??

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महाराष्ट्र सरकार अब चाहे कुछ भी सफाई दे आज की घटना पर दोषी तो वो भी है ........इतनी भी दूरदर्शिता नहीं थी कि सदन में एसा कुछ भी हो सकता है ?? क्या एसे ही आप सरकार चलायेगे ....सोते सोते और जो भी होता है होने दो ?? राष्ट्र की सोचे 'आपका' महाराष्ट्र तब ही रहेगा न जब भारत राष्ट्र रहेगा ................ २६/११ की बरसी पर फ़िर खतरा है सो....... जागो सोने वालों ...........


रविवार, 8 नवंबर 2009

वीआईपी सुरक्षा को लेकर उठे सवाल

चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन [पीजीआई] में गंभीर अवस्था में लाए गए एक मरीज को, वहां एक समारोह के सिलसिले में गए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सुरक्षा के चलते प्रवेश की अनुमति न मिलने से हुई मौत की घटना के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या वीआईपी सुरक्षा एक आम आदमी की जान से अधिक महत्वपूर्ण है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान [एम्स] के आर्थोपेडिक विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा सी एस यादव कहते हैं कि वीआईपी सुरक्षा महत्वपूर्ण व्यक्ति को ही दी जाती है इसलिए इसके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। लेकिन मरीज की जान बचाना भी अस्पताल की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि एम्स में अक्सर वीआईपी, मंत्री, सांसद इलाज के लिए आते हैं। उनकी अपनी सुरक्षा होती है और अस्पताल की अपनी सुरक्षा होती है। पीएम को एसपीजी की सुरक्षा मिली हुई है। उनके कमांडो बहुस्तरीय सुरक्षा घेरा बनाते हैं। लेकिन अपरिहार्य परिस्थितियों में मरीज को जाने दिया जाता है। मरीज इलाज के लिए ही अस्पताल आते हैं। समझौता न पीएम की सुरक्षा के साथ किया जा सकता है और न ही मरीज के स्वास्थ्य के साथ।

डा यादव ने कहा कि वीआईपी सुरक्षा और अस्पताल प्रशासन के बीच सांमजस्य होने पर आम मरीजों को किसी भी तरह की दिक्कत होने का सवाल ही नहीं उठता। ग्लोबल हास्पिटल की इन्फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डा अर्चना धवन बजाज कहती हैं कि प्रधानमंत्री महत्वपूर्ण हस्ती हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा जरुरी है लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि मरीजों को इससे दिक्कत न हो। अगर शहर के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में गंभीर अवस्था में लाए गए एक मरीज को केवल इसलिए प्रवेश न दिया जाए कि वहां कोई वीआईपी हस्ती है तो मेरी राय में यह अस्वीकार्य है।

डा अर्चना सवाल करती हैं कि आपात सेवाएं किसके लिए और क्यों रहती हैं। आपात स्थिति में इन सेवाओं का मरीजों के लिए ही इस्तेमाल न हो तो इनकी उपयोगिता क्या होगी। अगर अस्पताल परिसर में आयोजित समारोह में आए प्रधानमंत्री की सुरक्षा से मरीजों को दिक्कत हो तो समारोह अन्यत्र करना बेहतर होगा। समारोह से ज्यादा महत्वपूर्ण मरीज की जान होती है। डा अर्चना ने बताया कि प्रसिद्ध क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की पत्नी जब गर्भवती थीं तो यह जोड़ा उनके पास नियमित जांच के लिए आता था। वह कहती हैं 'सहवाग दंपती अक्सर रात को आते थे ताकि उनकी वजह से अस्पताल में कोई परेशानी न हो। किसी को पता ही नहीं चलता था कि यह जोड़ा आया है। जब उनकी पत्नी ने बेटे को जन्म दिया, तब भी किसी को पता नहीं चल पाया था।

सफदरजंग अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा के टी भौमिक कहते हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा एसपीजी के तहत आती है इसलिए उनके नियमों का पालन करना होगा। उनकी सुरक्षा एसपीजी कमांडो अपने तरीके से करते हैं और अस्पताल प्रशासन उनकी बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में कोई हस्तक्षेप नहीं करता। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक बार सफदरजंग अस्पताल आए थे। सरोजिनी नगर में हुए बम विस्फोट से घायल मरीजों की खैरियत पूछने। तब उनकी सुरक्षा को लेकर किसी तरह की अफरातफरी नहीं हुई थी। जहां तक हमने सुना है, प्रधानमंत्री खुद कहते हैं कि उनकी सुरक्षा की वजह से लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए।

डा अर्चना कहती हैं कि अस्पताल के लिए मरीज की जान बचाना उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी वीआईपी सुरक्षा महत्वपूर्ण है। डा भौमिक के अनुसार 'अस्पताल प्रशासन वीआईपी सुरक्षा के साथ सामंजस्य स्थापित कर ले तो मरीजों को दिक्कत होने का सवाल ही नहीं उठता।'

डा यादव कहते हैं कि वीआईपी सुरक्षा का अनुभव न होने पर कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना हो सकती है लेकिन मरीज की जान बचाना अस्पताल की पहली प्राथमिकता होती है।

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इस घटना से नेताओ को सबक लेना चाहिए कि एक 'आम आदमी' की जान भी उतनी ही कीमती है जितनी कि उनकी ! किसी भी नेता में और एक आम आदमी में अगर कुछ फर्क होता है तो सिर्फ़ 'सत्ता' का | एक 'आम आदमी' का वोट ही इन नेताओ को इतना 'महत्वपूर्ण' बनता है कि उनको और उनके परिवार को 'वीआईपी सुरक्षा' दी जाती है पर उनकी यही 'वीआईपी सुरक्षा' अगर किसी निर्दोष 'आम आदमी' की मौत का कारण बन जाए तो यह सवाल उठाना लाज़मी हो जाता है की आख़िर असली 'वीआईपी' कौन है - एक 'नेता' या एक 'आम आदमी' ??

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कुछ लोगो का मानना है कि गलती सुरक्षा कर्मियों की थी जबकि एसा है नहीं गलती सरासर इन 'वीआईपी' लोगो की है जो अपने आगे किसी को भी कुछ नहीं समझते फ़िर एक आम आदमी की तो बिसात ही क्या ???

पर महाराज .......जाग जाओ 'आम आदमी' अब उतना 'आम' भी नहीं रह गया है वो भी अब 'वीआईपी' हो गया है....बाकी तुम्हारी मर्ज़ी .....अपनी तो आदत है सो कहते है .......जागो सोने वालों.......