आज़ादी मुफ़्त नहीं मिलती, इस की असली कीमत हमारे वीर सैनिक चुकाते हैं। अपने सैनिकों और सेना का सम्मान करना सीखिए।
जिन का आदर्श वाक्य, स्वधर्मे निधनं श्रेयः (कर्तव्य पालन करते हुए मरना
गौरव की बात है।) हो, उन से इस से कम की कोई अपेक्षा की भी नहीं जा सकती।
"वीरा मद्रासी,अडी कोल्लु अडी कोल्लु!!"
(वीर मद्रासी, आघात करो और मारो,आघात करो और मारो!)
पलटन का मान बढ़ा गए यह दसों महावीर।
दिल से सलाम।
जय हिन्द।
जय हिन्द की सेना।
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सरदार पटेल ने कहा था -
"हर भारतीय को याद रखना चाहिए कि अगर इस देश में उन्हें कुछ अधिकार दिए गए हैं तो बदले मे उनके कुछ कर्तव्य भी है।"
"हर भारतीय को याद रखना चाहिए कि अगर इस देश में उन्हें कुछ अधिकार दिए गए हैं तो बदले मे उनके कुछ कर्तव्य भी है।"
एक तरफ यह जाँबाज सैनिक है जो देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं दूसरी ओर JNU जैसे शिक्षा संस्थानों के तैयार किये गए अधकचरे बुद्धिजीवी है जो न जाने कैसे और किस आधार पर अफ़जल या बाकी किसी आतंकी को शहीद बता कर उनके हिमायती बन भारत विरोधी नारे लगाते है, इन को कभी शहीद सैनिकों का ख़्याल क्यों नहीं आता !?
कभी कभी लगता है, आस्तीन के सांप पाल रहे हैं हम। छात्र राजनीति के नाम पर यह लोग जो कुछ करते दिख रहे हैं उसका छात्रों से कुछ लेना देना नहीं है ... सरकारी अनुदानों के आधार पर पलने वाले यह लोग केवल मौकापरस्त लोगों की वो जमात है जो जिस थाली मे खाती है उसी मे छेद करती है | खुद को 'बुद्धिजीवी' साबित करने के चक्कर मे यह केवल बड़ी बड़ी बातें करते है ... जमीनी स्तर पर काम करता कोई नहीं दिखता ... अगर केवल विरोध प्रदर्शन और नारों के दम पर समाज मे बदलाव आता होता तो पिछले ७ दशकों मे निरे बदलाव आ चुके होते |
बदलाव आते है जमीनी स्तर पर काम कर, देश के कुछ कर गुजरने के जज़्बे से | बहुत अधिक नहीं केवल एक आदर्श नागरिक बनने का प्रयास कीजिये, फर्क दिखने लगेगा |
कभी कभी लगता है, आस्तीन के सांप पाल रहे हैं हम। छात्र राजनीति के नाम पर यह लोग जो कुछ करते दिख रहे हैं उसका छात्रों से कुछ लेना देना नहीं है ... सरकारी अनुदानों के आधार पर पलने वाले यह लोग केवल मौकापरस्त लोगों की वो जमात है जो जिस थाली मे खाती है उसी मे छेद करती है | खुद को 'बुद्धिजीवी' साबित करने के चक्कर मे यह केवल बड़ी बड़ी बातें करते है ... जमीनी स्तर पर काम करता कोई नहीं दिखता ... अगर केवल विरोध प्रदर्शन और नारों के दम पर समाज मे बदलाव आता होता तो पिछले ७ दशकों मे निरे बदलाव आ चुके होते |
बदलाव आते है जमीनी स्तर पर काम कर, देश के कुछ कर गुजरने के जज़्बे से | बहुत अधिक नहीं केवल एक आदर्श नागरिक बनने का प्रयास कीजिये, फर्क दिखने लगेगा |
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जागो सोने वालों ...