फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

'गुमनामी बाबा' की गुमनाम सहयोगी - लीला राय


परिचय : 

लीला नाग का जन्म ढाका के प्रतिष्ठित परिवार में 2 अक्तूबर 1900 ई. में हुआ था। उनके पिता का नाम गिरीश चन्द्र नाग और माता का नाम कुंजलता नाग था | 
लीला नाग (बाद में लीला राय) का भारत की महिला क्रांतिकारियों में विशिष्ट स्थान है। पर दुर्भाग्य से उन्हें अपने योगदान के अनुरूप ख्याति नहीं मिल पाई।

शिक्षा : 

उन्होंने ढाका और कलकत्ता में उच्च शिक्षा प्राप्त की। इंग्लिश मे गोल्ड मेडेलिस्ट लीला नाग ढाका विश्वविद्यालय मे दाखिला लेने वाली प्रथम महिला थी | जहां से उन्होने अपनी एमए की डिग्री ली |

समाजसेवा और आंदोलन :

वे शुरू से ही समाजसेवा से जुड़ी रही खास तौर पर उन्होने लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा दीक्षा पर विशेष ज़ोर दिया | वे आत्मरक्षा के लिए लड़कियों और महिलाओं को मार्शल आर्ट्स सीखने के लिए भी प्रेरित करती थी | ढाका में शिक्षा प्राप्त करते हुए वे 'मुक्ति संघ' के सम्पर्क में आई एवं लड़कियों को शिक्षित करने के लिए 'दीपाली संघ' नामक एक संगठन बनाया। इस संगठन की उन्होंने 'दीपाली स्कूल', 'नारी शिक्षा मन्दिर', 'शिक्षा भवन' एवं 'शिक्षा निकेतन' आदि नाम से कई शाखाएँ खोलीं।  अंग्रेज़ों की गुप्तचर रिपोर्ट के अनुसार ऊपर से सीधी- सादी दिखने वाली इन संस्थाओं में लड़कियों को क्रांति की शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाता था। प्रथम महिला शहीद प्रीतिलता वड्डेदार को इन्हीं संस्थाओं में दीक्षा मिली थी।

1921 मे बंगाल मे बाढ़ आई हुई थी उसी दौरान लीला नाग की मुलाक़ात नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से हुई ... जो राहत कार्यों का नेतृत्व करने वहाँ आए हुये थे | लीला नेताजी से प्रभावित हुई और राहत कार्यों मे अपना सहयोग देने के लिए ढाका महिला कमेटी का गठन किया | नेताजी से लीला का जुड़ाव जीवन के अंतिम पलों तक बना रहा |

1931 मे लीला नाग ने "जयश्री" नाम की एक राष्ट्रवादी पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया जिस का पूर्ण नियंत्रण महिलाओं के हाथ मे था ... लेखन से ले कर प्रकाशन तक | इस पत्रिका को बहुत जल्द लोकप्रियता मिली और विभिन्न विभूतियों ने लीला के इस प्रयास की भरपूर प्रशंसा की जिस मे प्रमुख्य तौर पर गुरुदेव टेगौर का नाम शामिल है जिन्होने इस पत्रिका का नामकरण किया था |

लीला नाग को असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया और 6 सालों तक वे जेल मे भी रही | 1938 मे तब के कॉंग्रेस अध्यक्ष नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने लीला को काँग्रेस की राष्ट्रीय प्लानिंग कमेटी मे शामिल किया |

1939 मे लीला का विवाह अनिल चन्द्र राय से हुआ | जब नेताजी बोस ने कॉंग्रेस से इस्तीफा दिया तब इन दोनों भी नेताजी के साथ ही फॉरवर्ड ब्लॉक मे शामिल हो गए |

1941 मे जब ढाका मे भीषण सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे तब लीला राय ने शरत चन्द्र बोस के साथ मिल कर यूनिटी बोर्ड और नेशनल सर्विस ब्रिगेड की स्थापना की | 

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान लीला राय और उनके पति अनिल चन्द्र राय को गिरफ्तार कर लिया गया जिस कारण "जयश्री"पत्रिका का प्रकाशन भी रोक देना पड़ा |

1946 मे जेल से रिहा होने के बाद लीला राय को भारत की संविधान सभा के लिए चुना गया |

1947 के विभाजन के दंगों के दौरान लीला राय गांधी जी के साथ नौआखली मे मौजूद थी ... गांधी जी के वहाँ पहुँचने से भी पहले लीला राय ने वहाँ राहत शिविर की स्थापना कर ली थी और 6 दिनों की पैदल यात्रा के दौरान लगभग 400 महिलाओं को बचाया था | 

आज़ादी के बाद लीला राय कलकते मे ही जरुरतमन्द महिलाओं और ईस्ट बंगाल के शरणार्थीयों के लिए कार्य करती रही |

कलकते मे ही 11 जून 1970 को लीला राय जी का निधन हुआ |

 लीला राय और नेताजी / गुमनामी बाबा :

ऐसे सबूत मिले है जो यह दर्शाते है कि लीला राय यह जानती थी कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस १९४५ की कथित विमान दुर्घटना मे मारे नहीं गए थे और उत्तर प्रदेश के फैजाबाद मे 'गुमनामी बाबा' के रूप मे अज्ञातवास मे अपना जीवन बिता रहे थे |

बताया जाता है कि खुद 'गुमनामी बाबा' के ही कहने पर उन्होने 7 सितंबर 1963 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के परम मित्र दिलीप कुमार रॉय को एक पत्र लिखा था, उन्हीं के शब्दों मे,

 “I wanted to tell you something about your friend… HE is alive – in India.”  

यह भी बताया जाता है कि वे समय समय पर फैजाबाद जा कर 'गुमनामी बाबा' से मुलाक़ात भी करती थीं | फैजाबाद के राम भवन से बरामद 'गुमनामी बाबा' के समान मे 1970 का एक पत्र ऐसा भी है जिस मे उन्होने ने लीला राय को "ली" नाम से संबोधित किया है और लीला राय की मृत्यु पर अपनी श्रद्धांजलि दी है | ज्ञात हो कि  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस लीला राय को "ली" कह कर ही संबोधित करते थे | गौरतलब है कि मशहूर हैंडराइटिंग एक्सपर्ट बी लाल ने इस पत्र की जाँच के बाद नेताजी और गुमनामी बाबा की हैंडराइटिंग को एक ही पाया है |

आज स्व॰ लीला राय जी ११५ वीं जयंती के अवसर पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते है |

 ==========================
अब समय आ गया है जब हम अपने इतिहास का अवलोकन करें और उस मे हुई भूलों को सुधारें ... नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस से जुड़ी फाइलें अब सार्वजनिक होनी शुरू हुई है और ऐसे प्रमाण सामने आ रहे है जो भारतीय इतिहास को बदल देंगे| आज की युवा पीढ़ी को अपना असली इतिहास और असली राष्ट्र नायकों को जानने का पूरा अधिकार है|  
 ==========================
जागो सोने वालों...

सोमवार, 1 जून 2015

कैप्टन सौरभ कालिया को मिले न्याय

करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की हिरासत में बेरहमी से मारे गए कैप्टन सौरभ कालिया की मौत की अंतर्राष्ट्रीय जांच से एनडीए सरकार ने इनकार किया है। सरकार ने संसद में इसकी जानकारी एक प्रश्न के जवाब में दी थी जिसके बाद से यह मामला तूल पकड़ने लगा है।

सरकार ने कहा था कि पड़ोसियों के साथ रिश्तों को ध्यान में रखते हुए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में जाना कानूनी रूप से वैध नहीं होगा। 16 साल बाद भी एनडीए सरकार पाकिस्तान के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अपील करने को लेकर गंभीर नहीं है। सरकार संसद में कह चुकी है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को उठाना मुमकिन नहीं है।

मोदी सरकार ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय अदालत में मामले को ले जाना व्यावहारिक नहीं है। वर्ष 1999 में शहीद कालिया के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर ऐसी मांग की थी। तब विपक्ष में रही बीजेपी सरकार ने यूपीए सरकार के ऐसे ही फैसले पर उसे जमकर घेरा था। कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों को करगिल युद्ध के दौरान 1999 में पाकिस्तान सेना ने तब बंधक बना लिया था जब वो लोग रूटीन प्रेट्रोलिंग पर निकले हुये थे और बाद मे यातनाएं देकर मार डाला था। 

दूसरी ओर पाकिस्तान ने दावा किया था कि कैप्टन सौरभ का शव एक गड्ढे में मिला था और उनकी मौत सख्त मौसम की वजह से हुई। पर कैप्टन सौरभ और उन के साथियों के क्षत विक्षत शव एक और ही दास्तान कहते है जो उनकी निर्मम हत्या होने की पुष्टि करती है |

गौरतलब है कि कैप्टन सौरभ के पिता एनके कालिया 16 साल बाद भी अपने बेटे के लिए न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। एनके कालिया ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उनकी मांग है कि विदेश मंत्रालय इस मसले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में उठाए ताकि जिन पाकिस्तानी जवानों ने उनके बेटे की हत्या की उनके खिलाफ कार्रवाई हो सके। उनके मुताबिक युद्ध के दौरान इस प्रकार का बर्ताव युद्ध बंदियों के साथ जेनेवा समझौते का उल्लंघन है।
==========================
जिस पड़ोसी मुल्क ने आप के सैनिकों को इतनी बेरहमी से मारा हो आप उसके साथ "अच्छे संबंध" रखने के इच्छुक है ...विश्वास नहीं होता ... क्या होगा इन अच्छे संबन्धों से ... सीमा पार आतंकवाद का जो खेल इतने वर्षों से वो खेल रहा है क्या वो रुकेगा ... जिस ने कभी आप का कहीं किसी रूप मे साथ न दिया हो आप उस से उम्मीद रखते हो कि आप का साथ देगा ... वो भी अपने देश के नागरिकों और सैनिकों की जान दांव पर लगा कर| अब भी समय है मित्र और शत्रु का फर्क कीजिये नहीं तो न जाने कितने कैप्टन सौरभ कालिया यूं ही मारे जाएंगे|
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस मे इस मामले को उठा कर एक जिम्मेदार सरकार होने का अपना फर्ज़ पूरा कीजिये और कैप्टन सौरभ कालिया को न्याय दिलवाइए |
==========================
जागो सोने वालों ...

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

नेताजी रहस्य गाथा

एक जमाना था जब 'मिशन नेताजी' से जुड़े श्री अनुज धर जी और मेरे जैसे उनके सभी साथी अक्सर बड़ी बेबसी से गुनगुनाया करते थे ... "कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले" !!

यह वो दौर था जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की गुमशुदगी से जुड़ी कोई भी ख़बर कहीं भी पढ़ने या देखने को नहीं मिलती थी ... और अगर हम कुछ चुनिन्दा लोगो को छोड़ दें तो किसी को इस बात की कोई परवाह भी नहीं थी कि भारत की आज़ादी के इस महानायक के साथ आखिर हुआ क्या था और उस के लिए कौन जिम्मेदार था ... नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करवाने की मांग तो भला करता ही कौन !?


पिछले दिनों जब नेताजी से जुड़ी २ फाइलें सार्वजनिक की गई तो जैसे हड़कंप सा आ गया जबकि उन फाइलों मे केवल इतना ही छिपा था कि दो दशकों से ज्यादा समय तक नेताजी के परिवार और उनके परिजनों पर गुप्तचर एजेंसियाँ द्वारा जासूसी कारवाई गई और ऐसा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर किया गया |
जो लोग इस मुद्दे से जुड़े हुये है वो जानते है कि यह जानकारी केवल 'हाथी की पुंछ' का बाल भर है पूरा हाथी तो अभी सामने आया भी नहीं| ऐसी लगभग ६५ फाइलें है जिन मे इस साजिश का पूरा कच्चा चिठ्ठा लिखा रखा है | ज़रा सोचिए अगर केवल २ फाइलों के सार्वजनिक होने पर भारतीय आज़ादी के इतिहास की छवि बदलती दिख रही है तो सारी फाइलों के सार्वजनिक होने पर क्या होगा !?

RTI के माध्यम से और बाकी सूत्रों से काफी जांच पड़ताल के बाद अनुज धर जी ने इस जटिल गुत्थी को सुलझाने में एक दशक से ज़्यादा समय लगा दिया कि आखिर नेताजी बोस के साथ हुआ क्या !?


'नेताजी रहस्य गाथा' एक विस्तृत खोज है भारतीय राजनीती के सबसे लंबे समय तक चलने वाले विवाद की। दशको से भारतवासी जानना चाहते हैं कि आखिर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को क्या हुआ। क्या नेताजी एक विमान दुर्घटना में मारे गऐ थे, या रूस में उनका अंत हुआ या फिर सन् 1985 तक वह, गुपचुप गुमनामी बाबा बनकर उत्तर प्रदेश रहे।


'नेताजी रहस्य गाथा' उनकी अंग्रेजी पुस्तक India's Biggest Cover-up का हिंदी अनुवाद है। यह उन रहस्यमयी कड़ियों को जोड़ती है जो अब तक अनसुलझी रही थी।

 ===============================
यह पुस्तक नेताजी की कथित मृत्यु को लेकर अपनाए गए भारत सरकार के षड्यंत्रकारी रवैये की पोल खोलती है। पुस्तक में देश-विदेश से तमाम दुर्लभ जानकारियाँ प्राप्त की गयी हैं, जिसमें कई गोपनीय दस्तावेज़ भी शामिल हैं। नेताजी से जुड़े रहस्य को जानने और नेहरू से मोदी युग तक के राजनैतिक पहलू को समझने के लिए इस पुस्तक का कोई सानी नहीं है। जो भी इस मुद्दे के बारे मे जानकारी लेने के इच्छुक है उनको यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए |
===============================
जागो सोने वालों ...