गुरुवार, 31 जनवरी 2013
सोमवार, 14 जनवरी 2013
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी...क्या करूँ?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
अमर शहीद |
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
आप और हम |
रीति दोनो ने निभाई,
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
कौन है जो दूसरों को
दु:ख अपना दे सकेगा?
कौन है जो दूसरे से
दु:ख उसका ले सकेगा?
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला,
दुख नहीं बंटते परस्पर,
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता;
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी!
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
- हरिवंशराय बच्चन
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पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ , समझने की कोशिश कर रहा हूँ पर और उलझता जा रहा हूँ ! यह कैसी होड सी लगी हुई है देश के शहीदों पर अहसान दिखाने की ... क्या मीडिया , क्या नेता , क्या आप और हम ... कोई भी तो कोई कसर नहीं छोड़ रहा है ... पर किस लिए ... क्या साबित करने की ज़िद्द है ... छोड़ो यार जाने दो ... सब को सच मालूम है ... किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता ... खास कर तब तक जब तक खुद के साथ कुछ न हो ... इस लिए धोखा मत दो ... कम से कम शहीदों को ...
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जागो सोने वालों ...
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