कोई पूछे जा कर उन बेटियों से ...
आज क्या है उनके दिल मे ...
जब से होश संभाला ...
एक ही आस रही कि पापा घर आ जाएँ ...
जब से होश संभाला ...
एक ही आस रही कि पापा घर आ जाएँ ...
जिस तस्वीर को पापा कहते है उस तस्वीर मे प्राण आ जाये ...
आज आएंगे पापा ...
निष्प्राण हो कर ...
एक कैद से आज़ाद हो कर ...
आज आएंगे पापा ...
निष्प्राण हो कर ...
एक कैद से आज़ाद हो कर ...
एक ताबूत मे फिर कैद हो कर ...
फिर एक तस्वीर बनने के लिए ...
क्या पाया उन बेटियों ने ...
फिर एक तस्वीर बनने के लिए ...
क्या पाया उन बेटियों ने ...
पापा को खो कर ...
पा कर ...
फिर खो कर !!??
पा कर ...
फिर खो कर !!??
( सरबजीत सिंह और उनके परिवार को समर्पित मेरी यह स्वरचित रचना )
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जागों सोने वालों ...
:( बेहद दुखद है. कैसा होता है ऐसी आस के साथ जीना जिसमें कोई आस ही न हो. यह एहसास सिर्फ वाही कर सकता है जिसने इसे झेला हो. भगवान् सरबजीत के परिवार को शक्ति दे.
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद और मार्मिक रचना | दिल दहल जाता है ऐसा सोचकर भी तो उनका क्या हाल होता होगा जो इस सच को जी रहे हैं | भगवान् उन्हें इस दुःख का सामना करने की हिम्मत दे और सरबजीत की आत्मा को शांति प्रदान करें |
जवाब देंहटाएंपापा को खो कर ...
जवाब देंहटाएंपा कर ...
फिर खो कर !!?? ......दुख के साथ अपनी विवशता पर रोना ही आता है।
अत्यंत दुखद और मार्मिक रचना,भगवान् सरबजीत के परिवार को शक्ति दे.
जवाब देंहटाएंक्या कर सकती हैं ..
जवाब देंहटाएंझेलने की विवशता है ...
अपनों को खोना बहुत गम देता है, और खासकर जो पहले से ही दूर हों जिसके आने की आस हो.. वह आस भी खत्म हो जाये तो और गम होता है ।
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद ! भगवान् सरबजीत की आत्मा को शांति दें
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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मार्मिक प्रस्तुति .........
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद .........अपनी मिटटी मिली अंतिम समय और शब्द ही नहीं कहने को ...........
Rula diya aapne...sath hi sath rosh bhi hai...par ab in bachchiyon ka kya hoga..ummed hai ki inke rishtedaar inka khayal rakhenge..bharat me to waise bhi betiyaan surakshit nahin hain
जवाब देंहटाएंशिवम भाई! बहुत मुश्किल है ऐसी कविताओं पर कमेन्ट करना.. मेरा गला रूंध जाता है और आवाज़ नहीं निकलती.. बचपन का एक गीत याद आ गया..
जवाब देंहटाएंनमन है उस पिता को और परमात्मा उन बेटियों को शहीद की बेटी कहलाने का हौसला दे!!
पापा को खो कर ...
जवाब देंहटाएंपा कर ...
फिर खो कर !!?? ..मार्मिक
!!
जवाब देंहटाएंजहाँ न्याय की गुहार है,उधर से सब बहरे हैं ... पर हिंसक सोच की हदों को पार करते हुए किसी की नहीं सोचते .
जवाब देंहटाएंबहुत भावात्मक रचना..
जवाब देंहटाएंसच मे जब सरबजीत की बच्चियों को टीवी पे देखते हैं तो बहुत दुख होता है। भगवान ऐसे दिन किसी बेटो को न दिखाये । बहुत मार्मिक
जवाब देंहटाएंगंभीर समस्या पर सामयिक और सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
बहुत ही भावनात्मक मार्मिक प्रस्तुति ।............मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत मुश्किल है कमेन्ट करना..बहुत मार्मिक बहुत सटीक
जवाब देंहटाएंबेटियों में फर्क है,तभी किसी के लिए आतंकवादी छोड़े जाते हैं,जबकि बाक़ियों की मौत आतंकवादी कह कर होती है।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक प्रस्तुति......
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