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बुधवार, 14 अगस्त 2013

ट्रिगर खींच ... मामला मत खींच !

अभी हाल ही मे एक फिल्म आई थी 'D-Day' ... उस मे ऋषि कपूर साहब का संवाद था ... "ट्रिगर खींच ... मामला मत खींच !"

कोई बता रहा था कि ऐसी ही मिलती जुलती राय १९४७ मे नेहरू जी को सरदार पटेल और रक्षा सलाहकारों ने दी थी पाकिस्तान के बारे मे जब कश्मीर मे कबीलाई लड़ाको के साथ मिल कर पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ की थी !

काश तब ट्रिगर ढंग से खींच लिया होता तो आज मामला इतना न खींचा होता !!
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वैसे अब भी इतनी देर कहाँ हुई है ... आप क्या कहते है ???
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जागो सोने वालों ...

8 टिप्‍पणियां:

  1. "ट्रिगर खींच
    मामला मत खींच
    निकाल खिज़ !"

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  2. "ट्रिगर खींच
    मामला मत खींच
    निकाल खिज़(खीझ)!"
    ~~

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  3. purani baat khatam.....!!
    par haan, ek baar to man kahta hai, nipta hi diya jaye....
    par humanity haaregi... kahin na kahin log to marenge hi ....

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  4. हाल ही में कहीं पढ़ा-
    17 सितम्बर 1948. कुछ उच्चाधिकारियों के साथ बैठक के बाद प्रधानमंत्री नेहरूजी फैसला लेते हैं- हैदराबाद में सैन्य कार्रवाई न की जाय. जल्दी से गृहमंत्री सरदार पटेल को फैसले की खबर दी जाती है. सरदार का जवाब आता है- सैन्य टुकड़ियाँ हैदराबाद में प्रवेश कर गयी हैं... अब कुछ नहीं हो सकता!
    आज क्या हम पटेल साहब के फैसले को "बगावत" की श्रेणी में रखेंगे?
    ***
    धारावाहिक "परमवीर चक्र" याद है?
    14 दिसम्बर 1971. श्रीनगर हवाई अड्डे पर पाकिस्तानी वायु सेना के सैबर विमानों का हमला. भारतीय वायु सेना के नं. 18 बुलेट स्क्वाड्र्न के नेट विमान रनवे पर खड़े हैं. आदेश मिलता है- विमानों को बंकर में ले जाओ. फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह शेखों चकित! विमानों को बंकर में ले जाओ? यह तो लड़ने का समय है! वे आदेश की अवहेलना करते हुए विमान उड़ाते हैं- बाद में ए.टी.सी. वाले उनकी मदद करते हैं और वे दो सैबर विमानों को मार गिराते हैं. बाकी पाकिस्तानी विमान भाग खड़े होते हैं. हालाँकि कुछ कारणों से शेखों का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है. वे शहीद होकर भारतीय वायु सेना की इज्ज्त बचा लेते हैं- यही एक परमवीर चक्र है, जो वायु सेना को मिला है.
    क्या शेखों के फैसले को "बगावत" माना जाय?
    ***
    अगर उपर्युक्त दोनों सवालों का जवाब है- नहीं, तो फिर मैंने क्या गलत कहा कि भारतीय सैनिकों को पाक की सीमा में घुसकर बदला लेना चाहिए- परवाह नहीं कि दिल्ली क्या कहती है!
    जिस दिन 6 सैनिकों के क्षत-विक्षत शव भारत आये थे, उसदिन घुसकर मारना था... जिस दिन 2 जवानों कि सिर काटे गये, उस दिन भी घुसा जा सकता था... और अभी 5 जवानों की शहादत के बाद भी यही फैसला लिया जा सकता था.
    अगर हमारी मिलकर योजना बनाये, तो मुझे लगता है रात 11 बजे शुरु करके भोर 3 बजते-बजते पी.ओ.के. के प्रत्येक आतंकवादी शिविर को धूल में मिलाया जा सकता है.
    बेशक, अमेरिका और चीन आदतन भारत का विरोध करेंगे- इसलिए भारत को पहले ही रूस का साथ ले लेना चाहिए!
    अगर "आतंकवाद" के खात्मे का कोई और उपाय है आपके पास, तो बताया जाय...

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  5. बहुत देर हो गई दोस्त। आज के इस दौर में सरदार पटेल कहाँ से लाओगे।

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  6. >>
    उस समय के हिसाब से सही है
    आज तो बंदूक है ट्रिगर ही नहीं है !

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  7. सही है हमारे नेता किसी भी समस्या का क्षणिक समाधान करते है वो उस समस्या के दीर्घकालीन उपायों पर गौर ही नहीं करते है ।

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