यही वजह है कि भारत के ला कमिशन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए अपराधी को सख्त से सख्त सजा देने की अनुशंसा की है। सुप्रीम कोर्ट भी बढ़ते तेजाब हमले को लेकर सख्त रुख अपना चुका है।
भारत में किसी से बदला लेना होता है खासकर लड़कियों से अपराधी या आशिक किस्म के युवक उनके चेहरे पर तेजाब फेंक देते हैं। ऐसा करने से पीडि़त के हाथ आपने आप चेहरे पर आ जाते हैं और पीडि़त का चेहरा, सिर, कान, गला और हाथ बुरी तरह जल जाते हैं। भयानक दर्द के अलावा शरीर के कई अंग, मसलन आंखें, नाक, कान हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।
ऐसे अपराध का सबसे भयानक सच यह है कि व्यक्ति अपनी पहचान खो देता है। एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से अलग करता हुआ। अपनी एक अलग पहचान रखता हुआ शरीर का एक ही हिस्सा है- वह है चेहरा और तेजाब हमले के बाद अक्सर यह भयानक हो जाता है। इतना भयानक कि वह किसी को दिखाने लायक नहीं रहता। ऐसे में पीडि़त अपने बाकी बचे जीवन में हर क्षण मरता रहता है।
इस अर्थ में यह अपराध बलात्कार से भी ज्यादा भयंकर है। बलात्कार की शिकार एक लड़की दूसरी जगह जाकर जीवन यापन कर सकती है। पढ़ सकती है। नौकरी कर सकती है। विवाह कर सकती है। घर बसा सकती है, लेकिन तेजाब हमले में अपने चेहरे और जिस्म की कुदरती रंगत गंवा चुकी एक लड़की जीती है तो चेहरे पर नकाब डालकर। वह कितने दिन ऐसे जी पाएगी, यह कोई नहीं जानता। वजह यह है कि जलने पर कोशिकाएं तेजी से नष्ट होती है और अक्सर पीडि़त की असमय मौत हो जाती है।
हमारे यहां तेजाब हमले से जुड़े मुकदमों को भारतीय दंड संहिता की धारा-326 के अंतर्गत देखा जाता रहा है। इस धारा के तहत अपराधी को मामूली सजा दी जाती है। यही कोई दो-तीन साल बस। पर तेजाब हमले की बढ़ती घटनाओं और इस अपराध की गंभीरता को देखते हुए भारत के ला कमीशन ने अनुशंसा की है कि अपराधी को कम से कम दस साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा देनी चाहिए।
ला कमीशन के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस लक्ष्मण के अनुसार आईपीसी की धारा-326 [गहरी चोट पहुंचाना)] की परिभाषा तेजाब से जलकर भयंकर जीवन जीने के लिए मजबूर होने को खुद में शामिल नहीं कर पाती।
ऐसा कमीशन ने तब कहा, जब तेजाब डाल कर जलाने वाले मामलों में से एक लड़की का मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। तेजाब हमले रोकने के लिए याचिकाकर्ता की वकील अपर्णा भट्ट ने बाग्लादेश का उदाहरण देते हुए तेजाब की खुले बाजार में बिक्री और सहज उपलब्धता रोकने की माग की थी।
अपर्णा ने कहा कि देश में तेजाब के हमले बढ़ रहे हैं। यह एक गंभीर अपराध है। पीड़ित की जिंदगी बर्बाद हो जाती है। अदालत घटना के पहले और घटना के बाद का चेहरा देखकर दहल गई। अदालत को वीभत्स हमले के लिए 20 वर्ष की सजा अत्यंत ही कम महसूस हुई। तब सुप्रीम कोर्ट ने ला कमीशन से यह रिपोर्ट मांगी कि क्या मौजूदा कानून तेजाब से पीडि़त लोगों को न्याय दे पाता है?
इसके बाद कमीशन ने सजा बढ़ाने के साथ-साथ यह भी अनुशंसा की कि तेजाब की बिक्री खुलेआम नहीं होनी चाहिए। इसे एक खतरनाक और प्रतिबंधित हथियार की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। यह काउंटर पर उपलब्ध नहीं होना चाहिए। यह सिर्फ कामर्शियल और वैज्ञानिक मकसद से बेचा जाना चाहिए।
इस तरह के मुकदमों में अंतरिम और निर्णायक जुर्माना देने की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे पीडि़त अपना इलाज समय रहते करा सकें और दूसरे खर्चे भी कर सके। केंद्र सरकार भी सुप्रीमकोर्ट को बता चुकी है कि महिलाओं पर तेजाब फेंकने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कानून में संशोधन किए जाने की जरूरत है। इस संशोधन की लगभग सभी राज्यों ने वकालत की है। सभी राज्य भी चाहते हैं कि इस बाबत कठोर कानून बनाया जाए, लेकिन केंद्र सरकार यह भी कहती है कि राज्य सरकारें तेजाब की बिक्री को रेगुलेट करने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में संदेह है कि तेजाब की खुलेआम बिक्री पर रोक लग पाए।
तेजाब हमले के शिकार लोगों के लिए अति संवेदनशील न्यायप्रणाली की व्यवस्था की जानी चाहिए और पराधी को कठोरतम सजा देनी चाहिए। ऐसी सजा, जो दूसरों के लिए सबक हो। किसी को जीते जी मौत से बदतर जिंदगी देने वाले दरिंदे के साथ ऐसा तो करना ही चाहिए।
मौजूदा कानून में अदालतें सिर्फ यह देखती हैं या देख सकती हैं कि क्या तेजाब फेंकने के पीछे इरादा और ज्ञान कि ऐसी चोट पहुंचाई जाए कि मौत ही हो जाए। तेजाब से पीडि़त की मौत निकट भविष्य में नहीं होती है। लिहाजा इसे आईपीसी की धारा 307 के अंतर्गत नहीं लाया जा सकता। पर अब अदालतों का ध्यान इस बात की ओर जा रहा है कि तेजाब हमले का शिकार व्यक्ति किस कदर जीते जी लाश बन जाता है।
रिपोर्ट :- राजेंद्र सिंह बिष्ट
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अब समय आ गया है कि संसद भी इस अपराध को पीडि़त और अदालत की निगाह से देखे। साथ ही इस अपराध में जल्द से जल्द कठोर सजा का प्रावधान करे।
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जागो सोने वालों ...........!!