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शनिवार, 13 अप्रैल 2019

राजनीति के शौकीन हैं तो राजनीति कीजिए खुल कर ...

"राजनीति का सीधा सरल अर्थ था, प्रजा के हित में राज्य को चलाने की वह नीति, जो साम दाम दंड भेद के साथ वह करे, जो राज्य को, देश को सुदृढ बनाये । पर इतिहास हो या वर्तमान राजनीति हो गई मात्र एक कुर्सी, जिस पर बैठकर पंच परमेश्वर जैसी बात को पैरों के नीचे रौंदकर अट्टाहास करनेवाला श्रेष्ठ हो गया । कमाल की बात ये कि प्रजा भी उसके साथ लूटमार में रम गई और खून खराबे के साथ अपना विकास करने लगी ! 
सत्य की जीत आज भी होती है, लेकिन रक्तबीजों के रक्त में नहाकर ।
 
वंश, परम्परा के अनुसार किसी गलत हाथ में शासन की बागडोर देना सही नहीं था, आज भी नहीं । 
रावण के कृत्य ने विभीषण को धक्के देकर निकाल दिया, तब हमने आपने ही कहा "घर का भेदी लंका ढाहे" । क्या लंका का नाश ज़रूरी नहीं था ? याद कीजिये, कुम्भकरण ने भी पहले यही कहा, "घोर अनर्थ, साक्षात दुर्गा को बंदी बना लिया..." । रावण द्वारा मारे जाने से बेहतर उसने राम की सेना के हाथों मरना उचित समझा, तो हमने आपने कहा, उसने भाई का कर्तव्य निभाया .... भाई रावण के गलत कार्यों के आगे रावण दहन का उत्सव मनाते हुए सब रावण हो गए । तो यह तो तय ही है न कि राम का विरोध होगा ही न ।! 
 
राम ने पत्नी को क्यों त्याग दिया, ... यह व्यक्तिगत सवाल करते हुए कभी आपने सोचा है कि आप अपनी पत्नी के साथ क्या करते हैं ! रावण की निंदा करते हुए याद आती है निर्भया, दामिनी, अरुणा शानबाग जैसी गुमनाम हो गई स्त्रियाँ ?
 
 
बंधु, तुमने तो उसे नायक मान लिया, जिसने घृणित कुत्सित कार्य किये । गीत लिखते हुए, तुमने सारे सुर बिगाड़ दिए एक ग़लत राग को पकड़कर । तुम्हें विभीषण माना जाए या कुम्भकरण ?
 
...विभीषण तुम हो नहीं सकते, कुम्भकरण जैसा सत्य कहने का साहस भी नहीं तुममें । तो क्या कहा जाए तुम्हें, जो तुमने कन्हैया को नायक मान लिया । कहाँ गई संवेदना ? सत्य के विरोध में बन गए रक्तबीज !!
खैर, कन्हैया खड़े हो रहे है बेगूसराय से, तो वहाँ की जनता क्या सोचती है यह मायने रखेगा, हार गए तो सारी कविताएँ धरी की धरी रह जाएंगी, यदि कुचालों से जीत गए तब भी देशद्रोही ही कहे जाएंगे, और जनता तब अपना सर पिटेगी ।"
 
( एक ब्लॉगर मित्र की यह वो टिप्पणी है जो ब्लॉग पोस्ट पर की जानी थी पर नहीं की गई क्यूँकि ब्लॉग पर कमेन्ट मोडरेशन लगाया हुआ है, सो मुझे भेजी गई | )
 
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खुद को बुद्धिजीवी कहलवाने के शौक़ में किस हद तक गिरोगे आप ... यही विचारधारा है आपकी जो किसी ऐसे व्यक्ति का समर्थन करने को आप को प्रेरित करती है जो भारत के टुकड़े करना चाहता हो, भारत को बर्बाद होते देखना चाहता हो, जो हमारे वीर सैनिकों को बलात्कारी कहता हो, जो भारत के शत्रुओं का हितैषी हो | एक बार को भी हाथ न काँपे ऐसे व्यक्ति का महिमामंडन करते हुए !? उस पर तुर्रा ये कि कविता में आप खुद लिखते हैं ...
भारत मां घायल है ,इन गद्दारों  से , 
जनमन लेके साथ,कन्हैया जीतेगा !
 
गद्दारी की और कौन सी नई परिभाषा गड़ी है आप ने ... जो हम ने पढ़ी उस हिसाब से तो आपकी कविता के नायक बिलकुल सटीकता से गद्दार कहे जा सकते हैं | और बताता चलूँ ऐसी हज़ार कविताएं भी उस के किए को मिटा नहीं सकती | भारत के टुकड़े करने की बात करने वाला जननायक नहीं कहला सकता वो सर्वदा राष्ट्रद्रोही ही कहलाएगा |

और यदि यही आपकी भी सोच है तो क्यूँ न आप को भी हम वही कहें जो हम उसे कहते हैं - गद्दार या देशद्रोही |

राजनीति के शौकीन हैं तो राजनीति कीजिए खुल कर ... विरोध करना है कीजिए खुल कर ... मुद्दे उठाइए , बहस कीजिए ... लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत जो जो प्रावधान है सब का उपयोग कीजिए ... चुनाव के माध्यम से सत्ता परिवर्तन कीजिए ... आपके सार्थक विरोध का सर्वदा स्वागत है पर आप तो ऐसे के साथ खड़े दिख रहे हैं जिस की विचारधारा बलेट नहीं बुलेट की बात करती है, ये और बात की आज वो खुद चुनाव के माध्यम से अपनी उस विध्वंसकारी छवि को सुधारने में लगा है | 

राजनीतिक विरोध करते करते राष्ट्र का विरोध न कीजिए ... याद रखिए यह राष्ट्र रहेगा तभी आप किसी कन्हैया को अपनी कविता का नायक बना पाएंगे |
 
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और हाँ आप की अभिव्यक्ति की आज़ादी पूर्णत: सुरक्षित है इस लिए वो स्यापा न करें | इस पोस्ट की आवश्यकता इस लिए हुई क्यूँकि आप के ब्लॉग पर अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है, कमेन्ट मोडरेशन लगा हुआ है | वैसे भी केवल सहमति के स्वर सुनने की आप की आदत से मैं भली भांति परिचित हूँ |
 
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जागो सोने वालों ...