अरुणा शानबाग ... हम मे से बहुतों ने पिछली साल आज ही के दिन पहली बार इस नाम और इस नाम
से जुड़ी शख़्सियत के बारे मे जाना था | पर अफ़सोस कि इस जान पहचान के पीछे
कोई भी सुखद कारण नहीं था |
पिछले साल आज ही के दिन खबरों की सुर्खियों मे अपनी थोड़ी सी जगह बनाने वाली अरुणा शानबाग का निधन हो गया था ... लगातार 42 वर्षों तक कोमा में रहने के बाद अरुणा को अंतत: मौत नसीब हुई| अरुणा का
निधन 18 मई 2015 की सुबह लगभग 10 बजे केईएम अस्पताल में हुआ, वह 67 वर्ष की थीं| वह
पिछले 42 वर्षों से इसी अस्पताल में जिंदगी से जूझ रहीं थीं| निधन से कुछ दिनों
पूर्व उन्हें निमोनिया हो गया था और फेफड़े में भी संक्रमण था और वह जीवनरक्षक प्रणाली पर थीं |
कौन थीं अरुणा शानबाग !?
अरुणा शानबाग केईएम अस्पताल मुंबई में काम
करने वाली एक नर्स थीं ... जिनके साथ 27 नवंबर 1973 में अस्पताल के ही एक
वार्ड ब्वॉय ने यौन अपराध किया था| उस वार्ड ब्वॉय ने यौन शोषण के दौरान
अरुणा के गले में एक जंजीर बांध दी थी ... उसी जंजीर के दबाव से अरुणा उस घटना
के बाद कोमा में चली गयीं और फिर कभी सामान्य नहीं हो सकीं| उस घटना के
बाद लगातार 42 वर्षों तक अरुणा शानबाग कोमा में थीं ... अरुणा की स्थिति को
देखते हुए उनके लिए इच्छा मृत्यु की मांग करते हुए एक याचिका भी दायर की
गयी थी, लेकिन कोर्ट ने इच्छामृत्यु की मांग को ठुकरा दिया था| अरुणा की
जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने वाले दरिंदे का नाम सोहनलाल था, जिसे कोर्ट ने
सजा तो दी, लेकिन वह अरुणा के साथ किये गये अपराध के मुकाबले काफी कम थी|
अरुणा को नहीं मिला था न्याय !!
अरुणा के साथ जब सोहनलाल ने दरिंदगी की, उसके पहले अरुणा शादी का निश्चय कर चुकी थी और जल्दी ही उनकी शादी होने वाली थी, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था| सोहनलाल अरुणा की जिंदगी में काल बनकर आया और सबकुछ तहस-नहस कर गया, लेकिन अरुणा के साथ हुए यौन शोषण के मामले को कुछ और ही रूप दिया गया था ... अस्पताल के डीन डॉक्टर देशपांडे ने डकैती और लूटपाट का केस दर्ज कराया, अरुणा की बदनामी ना हो, इसलिए यौन शोषण के केस को दबाया गया, जिसके कारण सोहनलाल को सिर्फ सात साल की सजा हुई और उसके बाद वह आजाद हो गया, जबकि अरुणा शानबाग 42 वर्षों तक उसके कुकर्म की सजा भोगती रही | हमारी न्याय व्यवस्था और समाज के लिए यह एक बहुत बड़ा कलंक है| विडंबना यह कि अपराधी तो 7 साल की सज़ा के बाद बरी हो गया पर पीड़िता उस सज़ा से 6 गुना लंबी सज़ा भुगतती रही|
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आज उनकी पहली पुण्यतिथि है पर अफसोस न तो मीडिया को, न ही महिला सुरक्षा और अधिकारों के परोकारों को उनकी याद आई ... कहीं कोई जिक्र नहीं ... साल भर के अंदर ही अरुणा शानबाग भुला दी गई ... जैसे मृत्यु से पहले के 42 सालों तक भुला दी गई थी !! वो अकेली अपनी लड़ाई लड़ती रही, अस्पताल के बिस्तर पर कोमा मे रहते हुये भी ... एक वीर योद्धा की तरह ...
लनात है हम पर ... और हमारे पूरे सिस्टम पर ... जो सुधरने का नाम नहीं लेता ... केवल खोखले कानून बना कर ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं होती ... क़ानूनों का सख़्ती से पलान भी करवाना होता हैं |
जब तक ऐसा नहीं होगा ... ऐसी कई अरुणा यूं ही तिल तिल मरती रहेंगी और हम नपुंसकों की तरह बैठे तमाशा देखेंगे ...
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पहली पुण्यतिथि पर मजबूत इरादों वाली अरुणा शानबाग जी को हम सब की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि |
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जागो सोने वालों ...
क्या कहें, किससे कहें, कौन सुनता है :(
जवाब देंहटाएंलनात है हम पर ... और हमारे पूरे सिस्टम पर ... जो सुधरने का नाम नहीं लेता ... केवल खोखले कानून बना कर ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं होती ... क़ानूनों का सख़्ती से पलान भी करवाना होता हैं |...........आपने खुद सौ टके खरी बात कह दी है ....न्याय भी माँगा जा रहा है , हालात यही रहे तो छीना जाना लगेगा ...उद्वेलित करती पोस्ट .....
जवाब देंहटाएंसोये हुए लोगों को झकझोरने के लिये आभार । नमन अरूणा ।
जवाब देंहटाएंदिल दहला देनेवाली घटना है। कमजोर कानून व्यवस्था।
जवाब देंहटाएंदिल दहला देनेवाली घटना है। कमजोर कानून व्यवस्था।
जवाब देंहटाएंसही बात है..सब सोए हुए हैं..हम भी। आपने याद दिलाया आभार।
जवाब देंहटाएंशिवम् जी आपके इस लेख में अरुणा शानबाग जी की दर्द से युक्त जीवन कि व्याख्या है.....जो कि वाकई बेहद दर्दनाक है...ऐसे दरिंदों को जो इस तरह कि घटना को अंजाम देते हैं...उन्हें भी आसान सजा नही देनी चाहिये.....आप अपने ऐसे ही लेखों को शब्दनगरी के माध्यम से अन्य पाठकों तक आपके द्वारा लिखी रचनाएँ पहुंच सकेंगी....
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