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रविवार, 29 दिसंबर 2013

निर्भया की पुण्यतिथि पर विशेष

"कल तक सबको 'उस' के दर्द का अहसास था ;
आज सब को अपनी अपनी जीत का अभिमान है !!
कल जहां रेप पीड़ितों की सूची थी ...
उन्ही मेजों पर आज नए विधायकों की सूची तैयार है !!
किसी चैनल , किसी सभा मे 'उसके' बारे मे कोई सवाल नहीं है ;
बहुतों के तन पर नई नई खादी सजी है
तभी तो सफदरजंग के आगे पटाखों की लड़ी जली है ... 
बेगैरत शोर को अब किसी का ख्याल नहीं है !!
जो लोग रोज़ लोकतन्त्र को नंगा करते हो ... 
उनको एक महिला की इज्ज़त जाने का अब मलाल नहीं है !
'तुम' जियो या मारो ... 
किस को फर्क पड़ता है ... 
आओ देख लो अब यहाँ कोई शर्मसार नहीं है !!
दरअसल 'तुम्हारी' ही स्कर्ट ऊंची थी ... 
'इस' मे 'इनका' कोई दोष नहीं ...
"जवान लड़की को सड़क पर छोड़ा ... 
क्या घरवालों को होश नहीं"
"लड़का तो 'वो' भोला था ... 
यह सब चाउमीन की गलती है ... 
वैसे एक बात बताओ लड़की घर से क्यों निकलती है ??"
चलो जो हुआ सो हुआ उसको भूलो ...
भत्ते ... नौकरी सब तैयार है ...
बस 'तुम' मुंह मत खोलो ...
तुम्हारी चीख से मुश्किल मे पड़ती सरकार है ...
अगली जीत - हार के लिए इनको तुम्हारी दरकार है ...
गुजरात - हिमाचल से निबट लिए  ...
अब दिल्ली की बारी है ...
चुनावी वादा ही सही पर यकीन जानना ...
दोषियों को छोड़ा न जाएगा यह मानना ...
हम सब तुम्हारे साथ है डरना मत ...
पर बिटिया अंधेरे के बाद घर से निकलना मत ...
अंधेरा होते ही सब समीकरण बदल जाते है ...
न जाने कैसे ...
हमारे यह रक्षक ही सब से बड़े भक्षक बन जाते है ...
कभी कभी लगता है यह वो मानवता के वो दल्ले है ...
जिन्होने हर चलती बस - कार मे ...
खुद अपनी माँ , बहन , बीवी और बेटी ...
नीलाम कर रखी है !!
 -स्वरचित
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आज 'निर्भया' की पुण्यतिथि है ... पिछले साल इसी दिन उस ने दम तोड़ा था ... ज़िन्दगी की जद्दोजहद चलती जा रही है तब से अब तक ... १६ दिसम्बर को लगभग सभी न्यूज़ चैनल पर निर्भया को याद किया गया ... और उस दिन को निर्भया की पुण्यतिथि भी बता दिया गया ... पर सच तो यह नहीं था ... २९ दिसम्बर तक वो लगातार लड़ती रही थी ... सिर्फ इस उम्मीद से कि उसे न्याय मिलेगा | 

पर क्या उसे न्याय मिला !!??

आज भी न जाने उस जैसी कितनी 'निर्भया' भटक रही है न्याय के लिए ... पर अफसोस कि अब तक हमारा समाज जागा नहीं है ... आज भी गाहे बेगाहे ... ऊलजलूल बातें सुनने को मिल जाती है रेप जैसे संवेदनशील मुद्दे के बारे मे ... कोई न कोई "बुद्धिजीवी" अपने ज्ञान की उल्टी कर ही जाता है ... और खोल जाता है पोल इस समाज की कि देख लो न हम तब सुधरे थे न आज सुधरे है |
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जागो सोने वालों ...

16 टिप्‍पणियां:

  1. साँसें खत्म - दिखावा खत्म ! पर जो दिल से टूटते हैं, वे इसी तरह क्षणों को दोहराते हैं .... दर्द कभी नहीं मरता

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  2. वाकई दिल से टूटे व्‍यक्तियों के लिए यह जीवनभर की त्रासदी है।

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  3. हमें श्रद्धांजलि देने का हक़ है
    कोई बतायेगा इतना समय क्यूँ
    गुजरता जा रहा है। ………
    जब सजा निर्धारित होने और
    उसे सम्पादित होने में
    इतना वक़्त लगता है
    तो नाबालिग को वही सज़ा क्यूँ नहीं ..........

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  4. matalb parast samaj ke numaindo ko aaine me asli soorat dikha di aapne ..aapki samvedansheelata ko salaam ...

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  5. SAHI KAHA HAI AAPNE .NYAY ABHI NAHI MILA USI DIN MILEGA JAB IS TARAH SE AURTON PAR ATYACHAR SAMAPT HONGEN .

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  6. क्या कहें।। दर्द मिटता कहाँ है।

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  7. सार्थक प्रश्न उठाती रचना आदरणीय शिवम जी

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  8. कठोर .. सार्थक प्रश्न उठाती है ये रचना ... पूर्ण बदलाव अभी कोसों दूर है ...

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  9. Ey sabhi neend kiii goliyna khakr hamesha ke liy soo gaye hain,,,,,,,,,,,,,, ey nahi jagengy,,,,,,,,,,,,,,,

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  10. पर बिटिया अंधेरे के बाद घर से निकलना मत ...
    अंधेरा होते ही सब समीकरण बदल जाते है ...
    न जाने कैसे ...
    हमारे यह रक्षक ही सब से बड़े भक्षक बन जाते है …

    -----बहुत यथार्थपरक पंक्तियाँ।

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  11. प्रस्तुति प्रशमसनीय है। मेरे नरे नए पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है, पर आपका इंजार रहेगा। धन्यवाद।

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  12. shurat ghar se hi hogi tabhi sab thik hoga ralliyo se kuch nahi ho sakta jab sansankar hi ye milege ki skert pahne vali girls galat hai to soch boy ki yahi hogi ccharitra andruni gun hai iska poshak se koi lena dena nahi hai

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