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गुरुवार, 25 नवंबर 2010

सरकारी फाइल और मुआवजे का मरहम


अपने देश में आतंकवाद तो स्थायी मेहमान बन चुका है, लेकिन इसके शिकार हुए लोगों का मुआवजा आज भी राजनेताओं और अधिकारियों की लालफीताशाही के बीच झूलता नजर आता है। यही कारण है कि आतंकियों की गोलियों ने मरने वालों के साथ भले कोई भेद न किया हो, लेकिन मृतकों के परिजनों को मिलने वाले सरकारी मुआवजे की राशियों में यह भेद साफ नजर आता है।
मुंबई पर हुए हमले में कुल 179 लोग मारे गए थे। इनमें जो लोग सीएसटी [वीटी] रेलवे स्टेशन के अंदर मारे गए थे, उनके परिजनों को करीब 22 लाख रुपये मुआवजा मिलना निर्धारित हुआ था। लेकिन जो लोग स्टेशन के ठीक बाहर मरे थे, उनके लिए यह राशि घटकर सिर्फ आठ लाख रुपये रह गई। यहां तक कि इस घटना में मारे गए हेमंत करकरे, अशोक काम्टे और विजय सालस्कर जैसे अधिकारियों सहित अन्य सुरक्षाकर्मियों के परिजन भी दुर्भाग्यशाली ही साबित हुए। उन्हें रेल मंत्रालय एवं रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल से तो कुछ मिलना ही नहीं था, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने भी उनके साथ कंजूसी ही दिखाई गई। पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा शहीदों के परिवारों को पेट्रोल पंप देने की घोषणा भी अब तक थोथी ही नजर आ रही है।
 
मुआवजे का खेल

आतंकी हमले के तुरंत बाद रेलमंत्री ने प्रत्येक मृतक के परिवार के लिए 10 लाख रुपये मुआवजा घोषित किया था। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से मिलने वाले चार लाख रुपये इससे अलग थे। राज्य सरकार ने भी सभी मृतकों के लिए इस बार पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा घोषित किया था। इसके अतिरिक्त उड़ीसा में चर्चो पर हुए हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आतंकवाद एवं सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों के लिए तीन लाख रुपये की सहायता योजना शुरू की थी। इस प्रकार उक्त सभी स्त्रोतों को मिलाकर प्रत्येक सीएसटी रेलवे स्टेशन परिसर में मारे गए प्रत्येक मृतक के परिवार को कम से कम 22 लाख रुपये एवं सीएसटी परिसर से बाहर मारे गए लोगों के परिवारों को आठ लाख रुपये मुआवजा मिलना तय था। इसमें प्रधानमंत्री राहत कोष से मिलने वाली सहायता राशि शामिल नहीं है, जिसकी घोषणा हमले के दूसरे दिन ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुंबई आकर की थी।
 
कंजूस राज्य सरकार

आतंकियों के हमले में मारे गए पुलिसकर्मियों के लिए राज्य सरकार ने उदारतापूर्वक 25 लाख रुपये नकद मुआवजे की घोषणा कर दी थी। लेकिन एक दिसंबर, 2008 को जारी शासनादेश से सरकार की कंजूसी उजागर हो जाती है। जिसके अनुसार उक्त राशि मिलने के बाद किसी पुलिसकर्मी की आनड्यूटी मृत्यु पर उसे गृह विभाग से मिलने वाले 13 लाख रुपये दिया जाना उचित नहीं होगा। इस प्रकार आतंकवाद की एक ही घटना में रेलवे स्टेशन के अंदर मारे गए आमजन को 22 लाख रुपये की तुलना में स्टेशन के बाहर आतंकियों की गोली से शहीद हुए पुलिसकर्मियों के परिजनों के हिस्से में महज 12 लाख रुपये ही आए।
 
पीएमओ का हाल

सबसे हास्यास्पद स्थिति तो सर्वशक्तिमान प्रधानमंत्री कार्यालय की है। 27 नवंबर, 2008 को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित विशेष राहत राशि में घायलों एवं मृतकों को उनकी परिस्थिति के अनुसार अधिकतम दो लाख रुपये तक प्राप्त होने थे। मृतकों एवं घायलों को मिलाकर कुल 403 लोगों को यह लाभ मिलना था। आज तक सिर्फ 30 प्रतिशत लोगों को ही प्रधानमंत्री राहत कोष के चेक प्राप्त हो सके हैं। 79 के तो विवरण तक अभी राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय को नहीं भेजे हैं। इसी प्रकार केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इस प्रकार की घटनाओं में मिलने वाली तीन लाख रुपये की राशि भी अभी 100 से कम लोगों को ही मिल सकी है।
 
नहीं मिले पेट्रोल पंप

पेट्रोलियम मंत्रालय की ओर से शहीदों के परिजनों को पेट्रोल पंप देने की घोषणा भी अब तक हवाई ही साबित हुई है। आधे से ज्यादा शहीदों को तो पेट्रोल पंप का आबंटन हुआ ही नहीं है। जिनके नाम से पेट्रोल पंप आबंटित हुए भी हैं, उनका आबंटन भी कागजी ही है। क्योंकि उन्हें पेट्रोल पंप के बजाय पेट्रोलियम कंपनी से प्रतिमाह 25 हजार रुपये नकद दिलवाने की व्यवस्था मात्र की गई है। यह भी कब तक जारी रहेगी, कुछ स्पष्ट नहीं है। ऐसे हवाई पेट्रोल पंपों के लाभार्थियों में हेमंत करकरे एवं अशोक काम्टे जैसे हाई प्रोफाइल शहीदों के परिवार भी शामिल हैं।
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जागो सोने वालों ...

रविवार, 14 नवंबर 2010

एक रि पोस्ट :- काहे का बाल दिवस ??

आजादी के छह दशक से अधिक समय गुजरने के बावजूद आज भी देश में सबके लिए शिक्षा एक सपना ही बना हुआ है। देश में भले ही शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने की कवायद जारी है, लेकिन देश की बड़ी आबादी के गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने के मद्देनजर सभी लोगों को साक्षर बनाना अभी भी चुनौती बनी हुई है।
सरकार ने हाल ही में छह से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा प्रदान करने का कानून बनाया है, लेकिन शिक्षाविदों ने इसकी सफलता पर संदेह व्यक्त किया है क्योंकि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जद्दोजहद में लगा हुआ है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के लिए देश में दस लाख अतिरिक्त शिक्षकों की जरूरत पर जोर देते हुए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि और व्यापक शिक्षा के लिए आईसीटी के इस्तेमाल के अलावा शिक्षण के पेशे की गरिमा और मान सम्मान को बहाल करने की आवश्यकता बताई है।
इग्नू के जेंडर एजुकेशन संकाय की निदेशक सविता सिंह ने कहा कि गरीब परिवार में लोग कमाने को शिक्षा से ज्यादा तरजीह देते हैं। उनकी नजर में शिक्षा नहीं बल्कि श्रम कमाई का जरिया है।
सिंह ने कहा, ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के जीवनस्तर में सुधार किए बिना शिक्षा के क्षेत्र में कोई भी नीति या योजना कारगर नहीं हो सकती है बल्कि यह संपन्न वर्ग का साधन बन कर रह जाएगी। आदिवासी बहुल क्षेत्र में नक्सलियों का प्रसार इसकी एक प्रमुख वजह है।
सरकार के प्रयासों के बावजूद प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। इनमें बालिका शिक्षा की स्थिति गंभीर है।
विश्व बैंक की हालिया रपट में भारत में माध्यमिक शिक्षा की उपेक्षा किए जाने पर जोर देते हुए कहा गया है कि इस क्षेत्र में हाल के वर्षो में निवेश में लगातार गिरावट देखने को मिली है।
भारत में माध्यमिक शिक्षा पर विश्व बैंक रपट में माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में निवेश में गिरावट का उल्लेख किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले खर्च का जहां प्राथमिक शिक्षा पर 52 प्रतिशत निवेश होता है वहीं दक्ष मानव संसाधान को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में कुल खर्च का 30 प्रतिशत ही निवेश होता है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के कुल खर्च का 18 प्रतिशत हिस्सा आता है।
भारत में माध्यमिक स्तर पर 14 से 18 वर्ष के बच्चों का कुल नामांकन प्रतिशत 40 फीसदी दर्ज किया गया जो पूर्वी एशिया और लैटिन अमेरिका में वैश्विक प्रतिद्वन्दि्वयों के कुल नामांकन अनुपात से काफी कम है।
भारत से कम प्रति व्यक्ति आय वाले वियतनाम एवं बांग्लादेश जैसे देशों में भी माध्यमिक स्तर पर नामांकन दर अधिक है।
उच्च शिक्षा की स्थिति भी उत्साहव‌र्द्धक नहीं है। फिक्की की ताजा रपट में कहा गया है कि महत्वपूर्ण विकास के बावजूद भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में कई तरह की खामियां हैं जो भविष्य की उम्मीदों के समक्ष चुनौती बन कर खड़ी है।
रपट के अनुसार इन चुनौतियों में प्रमुख उच्च शिक्षा के वित्त पोषण की व्यवस्था, आईसीटी का उपयोग, अनुसंधान, दक्षता उन्नयन और प्रक्रिया के नियमन से जुड़ी हुई है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन दर की खराब स्थिति को स्वीकार करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि स्कूल जाने वाले 22 करोड़ बच्चों में केवल 2.6 करोड़ बच्चे कालेजों में नामांकन कराते हैं। इस तरह से 19.4 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
सरकार का लक्ष्य उच्च शिक्षा में सकल नामांकन दर को 12 प्रतिशत से बढ़ा कर 2020 तक 30 प्रतिशत करने का है। इन प्रयासों के बावजूद 6।6 करोड़ छात्र ही कालेज स्तर में नामांकन करा पाएंगे, जबकि 15 करोड़ बच्चे कालेज स्तर पर नामांकन नहीं जा पाएंगे।
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क्या एसे ही 'बाल दिवस' मनाया जाएगा ?? मतलब मालूम है किसी नेता को 'बाल दिवस' का .......क्यों मनाया जाता है यह ?? क्या भावना थी 'बाल दिवस' मानाने के पीछे ??? कोई जवाब देगा क्या .............???
शायद आज के भारत में किसी भी नेता के पास इसका कोई जवाब नहीं है !! होगा भी कैसे ?? जो नेता अपने नेताओ को भूल गए वो उनकी बातो को याद रखेगे ...............न.. न ... हो ही नहीं सकता ........टाइम कहाँ है इतना ....और भी काम है .......बड़े आए 'बाल दिवस' मानाने .........कल आ जाना .....मूंछ दिवस के लिए ........तुम सब के सब हो ही ठलुआ ........चलो भागो यहाँ से !! यहाँ अपने लिए टाइम नहीं है और यह आए है 'बाल दिवस' मानाने ??
अच्छा सुनो जब आ ही गए हो तो P.A से मिल लो .......कुछ करवा देते है ........अरे कुछ और नहीं तो बच्चा सब टाफी तो खा ही लेगा .........है कि नहीं ?? अब खुश माना दिए न तुम्हारा 'बाल दिवस' !! अब जाओ बहुत काम बाकी है देश का निबटने को !!
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वैसे यह नेता ठीक कहते है क्या लाभ है 'बाल दिवस' मानाने का ?? जब आज भी हम इन बच्चो को वह माहौल नहीं दे पाये जब यह दो वक्त की रोटी की चिंता त्याग शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर पाए ! 'बाल दिवस' केवल मौज मस्ती के लिए तो नहीं था ........इसका मूल उद्देश तो हर बच्चे तक सब सरकारी सुविधाओ को पहुँचाना था .......कहाँ हो पाया यह आज़ादी के ६३ साल बाद भी ............ 
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जागो सोने वालों ...

बुधवार, 10 नवंबर 2010

कोटक लाइफ इंश्योरेंस कंपनी :- भगवान् बचाए !!!

आज दोपहर की बात है एक कॉल आया ....दिल्ली का नंबर था .... जब उठाया तो उधर से बहुत ही मधुर आवाज़ में दुआ सलाम की गई ... हमने भी पलट कर जवाब दे दिया ! पर यह समझ में नहीं आया था कि बोल कौन रहा है ...!!! 

खैर अगले ने इतने में बताया कि कोटक लाइफ इंश्योरेंस कंपनी  से बोल रहा हूँ .... हमने कहा जी बोलिए .....इतना कहना था कि अगला वही रटे रटाये जुमले बोलने लगा ....."आपका नंबर हमारे लकी ड्रा में निकला है "..... "कंपनी आपको हमारा सब से बेस्ट प्लान देना चाहती है" आदि आदि .. !!!

हमने कहा भाई पहले यह तो बता दो हमारा नंबर कहाँ से मिला .... जवाब मिला सर कंपनी ने दिया है ... बड़ा अजीब लगा ...खैर फिर पुछा उस से आपको मालुम है इस तरह फ़ोन करना गैर क़ानूनी है सरकार ने बैन लगाया हुआ है ....बस इतना कहना था कि उधर से वह शुरू हो गया .... आप यह बोलो आप को प्लान लेना है कि नहीं ....ज्यादा कानून ना समझाओ हम को ...!! जो अब तक एक शरीफ बन्दा लगा रहा था .... उसके बोलने का अंदाज़ कतई शरीफाना नहीं था हमारे मना करने के बाद !

हमने फिर पुछा कि जब हमारा नंबर NATIONAL DO NOT DISTURB REGISTRY में रजिस्टर किया  हुआ है तो आप इस नंबर पर कॉल कैसे कर सकते है ? जवाब आया क्यों नहीं कर सकते ?? बड़ी हैरत हुयी ... सरकार ने एक नियम बनाया हुआ है और किस बेपरवाही से यें लोग उस नियम को ताक पर रखे हुए अपनी मनमानी चला रहे है !

हद तो तब हो गई जब हमारे यह दोबारा कहने पर कि भाई आप हमें माफ़ करें और दोबारा फोन करने की तकलीफ ना उठायें उधर से जवाब आया कि हमें भी कोई शौक नहीं है आपको कॉल करने का ....भाड़ में जाओ... और कॉल काट दी गई !!!!


सवाल यह पैदा होता है जिस कंपनी के बन्दे अपने होने वाले ग्राहकों से किस मुद्दे पर असहमति होने पर ऐसा बर्ताव करते हो ....वह किसी ग्राहक को उसका पैसा लौटते समय क्या करते होंगे ???


खैर इस बदतमीजी देख सोचा कि इस मामले में कुछ तो जरूर किया जाना चाहिए .... नंबर को दोबारा जांचा तो पाया कि नंबर Reliance का है और दिल्ली का है .... हमारा नंबर भी Reliance का ही है और पोस्टपैड है सो तुरंत ही कस्टमर केयर पर कॉल लगाया और ड्यूटी पर मौजूद श्री अल्तमश जी से बात कर उनको पूरी बात बताई .... उन्होंने हमसे वह नंबर माँगा जिस से कॉल आई थी ... 011-32319222 नंबर दे दिया गया तो इस बात कि पुष्टि हुयी कि नंबर Reliance का ही है | श्री अल्तमश ने भी इस बात की पुष्टि की कि अगर आपका नंबर NATIONAL DO NOT DISTURB REGISTRY में रजिस्टर किया जा चूका है तो उस पर कोई भी Sales Call वर्जित है !

हमने यह भी जानना चाहा कि इस मामले में क्या हम कोई शिकायत दर्ज करवा सकते है ... जवाब मिला हाँ !! और हम से इस मामले से जुडी सब जानकारी ले कर हमारी शिकायत दर्ज कर ली गई  और हमे एक complaint नंबर  :- 140787594 दे दिया गया और यह भी सूचित किया गया है कि १५ दिनों के अंदर इस सम्बन्ध में उचित कारवाही कर सूचित किया जायेगा !

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जब देश का वित्त मंत्री इस तरह की कॉल से दुखी है तो आम आदमी भला क्या कर सकता है ?? 
देखें :-

सच यह है कि सरकार ने नियम तो बना दिया पर उसको सही तरीके से अमल में नहीं ला पा रही है ! और यह कंपनीयां इस का फायेदा उठा रही है और आम आदमी उनको झेलने के लिए मजबूर है !
देखें :-

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जागो सोने वालों ...

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

ओबामा बच्चो के साथ मनायेगे दिवाली !!

(चित्र संताबंता.कॉम से साभार )


दिवाली पर्व है खुशियों का, उजालो का, लक्ष्मी का !
यह दिवाली आपकी ज़िन्दगी खुशियों से भरी हो,
दुनिया उजालो से रोशन हो, घर पर माँ लक्ष्मी का आगमन हो!


शुभ दीपावली!
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जागो सोने वालों...

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

त्योहारी बाजार और लुभावनी स्कीमों का सच


त्योहारी बाजार सज चुका है। स्कीमों की हर तरफ से बौछार हो रही है। हो भी क्यों न, कई सालों के बाद यह साल कारोबारियों को ऐसा नजर आ रहा है, जिसमें उन्हें खूब मुनाफा होता दिख रहा है। इसकी वजहें कई हैं। अर्थव्यवस्था अब मंदी की मार से उबर चुकी है। शेयर बाजार आसमान की तरफ कुलांचे भर रहा है।

कई सालों बाद वर्ष 2010 ऐसा साल आया है, जब मानसून की भरपूर मेहरबानी हुई है। देश के सभी बांध पानी से लबालब हैं। खरीफ की फसल में तमाम नुकसान के बावजूद इस साल पिछले कई सालों के मुकाबले इजाफा हुआ है और रबी की बुआई का रकबा पांच से सात फीसदी तक बढ़ गया है।

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार डा. सी रंगराजन ने अनुमान व्यक्त किया है कि इस साल रबी की फसल में भारी इजाफे से कृषि के क्षेत्र में विकास की दर 4.5 फीसदी के आसपास रहेगी।

ये तमाम अनुकूल स्थितियां हैं, जिनकी वजह से इस बार त्योहारी बाजार में पिछले कुछ सालों के मुकाबले कहीं ज्यादा रौनक दिख रही है। 2009 औैर इसके पहले 2008 में भी हालांकि हमारी अर्थव्यवस्था की विकास दर छह फीसदी से ऊपर थी, लेकिन पूरी दुनिया में मंदी छाई होने के कारण त्योहारी बाजार में आशंकाओं के बादल मंडरा रहे थे, जिनसे इनकी रंगत फीकी रही, लेकिन अब हिंदुस्तान में तो कारपोरेट सेक्टर से खुशखबरियां आ रही हैं, दुनियावी अर्थव्यवस्था में भी धीरे-धीरे रंग दिखने लगे हैं।

यही कारण है कि इस बार त्योहारी बाजार नवरात्रों से कुछ पहले ही सज गया था और इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय तक पूरे शबाब में आ चुका था। शायद बाजार की नब्ज और ग्राहकों के मूड में दिख रहे सकारात्मक भावों का ही यह असर है कि इस साल त्योहारी बाजार ढेर सारे ऑफर लेकर आया है, जिससे ग्राहक खूब उत्साहित हैं और अपनी खरीददारी की सूची को या तो अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं या दे चुके हैं।

एलजी, सैमसंग, पैनासोनिक, फिलिप्स। लगभग हर कंपनी इस त्योहारी बाजार के लिए कोई न कोई धमाका ऑफर लेकर आई है। सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां ही नहीं, दूसरे उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियां भी ग्राहकों को लुभाने के लिए कई शानदार ऑफर लेकर आई हैं। यहां तक कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में रीयल मार्केट में डेवलपर्स फ्लैटों की कीमत में विशेष त्योहारी खरीददारी छूट देते हुए दो लाख से 15-16 लाख तक की छूट दे रहे हैं।

कई कंपनियां 'पुराना लाओ, नया ले जाओ' जैसी स्कीमों के तहत गिफ्ट और डिस्काउंट ऑफर कर रही हैं, जिससे बाजार में इस बार पिछली बार के मुकाबले 25 से 30 फीसदी ज्यादा बिक्री होने का अनुमान है। दिल्ली के कई शोरूम में विजिट के बाद यह देखने को मिला कि लोगों को पुराने के बदले नए ले जाने की स्कीम काफी लुभा रही है।

दरअसल, ग्राहक आमतौर पर दीवाली जैसे त्योहार के मौके पर घर की साफ-सफाई तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि वह चाहता है कि घर की पुरानी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसें भी नई हो जाएं। इस कारण पुराने के बदले में नया ले जाने का प्रस्ताव ग्राहकों को खूब आकर्षित कर रहा है।

बाजार के सेंटीमेंट अच्छे देखकर उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों ने इस बार समय से काफी पहले ही बाजार को गुलजार कर दिया है। उन्हें लगता है कि उपभोक्ताओं के पास इस साल खरीददारी के लिए इतने पैसे हैं कि वे उनकी उम्मीदों पर हर हाल में खरे उतरेंगे।

यही कारण है कि आश्वस्त बाजार अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए घडि़यां, डीवीडी प्लेयर, जूसर मिक्सर, वाटर प्योरीफायर से लेकर नकद और कैश बैक तक के ऑफर दे रहा है। पैनासोनिक इस त्योहारी शॉपिंग में ग्राहकों को 7,900 रुपये तक के गिफ्ट दे रही है तो कई दूसरी कंपनियों ने तोहफों की धनराशि 10,000 रुपये तक कर दी है, लेकिन यह भी सही है कि इतना बड़ा तोहफा पाने के लिए उसी अनुपात की खरीददारी भी करनी होगी।

एलजी ने इस बार ग्राहकों को 80 करोड़ रुपये तक के तोहफों को देने का मन बनाया है, क्योंकि उसकी बिक्री का अनुमान 4000 करोड़ रुपये से ऊपर का है। सिर्फ एलजी ही नहीं, सभी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों और दूसरे टिकाऊ उपभोक्ता सामग्री बनाने वाली कंपनियों को भरोसा है कि इस बार वह पिछले साल के मुकाबले 30 से 45 फीसदी तक की ज्यादा बिक्री करेंगी। हमेशा की तरह टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, म्यूजिक सिस्टम और ऑटोमोबाइल्स जैसे उपभोक्ता सामानों की बिक्री के इस साल भी ज्यादा रहने की उम्मीद है।

कुछ सालों पहले सीआईआई ने एक अध्ययन अनुमान से बताया था कि दीपावली के आसपास त्योहारी मौसम में भारतीय उपभोक्ता बाजार 40 से 50 हजार करोड़ की बिक्री कर लेता है, जो साल दर साल 15 से 20 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। मतलब यह कि अब इसके बढ़कर 55 से 60 हजार करोड़ रुपये हो होने की उम्मीद है।

जिस तरह से पिछले एक दशक से अर्थव्यवस्था में एक निरंतर वृद्धि जारी है, उसी तरह से पिछले एक दशक में उपभोक्ता बाजार में बिक्री का ग्राफ भी 15 से 20 फीसदी सालाना की दर से बढ़ा है और उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति में 25 से 30 फीसदी का उछाल आया है। लब्बोलुआब यह कि बढ़ी हुई बिक्री के बावजूद उपभोक्ता अभी भी ठोस बने हुए हैं।

हाल के सालों में टीवी, फ्रिज, एयरकंडीशनर, वैक्यूम क्लीनर, वाटर प्यूरोफायर, माइक्रोओवन, कंप्यूटर, होम थिएटर, लैपटॉप तथा ऑटोमोबाइल्स विशेषकर कारें और दुपहिया वाहन फेस्टिव सीजन में खरीददारों की खास पसंद बने हुए हैं। इन उत्पादों की बिक्री बाजार में होने वाले कुल कारोबार में 60 से 65 फीसदी तक की हिस्सेदारी रखती है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले एक दशक से इन उत्पादों का बाजार बिक्री के मामले में शीर्ष स्थान हासिल किए हुए है और अगले कई सालों तक बिक्री के लिहाज से शीर्ष में इन्हीं उत्पादों का कब्जा रहेगा।

यों तो हर कोई जानता है कि लुभावनी स्कीमों के पीछे ग्राहकों का भला नहीं, कंपनियों का अपना फायदा छिपा होता है। उनकी स्कीमें एक तरह से लुभावना जाल होती हैं, जो ग्राहकों को न सिर्फ खरीददारी के लिए फांसती हैं, बल्कि जरूरत न होने पर भी बाजार ग्राहकों का कुछ इस तरह से माइंड वॉश करता है कि माहौल के सुरूर में ही उपभोक्ता तमाम गैर जरूरी खरीददारी कर लेता है।

इस तरह देखा जाए तो स्कीमें ग्राहक को फांसने, उन्हें येन-केन प्रकारेण उत्पादों को बेचने का जरिया होती हैं। यही इनका एक मात्र मकसद भी होता है। बावजूद इसके आधुनिक अर्थशास्त्र में ऐसी स्कीमों की बिक्री की बढ़ोतरी में जबरदस्त हाथ होता है। इसलिए अगर त्योहारी बाजार में स्कीमों की बौछार हो रही हो तो इसके मकसद साफ हैं, ग्राहक को हर हाल में शिकार बनाना है।

खरीददारों का नया सलाहकार बन गया है इंटरनेट

इंटरनेट के जितने भी उपयोग दिखने में आएं, उतने कम हैं। दरअसल, इंटरनेट अब लगभग हर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है और हर किसी की जरूरत का जरूरी हिस्सा बन चुका है। यही कारण है कि त्योहारी खरीददारी में भी इंटरनेट की हाल के सालों में जबरदस्त भूमिका उभरकर सामने आई है।

इंटरनेट आज त्योहारी खरीददारों का ही नहीं, बल्कि हर मौसम और माहौल के खरीददारों का अच्छा खासा सलाहकार बन चुका है। फिर चाहे ऐसे खरीददार किसी भी उम्र समूह के हों। हां, यह बात जरूर है कि इंटरनेट के सबसे ज्यादा दीवाने और उस पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले युवा हैं। आज की तारीख में युवा जो कुछ भी खरीदते हैं, पहले उस उत्पाद को इंटरनेट में सर्च करते हैं और फिर ऑनलाइन ही बाजार में मौजूद वैसे ही तमाम उत्पादों की जांच-परख करते हैं। जो उत्पाद ज्यादा किफायती और ज्यादा बेहतर लगता है, उसे खरीदते हैं यानी अब युवा उपभोक्ताओं के खरीददारी की मन: स्थिति को तय करने में इंटरनेट की काफी बड़ी भूमिका है।

यही कारण है कि आज कंपनियां न सिर्फ इंटरनेट में ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन देने लगी हैं, बल्कि सभी कंपनियां खुद की वेबसाइटें प्राथमिकता के स्तर पर बनाती हैं ताकि इस वजह से उनकी बिक्री में किसी तरह की कमी न होने पाए। इंटरनेट ने जहां एक तरफ ग्राहकों के लिए एक जैसी विभिन्न उत्पादों की जांच-परख का मौका मुहैया कराया है, वहीं दूसरी तरफ वह उन्हें दुनिया के बाजारों तक भी ले गया है, जिससे ग्राहकों का भी फायदा हुआ है और उत्पादन जगत का भी। यही कारण है कि इंटरनेट की दोनों ही क्षेत्रों से खूब निभ रही है।

त्योहारी बाजार का मक्का क्यों बनी है दीवाली

आमतौर पर देखने में आता है कि जो लोग शॉपिंग में जरा भी रुचि नहीं रखते, दीवाली आते ही उन्हें भी शॉपिंगमेनिया घेर लेता है। अपने आगोश में ले लेता है। दरअसल, देश में तकरीबन दो करोड़ लोग संगठित क्षेत्र में नौकरी करते हैं और इस समय सात से नौ लाख तक लोग विभिन्न तरह की बहुराष्ट्रीय कंपनियों, निगमों आदि में काम करते हैं। इसके अलावा देश के छह से सात करोड़ लोग निजी क्षेत्र में काम करते हैं। इन सब लोगों को आमतौर पर वेतन वृद्धि का बकाया और बोनस दीवाली के मौके पर ही दिया जाता है।

देश का अधिकृत वित्तीय वर्ष भले अप्रैल माह से शुरू होता हो, लेकिन पारंपरिक वित्तीय वर्ष दीवाली से ही शुरू होता है। कुल मिलाकर देश का जॉब सेक्टर दीवाली के आसपास बाजार में खरीददारी के लिए उपभोक्ताओं के पास 90,000 से 1,00,000 करोड़ रुपये तक की नकदी मुहैया कराता है। इतने बड़े पैमाने पर बाजार में आने वाली यह नकदी बाजार का कायाकल्प कर देती है। तभी तो कई दुकानदार पूरे साल दीवाली के इंतजार में बिताते हैं। दीवाली के आसपास बाजार का न सिर्फ मुनाफा 20 से 40 फीसदी तक बढ़ जाता है, बल्कि बाजार की फ्रीक्वेंसी और बिक्री का वैल्यूम 400 से 600 फीसदी तक बढ़ जाता है। मीडिया और दूसरे संचार क्षेत्र वर्षा ऋतु जाते ही और त्योहारी मौसम के आहट देते ही इस किस्म का माहौल रच देते हैं कि उपभोक्ताओं में खरीददारी का एक जुनून पैदा हो जाता है।

नवरात्र के पहले ही उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियां अपने आकर्षक विज्ञापनों से बाजार को भर देती हैं। जिससे लोगों में उन उत्पादों की जरूरत न होने पर भी उनके खरीदने की लालसा कुलांचे भरने लगती है।

आलेख :- वीना सुखीजा

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अब यह आप को सोचना है कि आप बाज़ार की इस चाल में बाकी सब की तरह ही भेड़ चाल चलने वाले है या सच में एक जागरूक ग्राहक की तरह सिर्फ़ वही चीज़ बाज़ार से लेने जायेगे जिस की आपको सच में जरूरत है !

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जागो सोने वालो...