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गुरुवार, 2 मई 2013

क्या पाया उन बेटियों ने ...



कोई पूछे जा कर उन बेटियों से ...
आज क्या है उनके दिल मे ...
जब से होश संभाला ...
एक ही आस रही कि पापा घर आ जाएँ ... 

 

जिस तस्वीर को पापा कहते है उस तस्वीर मे प्राण आ जाये ...
आज आएंगे पापा ...
निष्प्राण हो कर ...
एक कैद से आज़ाद हो कर ...

 

एक ताबूत मे फिर कैद हो कर ...
फिर एक तस्वीर बनने के लिए ...
क्या पाया उन बेटियों ने ...

  

पापा को खो कर ...
पा कर ...
फिर खो कर !!?? 

( सरबजीत सिंह और उनके परिवार को समर्पित मेरी यह स्वरचित रचना ) 


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जागों सोने वालों ...