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रविवार, 8 नवंबर 2009

वीआईपी सुरक्षा को लेकर उठे सवाल

चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन [पीजीआई] में गंभीर अवस्था में लाए गए एक मरीज को, वहां एक समारोह के सिलसिले में गए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सुरक्षा के चलते प्रवेश की अनुमति न मिलने से हुई मौत की घटना के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या वीआईपी सुरक्षा एक आम आदमी की जान से अधिक महत्वपूर्ण है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान [एम्स] के आर्थोपेडिक विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा सी एस यादव कहते हैं कि वीआईपी सुरक्षा महत्वपूर्ण व्यक्ति को ही दी जाती है इसलिए इसके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। लेकिन मरीज की जान बचाना भी अस्पताल की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि एम्स में अक्सर वीआईपी, मंत्री, सांसद इलाज के लिए आते हैं। उनकी अपनी सुरक्षा होती है और अस्पताल की अपनी सुरक्षा होती है। पीएम को एसपीजी की सुरक्षा मिली हुई है। उनके कमांडो बहुस्तरीय सुरक्षा घेरा बनाते हैं। लेकिन अपरिहार्य परिस्थितियों में मरीज को जाने दिया जाता है। मरीज इलाज के लिए ही अस्पताल आते हैं। समझौता न पीएम की सुरक्षा के साथ किया जा सकता है और न ही मरीज के स्वास्थ्य के साथ।

डा यादव ने कहा कि वीआईपी सुरक्षा और अस्पताल प्रशासन के बीच सांमजस्य होने पर आम मरीजों को किसी भी तरह की दिक्कत होने का सवाल ही नहीं उठता। ग्लोबल हास्पिटल की इन्फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डा अर्चना धवन बजाज कहती हैं कि प्रधानमंत्री महत्वपूर्ण हस्ती हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा जरुरी है लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि मरीजों को इससे दिक्कत न हो। अगर शहर के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में गंभीर अवस्था में लाए गए एक मरीज को केवल इसलिए प्रवेश न दिया जाए कि वहां कोई वीआईपी हस्ती है तो मेरी राय में यह अस्वीकार्य है।

डा अर्चना सवाल करती हैं कि आपात सेवाएं किसके लिए और क्यों रहती हैं। आपात स्थिति में इन सेवाओं का मरीजों के लिए ही इस्तेमाल न हो तो इनकी उपयोगिता क्या होगी। अगर अस्पताल परिसर में आयोजित समारोह में आए प्रधानमंत्री की सुरक्षा से मरीजों को दिक्कत हो तो समारोह अन्यत्र करना बेहतर होगा। समारोह से ज्यादा महत्वपूर्ण मरीज की जान होती है। डा अर्चना ने बताया कि प्रसिद्ध क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की पत्नी जब गर्भवती थीं तो यह जोड़ा उनके पास नियमित जांच के लिए आता था। वह कहती हैं 'सहवाग दंपती अक्सर रात को आते थे ताकि उनकी वजह से अस्पताल में कोई परेशानी न हो। किसी को पता ही नहीं चलता था कि यह जोड़ा आया है। जब उनकी पत्नी ने बेटे को जन्म दिया, तब भी किसी को पता नहीं चल पाया था।

सफदरजंग अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा के टी भौमिक कहते हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा एसपीजी के तहत आती है इसलिए उनके नियमों का पालन करना होगा। उनकी सुरक्षा एसपीजी कमांडो अपने तरीके से करते हैं और अस्पताल प्रशासन उनकी बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में कोई हस्तक्षेप नहीं करता। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक बार सफदरजंग अस्पताल आए थे। सरोजिनी नगर में हुए बम विस्फोट से घायल मरीजों की खैरियत पूछने। तब उनकी सुरक्षा को लेकर किसी तरह की अफरातफरी नहीं हुई थी। जहां तक हमने सुना है, प्रधानमंत्री खुद कहते हैं कि उनकी सुरक्षा की वजह से लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए।

डा अर्चना कहती हैं कि अस्पताल के लिए मरीज की जान बचाना उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी वीआईपी सुरक्षा महत्वपूर्ण है। डा भौमिक के अनुसार 'अस्पताल प्रशासन वीआईपी सुरक्षा के साथ सामंजस्य स्थापित कर ले तो मरीजों को दिक्कत होने का सवाल ही नहीं उठता।'

डा यादव कहते हैं कि वीआईपी सुरक्षा का अनुभव न होने पर कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना हो सकती है लेकिन मरीज की जान बचाना अस्पताल की पहली प्राथमिकता होती है।

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इस घटना से नेताओ को सबक लेना चाहिए कि एक 'आम आदमी' की जान भी उतनी ही कीमती है जितनी कि उनकी ! किसी भी नेता में और एक आम आदमी में अगर कुछ फर्क होता है तो सिर्फ़ 'सत्ता' का | एक 'आम आदमी' का वोट ही इन नेताओ को इतना 'महत्वपूर्ण' बनता है कि उनको और उनके परिवार को 'वीआईपी सुरक्षा' दी जाती है पर उनकी यही 'वीआईपी सुरक्षा' अगर किसी निर्दोष 'आम आदमी' की मौत का कारण बन जाए तो यह सवाल उठाना लाज़मी हो जाता है की आख़िर असली 'वीआईपी' कौन है - एक 'नेता' या एक 'आम आदमी' ??

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कुछ लोगो का मानना है कि गलती सुरक्षा कर्मियों की थी जबकि एसा है नहीं गलती सरासर इन 'वीआईपी' लोगो की है जो अपने आगे किसी को भी कुछ नहीं समझते फ़िर एक आम आदमी की तो बिसात ही क्या ???

पर महाराज .......जाग जाओ 'आम आदमी' अब उतना 'आम' भी नहीं रह गया है वो भी अब 'वीआईपी' हो गया है....बाकी तुम्हारी मर्ज़ी .....अपनी तो आदत है सो कहते है .......जागो सोने वालों.......

4 टिप्‍पणियां:

  1. tippani mein ek lambaa lekh likhtaa magar aaj hindi tool kaam nahee kar raha, sundar likhaa apne !

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  2. लगता है लोकतंत्र प्राथमिकताओं से आप वाक़िफ़ ही नहीं हैं. लोकतंत्र में चाहे अस्पताल हो या स्कूल, किसी भी प्राथमिकता जनता नहीं है. इसकी हर व्यवस्था की पहली और अंतिम प्राथमिकता राजनेताओं की जेब भरना है.

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  3. ये कौन सी नयी बात है शिवम जी....कोई नहीं जागने वाले हैं ये कमबख्त!

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