आज जब यह पोस्ट लिख रहा हूँ तो मन में केवल एक विचार आ रहा है .........जिस तरह हम लोगो ने कुछ लोगो को एकदम भुला दिया है ........क्या एक दिन हम लोगो को भी ऐसे ही भुला दिया जायेगा ??
वैसे इस सवाल का जवाब भी है मेरे पास .......जी हाँ ठीक इसी तरह ........बिलकुल इसी तरह से हम सब भी भुला दिए जाने वाले है !! अरे जब बड़े बड़े कारनामे करने वाले वीरो को हम लोग ने भुला दिया तो फिर हमारी तो औकात ही क्या है ?? क्यों कर याद रखा जाए हम लोगो को ......ऐसा क्या कर रहे है हम किसी के लिए भी जो हमे याद रखा जाए ??
आइये एक ख़त पढवाता हूँ आप सब को .....
“22 मार्च,1931,
“साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है – इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
आपका साथी,
भगत सिंह ”
“साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है – इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
आपका साथी,
भगत सिंह ”
यह है शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी का अंतिम पत्र अपने साथियों के नाम ..... हमारे नाम !!!
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शायद अब कुछ कहने कि जरूरत नहीं है ..........और अगर अब भी है तो यह हम सब का दुर्भाग्य है |
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जागो सोने वालो ...
जय हिन्द....
जवाब देंहटाएंभगत सिंह का एक और दस्तावेज़..
फ़ासी के पहले ३ मार्च को अपने भाई कुलतार को लिखे पत्र में भगत सिह ने लिखा था -
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।
शिवम भैया... इस पोस्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
इस पोस्ट के लिए आभार
जवाब देंहटाएंयहाँ पढ़ें उनकी माता जी का एक ख़त
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
आभार है इस पोस्ट के लिए ...
जवाब देंहटाएंजागेंगे वह जो सो जाते है .हम तो आंख मून्दे पडे है . हमे कोई चिठ्ठी जगा नही सकती
जवाब देंहटाएंआभार है इस पोस्ट के लिए ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति .......
इसे पढ़े और अपने विचार दे :-
क्यों बना रहे है नकली लोग समाज को फ्रोड ?.
बहुत सुन्दर पोस्ट ... उस महँ क्रन्तिकारी को सलाम ... इस निर्भीकता से मौत को गले लगाना ... उफ़ ! रोम रोम खड़े हो जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंशहीद भगत सिंह की इन पंक्तियों को एक बार और पढने का अवसर आपके प्रयासों से मिला | साथ ही टिप्पणियों के माध्यम से शहीद भगत सिंह से सम्बंधित अन्य जानकारी मिली | आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखते हो भैयाजी
जवाब देंहटाएंकभी हमारे द्वारे भी आना
जै राम जी की
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जवाब देंहटाएंShivam ji,
I wrote a comment on this post , which didn't appear here . I guess it is lost in it's way due to poor net connection or something.
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शिवम भाई, भगत सिंह के पत्र के बहाने आपने इस देश की सोई हुई जनता को अच्छे से जगाया है।
जवाब देंहटाएं................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
बहुत सुन्दर पोस्ट
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