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सोमवार, 21 सितंबर 2009

आतंकियों के आका - परवेज मुशर्रफ

परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष ही नहीं रहे हैं, बल्कि वह आतंकियों के आका भी रहे हैं। यहां तक कि एक भारतीय सेना के अधिकारी का गला रेतने वाले आतंकी को उन्होंने एक लाख रुपये के इनाम से नवाजा था। यह साल 2000 की बात है। लेकिन अगले ही साल अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद उन्हें अमेरिकी दबाव के चलते अपने इस पसंदीदा आतंकी के संगठन पर पाबंदी लगानी पड़ी थी। मुशर्रफ का यह 'आतंकी' चेहरा पाकिस्तान के ही मीडिया ने उजागर किया है।

 
'द न्यूज' अखबार ने रविवार को बताया है कि मुशर्रफ आतंकी कमांडर इलियास कश्मीरी के काम से इतने खुश हुए कि उन्हें इनाम में एक लाख रुपये बख्श दिए। इलियास 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में बेहद सक्रिय था। रिपोर्ट के मुताबिक 26 फरवरी, 2000 को कश्मीरी अपने 25 साथियों के साथ नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सीमा में घुसा। वह एक दिन पहले भारतीय सेना की कार्रवाई में 14 आतंकियों की मौत का बदला लेने के लिए गया था। उसने नाकयाल सेक्टर में भारतीय सेना पर घात लगा कर हमला बोल दिया। आतंकियों ने भारतीय सेना के एक बंकर को घेर लिया और ग्रेनेड से हमला किया। इस हमले में घायल एक सैन्य अधिकारी को कश्मीरी ने अगवा कर लिया और बाद में उसने अधिकारी का सिर कलम कर दिया। यही नहीं, उसने अधिकारी का कटा हुआ सिर पाकिस्तान सेना के शीर्ष अधिकारियों को पेश किया। इस पर खुश होकर तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाक सेना के कमांडो रहे कश्मीरी को एक लाख रुपये का इनाम दिया।
अखबार लिखता है कि कश्मीरी से मुशर्रफ को बेहद लगाव था। उन्होंने उसे आतंकी खेल खेलने की खुली छूट दे रखी थी। लेकिन 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद दबाव के चलते मुशर्रफ को कश्मीरी के संगठन पर प्रतिबंध लगाना पड़ा।

कौन था इलियास कश्मीरी ??

कश्मीरी हरकल-उल-जिहाद अल-इस्लामी [हूजी] का कमांडर था। उसके संबंध अल कायदा और तालिबान सहित तमाम आतंकी संगठनों से थे। बताया जाता है कि वह पिछले सप्ताह ड्रोन हमले में मारा गया।
कश्मीरी पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस गु्रप में बतौर कमांडो काम कर चुका था। अफगानिस्तान से रूसी सेना हटने के बाद पाक हुक्मरान ने उसे कश्मीरी आतंकियों के साथ काम करने के लिए भेजा था। तब 1991 में वह हूजी में शामिल हुआ। कुछ दिनों बाद हूजी प्रमुख कारी सैफुल्ला अख्तर से उसके मतभेद हो गए और उसने '313 ब्रिगेड' नाम से अपना संगठन बना लिया।
गुलाम कश्मीर के कोटली का रहने वाला कश्मीरी बारूदी सुरंग बिछाने में माहिर था। अफगानिस्तान में लड़ाई के दौरान उसकी एक आंख खत्म हो गई थी। उसे भारतीय सेना ने एक बार पूंछ इलाके में गिरफ्तार भी किया था। दो साल बाद वह जेल तोड़ कर भाग निकला था। वर्ष 1998 में कश्मीरी को भारतीय सेना पर हमले करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
जैश-ए-मुहम्मद के गठन के बाद पाकिस्तानी सेना से कश्मीरी के रिश्ते खराब हो गए। सेना उसे जैश का सदस्य बनाना चाहती थी। सेना की इच्छा थी कि कश्मीरी जैश सरगना मसूद अजहर को नेता मान ले। पर उसे यह गवारा नहीं हुआ।
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क्या अब भी आप यह चाहते है कि परवेज़ मुशर्रफ़ भारत में आयोजित विभिन्न सेमिनारों में बतौर महेमान आयें ??
अगर हाँ , तो सिर्फ एक बात कहेनी है ......... जागो सोने वालों ......

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