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गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

अंग्रेजी में कच्चे, यूपी के बच्चे

यूपी में तीसरी से पांचवीं तक के 91.1 फीसदी बच्चे अंग्रेजी के वाक्य पढ़ ही नहीं पाते। सबसे खराब हालत गुजरात की है। गुजरात में मात्र पांच प्रतिशत बच्चे ही अंग्रेजी के वाक्य पढ़ने में सक्षम हैं। इनके बाद कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और झारखंड के बच्चे अंग्रेजी से भयभीत हैं। खास बात यह है कि मेरठ और सहारनपुर मंडल के बच्चे नाक न बचाएं तो अंग्रेजी न पढ़ पाने का 'काला तमगा' शायद उत्तर प्रदेश के खाते में दर्ज होता।

केंद्र सरकार की एन्युअल एजुकेशन स्टेटस रिपोर्ट इसकी पुष्टि कर रही है। अंग्रेजी पढ़ने में गुजरात के बच्चे सबसे ज्यादा कमजोर हैं, यहां तीसरी से पांचवीं कक्षा के मात्र पांच फीसदी बच्चे ही अंग्रेजी के वाक्य पढ़ पाते हैं।

गुजरात के बाद यूपी के बच्चे अंग्रेजी में कमजोर हैं। यहां 91.1 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ सकते। इनके बाद कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और झारखंड के बच्चे अंग्रेजी पढ़ने में कमजोर हैं, यहां क्रमश: 89.7, 89.5 व 89.4 प्रतिशत बच्चे इंग्लिश नहीं पढ़ सकते। अंग्रेजी पढ़ने के मामले में गोवा के बच्चे अव्वल हैं, यहां 65.8 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी अच्छी तरह पढ़ सकते हैं।

मेरठ और सहारनपुर मंडल ने उत्तर प्रदेश की लाज बचा रखी है। यदि यहां के बच्चे मेहनत न करें तो शायद अंग्रेजी नहीं पढ़ पाने वाले राज्यों में पहले स्थान पर यूपी ही होता। टॉप फाइव जिलों में मेरठ-सहारनपुर मंडल के चार जिलों का कब्जा है। प्रदेश में बागपत के सबसे ज्यादा, 32.9 फीसदी बच्चे अंग्रेजी पढ़ सकते हैं। दूसरे पायदान पर 27.1 प्रतिशत बच्चों के साथ फैजाबाद है। तीसरे स्थान पर गाजियाबाद है, यहां 21.7 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी पढ़ सकते हैं। 18 प्रतिशत बच्चों के साथ गौतमबुद्धनगर और हाथरस चौथे स्थान पर हैं जबकि, 17.8 फीसदी बच्चों के साथ बुलंदशहर और 15.4 बच्चों के साथ मुजफ्फरनगर पांचवें और छठे पायदान पर हैं।

पूर्वाचल ने कटाई नाक

पश्चिम के जिले जहां लाज बचा रहे हैं, वहीं पूर्वाचल के कई जिले नाक कटा रहे हैं। राष्ट्रीय सर्वेक्षण के आंकडे़ भी कुछ ऐसा ही खुलासा कर रहे हैं। प्रदेश में ललितपुर के बच्चे अंग्रेजी पढ़ने में सबसे ज्यादा कमजोर हैं, यहां 99।6 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ पाते। बदायूं और चित्रकूट में मात्र 1.8 प्रतिशत बच्चे ही अंग्रेजी पढ़ सकते हैं जबकि, इनके बाद नंबर बहराइच और सोनभद्र का है। बहराइच में 97.7 प्रतिशत और सोनभद्र में 97.5 प्रतिशत बच्चे इंग्लिश पढ़ने में सक्षम नहीं हैं। अगले पायदान पर बांदा और फर्रुखाबाद यहां क्रमश: 97.2 और 96.7 बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ पाते।

रिपोर्ट - मनीष शर्मा

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अरे भाई, माना कि हम हिंदी के हितैषी है पर इस का यह मतलब तो बिलकुल नहीं है कि एक और भाषा कों ना सीखा जाये ? अंग्रेजी का प्रयोग आज कल हर जगह हो रहा है इस लिए यह जरूरी हो जाता है कि हमे भी इस का ज्ञान हो | कोई भी यह नहीं कहता कि आप कों ज्ञान पाने का अधिकार केवल अपनी मात्रभाषा में है ............इस लिए समझदारी इसी में है कि समय के साथ चलते हुए हम हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी कों भी अपनाये !

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कोई भी राज्य या देश अज्ञानता के सहारे आगे नहीं बढ़ सकता ........................इस से पहले कि दुनिया हम से कहे ................................ जागो सोने वालों ..........!!

6 टिप्‍पणियां:

  1. english na janna agyanta nahi hai ..han janna zaroor chahiye..lekin isme naak katane jaisi koi bat nahi hai ...aaiye metro shaharon me ..jahaan ke bachhe hindi nahi jante ..hindustaan me rahne ke bawazood.. tirange pe jab nibandh likhna hoi hindi me to wo kuch yun likhte hain .. " tirange ka doosra naam tricolour flag hai .. yah humari country ka national flag hai " .

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  2. यह बहुत ही शुभ लक्षण है। इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। किन्तु आश्चर्य इस बात का है कि आप इसे एक महान धर्म की तरह पेश कर रहे हैं।

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  3. इस पोस्ट कों लगाने का केवल एक उद्देश है कि हम सब केवल एक ही भाषा से बंधे ना रहे बल्कि जितनी आधिक से आधिक भाषायो का ज्ञान ले सकते है लें ! ना ही मैं यह कहता हूँ कि अंग्रेजी बड़ी है और हिंदी छोटी ना ही यह कि हिंदी बड़ी है अंग्रेजी छोटी ! मेरा मानना है कि भाषायें सब बड़ी है ......... सब का अपना अपना स्थान है |
    हमे सब का ज्ञान लेने कि कोशिश करनी चाहिए ! अगर आप मेरे ब्लॉग कि बाकी पोस्टो पर धयान दें तो पायेगे कि हिंदी से जुडी हुयी काफी पोस्टे भी मैंने लगाई हुयी है !
    किसी भी भाषा का अपमान करना मेरी फितरत नहीं !
    यहाँ मैंने केवल एक तथ्य प्रस्तुत किया है जो मेरे हिसाब से गर्व का बोध नहीं करवा सकता ! यह मेरा ब्लॉग है और मैं अपनी सफाई देने कों बाध्य भी नहीं हूँ पर मैं जो भी लिखता हूँ उसको और भी बहुत से लोग पढ़ते है इसलिए अपना नजरिया आप कों बता रहा हूँ! आगे आप सब ज्ञानी है !

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  4. अग्रेज़ी को हमेशा विदेशी भाषा के तौर पर पढ़नी चाहिये तभी लोग इसे सीख पाएंगे...."






























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  5. माना कि हम हिंदी के हितैषी है पर इस का यह मतलब तो बिलकुल नहीं है कि एक और भाषा कों ना सीखा जाये ? अंग्रेजी का प्रयोग आज कल हर जगह हो रहा है इस लिए यह जरूरी हो जाता है कि हमे भी इस का ज्ञान हो | कोई भी यह नहीं कहता कि आप कों ज्ञान पाने का अधिकार केवल अपनी मात्रभाषा में है ............इस लिए समझदारी इसी में है कि समय के साथ चलते हुए हम हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी कों भी अपनाये !
    सही है.

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