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रविवार, 19 जून 2011

यह क्या हो गया है हम सब को ???

बदलते वक्त के साथ सास-बहू के रिश्ते में भी बदलाव आ गया है। पारंपरिक मान्यता के मुताबिक ससुराल में बहुओं के साथ दु‌र्व्यवहार किया जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक देश के निचले सामाजिक आर्थिक परिवेश में सास-ससुर के साथ पुत्रवधुओं के दु‌र्व्यवहार करने की बात सामने आई है।
हेल्पएज इंडिया की रिपोर्ट 'एल्डर एब्यूज एंड क्राइम इन इंडिया' के अनुसार देश में वृद्धों के साथ दु‌र्व्यवहार के मामले में पुत्रवधुएं शीर्ष पर हैं। निचले सामाजिक आर्थिक परिवेश में 63.4 प्रतिशत मामलों में पुत्रवधुएं जबकि 44 प्रतिशत मामलों में पुत्र वृद्धों के साथ दु‌र्व्यवहार करते हैं। पुत्रों के दु‌र्व्यवहार के मामले में इस वर्ष वृद्धि दर्ज की गई है। पिछले वर्ष यह आकड़ा 53.6 प्रतिशत था।
देश के नौ शहरों में किए गए इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट में निचले सामाजिक आर्थिक परिवेश में वृद्धों के मौखिक दु‌र्व्यवहार को आधार बनाया गया। इसमें बुजुर्गो से तेज आवाज में बात करना, अपशब्द का प्रयोग, नाम से पुकारना और गलत आरोप लगाना शामिल हैं।
सर्वेक्षण के अनुसार उच्च सामाजिक आर्थिक परिवेश में वृद्धों के साथ दु‌र्व्यवहार अनादर करके किया जाता है। मौखिक दु‌र्व्यवहार दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र [एनसीआर], मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई में सबसे अधिक है। शारीरिक दु‌र्व्यवहार पटना में सबसे अधिक [71 प्रतिशत] जबकि अहमदाबाद में सबसे कम है। पुत्रवधुओं का दु‌र्व्यवहार बेंगलूर को छोड़कर सभी जगह सौ प्रतिशत पाया गया।
वृद्धों के प्रति दु‌र्व्यवहार के मामलों में वृद्धि के लिए मुख्य रूप से शहरों में आवास के आकार में कमी, सामाजिक परिवेश और नैतिक मूल्यों में भारी बदलाव और नई पीढ़ी का छोटे परिवार को पंसद करना शामिल है। सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि राष्ट्रीय स्तर पर 70 वर्ष से ज्यादा के वृद्धों के मामलों में दु‌र्व्यवहार सबसे अधिक है। पुत्रों पर निर्भर रहने के कारण वृद्ध महिलाएं सबसे अधिक दु‌र्व्यवहार की शिकार होती हैं।
वृद्धों के दु‌र्व्यवहार के सबसे अधिक 44 प्रतिशत मामले बेंगलूर, उसके बाद हैदराबाद में 38 प्रतिशत है। इसके अलावा भोपाल [30 प्रतिशत], कोलकाता [23 प्रतिशत] जबकि चेन्नई के केवल दो प्रतिशत मामले सामने आए। कुल मिलाकर 72 प्रतिशत बुजुर्ग अपने पुत्रों के साथ रहते हैं। सबसे ज्यादा 86 प्रतिशत वृद्ध मुंबई में अपने बेटे के साथ रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि चेन्नई में सबसे ज्यादा 22 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी बेटियों के साथ रहते हैं। दु‌र्व्यवहार के बावजूद 98 प्रतिशत बुजुर्ग इसकी शिकायत पुलिस में नहीं करते।

(दैनिक जागरण में छपी रिपोर्ट के आधार पर)

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यह क्या होता जा रहा है हमारे समाज को ... सदियों से जिस बात को ले कर भारत का इतना मान था ... आज वही मान्यताएं धूमिल होती जा रही है !! 

बड़े ही दुःख की बात है !! हम सब यह क्यों भूलते जा रहे है कि यह बुजुर्ग ही हमारे परिवार के आधार स्तंभ है ... इनके बिना हमारा अस्तित्व नहीं है ... न ही होता ... यह तो अपनी ही जड़ उखाड़ने जैसा है !!

हम यह क्यों भूल जाते है कि एक दिन हम सब को भी यही दिन देखना पड़ सकता है ... उस दिन क्या बीतेगी हम पर ... कभी सोचा है ... ज़रा सोचिये तब आप पायेंगे ... क्या बीत रही है इन लोगो पर आज ! 

क्या हम सब का इतना नैतिक पतन हो चुका है कि अब हम अपने बुजुर्गो को भी उचित मान सम्मान देना भी भूलते जा रहे है ??

रिपोट कहती है ... पुत्रवधुएँ कर रही है जुल्म ... मेरे हिसाब से सिर्फ पुत्रवधुएँ नहीं पुत्र भी बराबर के दोषी है !!

अब भी समय है ... इस मानसिकता को बदल लिया जाए उस में ही सब की भलाई है  !!
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जागो सोने वालों ... 

11 टिप्‍पणियां:

  1. सहनशीलता में कमी...न्यूक्लियर परिवार, जाने कितनी ही वजहें मिलजुल कर इस तरह का वातावरण निर्मित कर रही हैं....जागना तो होगा.

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  2. अब भी समय है ... इस मानसिकता को बदल लिया जाए उस में ही सब की भलाई है !!
    सही बात है !!

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  3. बहुत दुखद और चिंताजनक स्थिति है.आजकल स्वार्थी परिवेश,और सहनशीलता की कमी की वजह से ये समस्या विकराल रूप ले रही है.इसमें किसी एक पक्ष का दोष भी नहीं कहा जा सकता.ज्यादातर मामलों में घर में रहने वाला हर व्यक्ति इसकी वजह होता है ( बुजुर्ग भी) .कारण फिर वही कि आजकल कोई भी, किसी के लिए भी, जरा सा भी बर्दाश्त नहीं करना चाहता.
    हमें अपने स्वार्थ से थोडा सा ऊपर उठकर अपना नैतिक चरित्र उठाना होगा बस.इतना मुश्किल भी नहीं बस नीयत होनी चाहिए..

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  4. लोग यह भूल जाते हैं कि हमारे संस्कृति ने हमे तीन ॠणों(पितृ ॠण,राष्ट्र ॠण एवं ॠषि ॠण) से उॠण होने के लिए सदा तत्पर रहने का निर्देश दिया है। लेकिन वर्तमान में लोग यह भूलते जा रहे हैं। भौतिकतावादी युग ने संयुक्त परिवार का विघटन कर दिया, जिसका दुष्परिणाम लोगों को भोगना पड़ रहा है।

    वृद्ध माता-पिता परिजन परिवार की जि्म्मेदारी होते हैं, इसका वहन करना नैतिक दायित्व है।

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  5. ये चिंता का विषय है। जिन्हें सम्मान मिलना चाहिए वे अपमान झेल रहे हैं।

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  6. जी हां, ये सच है। मैंने भी आज जागरण में पढ़ा है। चलो ससुर तो बचे हुए हैं।

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  7. जब भी ऐसी खबरें और समाचार पढने को मिलता है तो सोचने लगता हूं कि क्या इसी देश की संस्कृति और सभ्यता को विश्व संचालक संस्कृति कहा जाता था । जाने सब कैसे क्यों खोता चला रहा है । विचारोत्तेजक पोस्ट

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  8. आज की जीवन शैली ... बढता भोतिक्तावाद ... सहनशीलता मैं कमी ... और न जाने कितने कारण हैं पर सभी खुद से जुड़े हुवे ...

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  9. बहुत ही गंभीर समस्या है! बेहद दुःख होता है और ये चिंता का विषय है! उम्मीद है सब ठीक हो जायेगा!

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  10. आज हर कोई सिर्फ़ अपने लिए सोचता है .बुज़ुर्गो की सेवा करना वक्त की बर्बादी महसूस होती है .लेकिन युवा पीढ़ी यह नही सोचती की एक दिन वे भी बूढ़े होंगे तब क्या होगा ?

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