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शनिवार, 5 जुलाई 2014

असली अल्पसंख्यक कौन !?

मैं इस कोशिश मे था कि इस मुद्दे को न छेड़ूँ ... पर मीडिया और आस पास लोगों मे बार बार चर्चा होते देख रहा न गया | वैसे भी मुरादाबाद मेरी ननिहाल है तो उस हक़ से ही सही मैं अपनी बात रख रहा हूँ |

कहा जा रहा है कि मुरादाबाद मे जो हुआ वो "धार्मिक भावनाओं" को "आहात" होने से बचाने के लिए किया गया | पर अगर आप पूरे मामले को देखे तो धार्मिक भावनाएं तो आहात हुई ही ... एक की न हुई तो दूसरे की सही |

अब मेरे हिसाब से इस मामले मे कुछ जरूरी बातों पर अगर ध्यान दिया जाता तो मामला इतना न बिगड़ता |

लॉजिक दिया जाता है कि "अल्पसंख्यक" समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहात हो रही थी इस कारण मंदिर का लाउडस्पीकर उतारा गया ... पर गौर करने की बात यह है उस इलाके मे यही "अल्पसंख्यक" पूरी आबादी का लगभग ८० % हिस्सा है तो फिर असली अल्पसंख्यक कौन हुआ और पूरे मामले मे किस की भावनाएं ज्यादा आहात होती दिख रही है | स्थानीय लोगो ने पूरे मामले मे प्रशासन को दोषी ठहराया है | क्या प्रशासन ने इस मामले मे सच मे 'अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावनाएं' आहात होने से बचाई !?

मुझे तो नहीं लगता ... और यह मैं केवल एक नागरिक के नाते कह रहा हूँ ... अखबार और मीडिया से प्राप्त जानकारी के आधार पर ... इस को मेरे हिन्दू होने या किसी राजनीतिक दल विशेष के समर्थक होने से न जोड़ें | हिन्दू या किसी दल विशेष के समर्थक होने के नाते लिखने बैठे तब तो फिर न जाने क्या क्या लिख बैठें |

रायता फ़ैला कर बाद मे इलाके के लोगों को साथ बैठा शांति स्थापना के लिए जो चर्चा शासन और प्रशासन ने माहौल बिगड़ने के बाद शुरू की क्या वो मंदिर से लाउडस्पीकर उतारने से पहले नहीं जा सकती थी ... क्या आपसी विचार विमर्श के बाद बिना किसी हिंसा के मामला सुलझ न गया होता !?

मुरादाबाद, जिसका की धार्मिक दंगों का एक अच्छा खासा इतिहास रहा है, जैसे इलाके मे प्रशासन ने केवल पूर्वाग्रह से ग्रसित हो जो कदम उठाया उसी के कारण आज एक बार फिर वहाँ का माहौल खराब हुआ है |  

उत्तर प्रदेश वैसे भी पिछले कुछ अरसे से खासा संवेदनशील हो गया है ज़रा सा भी माहौल बिगड़ता है तो लोग उसका भरपूर लाभ लेने को तैयार दिखते है ... फिर चाहे वो राजनीतिक दलों के हो या असामाजिक तत्व ... ऐसे मे शासन और प्रशासन की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है कि इस तरह के मामलों मे ज्यादा से ज्यादा संवेदनशील हो कर काम करें ताकि प्रदेश मे चैन और अमन रहे |

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राज्य सरकार खुद को अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध बताती है पर अल्पसंख्यक कौन है पहले इस का निर्धारण सटीकता से होना चाहिए ... यह जरूरी नहीं कि हर जगह एक ही धर्म या समुदाय के लोग ही अल्पसंख्यक हो ... हर इलाके की जनसंख्या के अनुसार इस का निर्धारण किया जाना चाहिए ताकि किसी के भी साथ अन्याय न हो | 

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जागो सोने वालों ... 

9 टिप्‍पणियां:

  1. सोया कौन है पता नहीं
    किसे जागना है पता नहीं
    कौन जगायेगा पता नहीं
    नींद में होने से यही तो होता है ।

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  2. बड़ा ही गंभीर मसला है! मेरा मानना है कि सम्प्रदाय के आधार पर शासन में कोई निर्णय होने ही नहीं चाहिए। सटीक ढंग से मुद्दा उठाया है आपने शिवम भाई!

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  3. बहुत सही.... वे 80 क्या 100 प्रतिशत होने के बाद भी अल्पसंख्यक कहे जायेंगे। भावनाएँ आहत होती रहेंगी... अभी लाउडस्पीकर उतरे हैं कल को शीश उतारे जायेंगे।
    आपका ये कहना एकदम दुरुस्त है कि समूचे मामले को (लेख) हिन्दू मानसिकता से न देखा जाये। बाकी सब जगजाहिर ही है।

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  4. बहुत सही शिवम जी। मुद्दों पर बात होनी ही चाहिए।अब देश में भावना की दुकानें राजनैतिक कारणों से ही सजाई जाती हैं। यह स्थिति ठीक नहीं।

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  5. सभी जातियों तथा समुदायों को अपने धार्मिक अनुष्ठान करने की पूर्ण स्वतंत्रता है इसमें किसी तरह की कोताही नहीं होनी चाहिए मंदिर-मस्जिद शासन के लिए एक द्रष्टि से देखा जाना चाहिए

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  6. आपने एक विचारणीय मुद्दा उठाया है ।

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  7. SHASAN SIRF MUSLIM SAMUDAY KO HI ALPSANKHYAK MANTA HAI KERAL MEN ALPSANKHYAK KAUN HAI

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  8. मेरे विचार में मुझे कबीर याद आते हैं ईश्वर की पूजा के लिए लाउडस्पीकर की क्या ज़रुरत मंदिर मस्ज़िद कोई भी धार्मिक केंद्र दैनिक पूजाओं में लाउडस्पीकर का प्रयोग वर्जित हो झगडे की जड़ ही खत्म करो परीक्षाओ में लाउडस्पीकर की वज़ह से दिक्कते आती हैं मेरा अपना मत हैं असहमत होने का भी सबको लोकतांत्रिक अधिकार हैं

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  9. अल्पशंख्यक और गरीबी का सही निर्धारण करना आवश्यक है ।

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