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रविवार, 15 जून 2014

ताकि पापा न कहें कि "मैं हार गया !!"

आज जून महीने का तीसरा रविवार है ... हर साल की तरह इस साल भी जून का यह तीसरा रविवार फदर्स डे  के रूप मे मनाया जा रहा है ... पर क्या सिर्फ एक दिन पिता को समर्पित कर क्या हम सब उस के कर्ज़ से मुक्त हो सकते है ... क्या यही है क्या वास्तव मे हमारा संतान धर्म ??? क्या इतना काफी है उस पिता के लिए जिस ने हमें जन्म दिया ... हमें अपने पैरों पर खड़ा होने के काबिल बनाया !!??

एक रिपोर्ट के अनुसार कहने को तो हमारे देश में बुजुर्गो की बड़ी इज्जत है, मगर हकीकत यह है कि वे घर की चारदीवारियों के अंदर भी बेहद असुरक्षित हैं। 23 फीसदी मामलों में उन्हें अपने परिजनों के अत्याचार का शिकार होना पड़ रहा है। आठ फीसदी तो ऐसे हैं, जिन्हें परिवार वालों की पिटाई का रोज शिकार होना पड़ता है।

बुजुर्गो पर अत्याचार के लिहाज से देश के 24 शहरों में तमिलनाडु का मदुरई सबसे ऊपर पाया गया है, जबकि उत्तर प्रदेश का कानपुर दूसरे नंबर पर है। गैर सरकारी संगठन हेल्प एज इंडिया की ओर से कराए गए इस अध्ययन में 23 फीसदी बुजुर्गो को अत्याचार का शिकार पाया गया। सबसे ज्यादा मामलों में बुजुर्गो को उनकी बहू सताती है। 39 फीसद मामलों में बुजुर्गो ने अपनी बदहाली के लिए बहुओं को जिम्मेदार माना है।

बूढ़े मां-बाप पर अत्याचार के मामले में बेटे भी ज्यादा पीछे नहीं। 38 फीसदी मामलों में उन्हें दोषी पाया गया। मदुरई में 63 फीसदी और कानपुर के 60 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार का शिकार हो रहे हैं। अत्याचार का शिकार होने वालों में से 79 फीसदी के मुताबिक, उन्हें लगातार अपमानित किया जाता है। 76 फीसदी को अक्सर बिना बात के गालियां सुनने को मिलती हैं।

69 फीसदी की जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाता। यहां तक कि 39 फीसदी बुजुर्ग पिटाई का शिकार होते हैं। अत्याचार का शिकार होने वाले बुजुर्गो में 35 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें लगभग रोजाना परिजनों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है। हेल्प एज इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू चेरियन कहते हैं कि इसके लिए बचपन से ही बुजुर्गो के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। साथ ही बुजुर्गो को आर्थिक रूप से सबल बनाने के विकल्पों पर भी ध्यान देना होगा।

आज के दिन इन खबरों के बीच याद आती है स्व॰ ओम व्यास 'ओम' जी की यह कविता ...
  




पापा हार गए…
रात-ठण्ड की
बिस्तर पर
पड़ी रजाईयों को अखाडा बनाता
मेरा छोटा बेटा पांच बरस का |
अक्सर कहता है -
पापा ! ढिशुम-ढिशुम खेले ?
और उसकी नन्ही मुठ्ठियों के वार से मै गिर पड़ता हूँ … धडाम
वह खिलखिला कर खुश हो कर कहता है .... ओ पापा हार गए |
तब मुझे
बेटे से हारने का सुख महसूस होता है |
आज, मेरा वो बेटा जवान हो कर ,
ऑफिस से लौटता है, फिर
बहू की शिकायत पर, मुझे फटकारता है
मुझ पर खीजता है,
तब मै विवश हो कर मौन हो जाता हूँ
अब मै बेटे से हारने का सुख नहीं,
जीवन से हारने का दुःख अनुभूत करता हूँ
सच तो ये है कि
मै हर एक झिडकी पर तिल तिल मरता हूँ |
बेटा फिर भी जीत जाता है,
समय अपना गीत गाता है …

मुन्ना बड़ा प्यारा, आँखों का दुलारा

कोई कहे चाँद कोई आँखों का तारा

- स्व॰ ओम व्यास ‘ओम’

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आज के दिन आइये एक संकल्प लें कि हमारे रहते कभी पापा को यह नहीं कहना पड़ेगा कि................. "मैं हार गया !"
आप सभी को पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎँ !!
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जागो सोने वालों ...

6 टिप्‍पणियां:

  1. मैं पापा को हारने नहीं दूँगा....

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  2. bilkul sahi aankade hain aur isase adhik to vo aankade hain jinhen ham khud hi dekhate hain . una murkhon ko kaise bataya jaay ki vah bhi father hain aur kal theek isi sthiti men ve baithe honge aur unako bhi apane pita kee tarah hi ................. ho sakata hai ki kal aap arthik roop se unase adhik saksham hon lekin vidhi ka vidhan koi nahin janata hai kal aap kisi aur tareeke se aksham ho jaayen aur beton aur bahuon par bojh ban jayen to khoon ke aansoon rone ke liye taiyar rahen . itihas khud ko doharata hai isamen koi do raay nahin.

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  3. जरूरत है अपने अंदर झाँकने की । सटीक आकलन ।

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  4. sahi kaha aapne ! papa to bachche chote the tb bhi harte the or bachche bade hogye tb bhi harte hai .lekin dono trh ke harne me jmmin aasman ka farak hai .

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  5. विचारणीय पोस्ट ..सार्थक प्रयास !

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