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सोमवार, 13 दिसंबर 2010

इस हमले से कैसे बचें ??


आज १३ दिसम्बर है ... ९ साल पहले आज के ही दिन कुछ लोगो ने भारत के लोकतंत्र के प्रतीक संसद भवन की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी थी !


 ९ साल बाद ... आज यह भारत के लोकतंत्र का प्रतीक संसद फिर हमले का शिकार है ... पर अब की बार अपने ही सदस्यों के हाथो !!!
 
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जागो सोने वालों ...

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

सरकारी फाइल और मुआवजे का मरहम


अपने देश में आतंकवाद तो स्थायी मेहमान बन चुका है, लेकिन इसके शिकार हुए लोगों का मुआवजा आज भी राजनेताओं और अधिकारियों की लालफीताशाही के बीच झूलता नजर आता है। यही कारण है कि आतंकियों की गोलियों ने मरने वालों के साथ भले कोई भेद न किया हो, लेकिन मृतकों के परिजनों को मिलने वाले सरकारी मुआवजे की राशियों में यह भेद साफ नजर आता है।
मुंबई पर हुए हमले में कुल 179 लोग मारे गए थे। इनमें जो लोग सीएसटी [वीटी] रेलवे स्टेशन के अंदर मारे गए थे, उनके परिजनों को करीब 22 लाख रुपये मुआवजा मिलना निर्धारित हुआ था। लेकिन जो लोग स्टेशन के ठीक बाहर मरे थे, उनके लिए यह राशि घटकर सिर्फ आठ लाख रुपये रह गई। यहां तक कि इस घटना में मारे गए हेमंत करकरे, अशोक काम्टे और विजय सालस्कर जैसे अधिकारियों सहित अन्य सुरक्षाकर्मियों के परिजन भी दुर्भाग्यशाली ही साबित हुए। उन्हें रेल मंत्रालय एवं रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल से तो कुछ मिलना ही नहीं था, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने भी उनके साथ कंजूसी ही दिखाई गई। पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा शहीदों के परिवारों को पेट्रोल पंप देने की घोषणा भी अब तक थोथी ही नजर आ रही है।
 
मुआवजे का खेल

आतंकी हमले के तुरंत बाद रेलमंत्री ने प्रत्येक मृतक के परिवार के लिए 10 लाख रुपये मुआवजा घोषित किया था। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से मिलने वाले चार लाख रुपये इससे अलग थे। राज्य सरकार ने भी सभी मृतकों के लिए इस बार पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा घोषित किया था। इसके अतिरिक्त उड़ीसा में चर्चो पर हुए हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आतंकवाद एवं सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों के लिए तीन लाख रुपये की सहायता योजना शुरू की थी। इस प्रकार उक्त सभी स्त्रोतों को मिलाकर प्रत्येक सीएसटी रेलवे स्टेशन परिसर में मारे गए प्रत्येक मृतक के परिवार को कम से कम 22 लाख रुपये एवं सीएसटी परिसर से बाहर मारे गए लोगों के परिवारों को आठ लाख रुपये मुआवजा मिलना तय था। इसमें प्रधानमंत्री राहत कोष से मिलने वाली सहायता राशि शामिल नहीं है, जिसकी घोषणा हमले के दूसरे दिन ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुंबई आकर की थी।
 
कंजूस राज्य सरकार

आतंकियों के हमले में मारे गए पुलिसकर्मियों के लिए राज्य सरकार ने उदारतापूर्वक 25 लाख रुपये नकद मुआवजे की घोषणा कर दी थी। लेकिन एक दिसंबर, 2008 को जारी शासनादेश से सरकार की कंजूसी उजागर हो जाती है। जिसके अनुसार उक्त राशि मिलने के बाद किसी पुलिसकर्मी की आनड्यूटी मृत्यु पर उसे गृह विभाग से मिलने वाले 13 लाख रुपये दिया जाना उचित नहीं होगा। इस प्रकार आतंकवाद की एक ही घटना में रेलवे स्टेशन के अंदर मारे गए आमजन को 22 लाख रुपये की तुलना में स्टेशन के बाहर आतंकियों की गोली से शहीद हुए पुलिसकर्मियों के परिजनों के हिस्से में महज 12 लाख रुपये ही आए।
 
पीएमओ का हाल

सबसे हास्यास्पद स्थिति तो सर्वशक्तिमान प्रधानमंत्री कार्यालय की है। 27 नवंबर, 2008 को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित विशेष राहत राशि में घायलों एवं मृतकों को उनकी परिस्थिति के अनुसार अधिकतम दो लाख रुपये तक प्राप्त होने थे। मृतकों एवं घायलों को मिलाकर कुल 403 लोगों को यह लाभ मिलना था। आज तक सिर्फ 30 प्रतिशत लोगों को ही प्रधानमंत्री राहत कोष के चेक प्राप्त हो सके हैं। 79 के तो विवरण तक अभी राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय को नहीं भेजे हैं। इसी प्रकार केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इस प्रकार की घटनाओं में मिलने वाली तीन लाख रुपये की राशि भी अभी 100 से कम लोगों को ही मिल सकी है।
 
नहीं मिले पेट्रोल पंप

पेट्रोलियम मंत्रालय की ओर से शहीदों के परिजनों को पेट्रोल पंप देने की घोषणा भी अब तक हवाई ही साबित हुई है। आधे से ज्यादा शहीदों को तो पेट्रोल पंप का आबंटन हुआ ही नहीं है। जिनके नाम से पेट्रोल पंप आबंटित हुए भी हैं, उनका आबंटन भी कागजी ही है। क्योंकि उन्हें पेट्रोल पंप के बजाय पेट्रोलियम कंपनी से प्रतिमाह 25 हजार रुपये नकद दिलवाने की व्यवस्था मात्र की गई है। यह भी कब तक जारी रहेगी, कुछ स्पष्ट नहीं है। ऐसे हवाई पेट्रोल पंपों के लाभार्थियों में हेमंत करकरे एवं अशोक काम्टे जैसे हाई प्रोफाइल शहीदों के परिवार भी शामिल हैं।
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जागो सोने वालों ...

रविवार, 14 नवंबर 2010

एक रि पोस्ट :- काहे का बाल दिवस ??

आजादी के छह दशक से अधिक समय गुजरने के बावजूद आज भी देश में सबके लिए शिक्षा एक सपना ही बना हुआ है। देश में भले ही शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने की कवायद जारी है, लेकिन देश की बड़ी आबादी के गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने के मद्देनजर सभी लोगों को साक्षर बनाना अभी भी चुनौती बनी हुई है।
सरकार ने हाल ही में छह से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा प्रदान करने का कानून बनाया है, लेकिन शिक्षाविदों ने इसकी सफलता पर संदेह व्यक्त किया है क्योंकि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जद्दोजहद में लगा हुआ है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के लिए देश में दस लाख अतिरिक्त शिक्षकों की जरूरत पर जोर देते हुए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि और व्यापक शिक्षा के लिए आईसीटी के इस्तेमाल के अलावा शिक्षण के पेशे की गरिमा और मान सम्मान को बहाल करने की आवश्यकता बताई है।
इग्नू के जेंडर एजुकेशन संकाय की निदेशक सविता सिंह ने कहा कि गरीब परिवार में लोग कमाने को शिक्षा से ज्यादा तरजीह देते हैं। उनकी नजर में शिक्षा नहीं बल्कि श्रम कमाई का जरिया है।
सिंह ने कहा, ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के जीवनस्तर में सुधार किए बिना शिक्षा के क्षेत्र में कोई भी नीति या योजना कारगर नहीं हो सकती है बल्कि यह संपन्न वर्ग का साधन बन कर रह जाएगी। आदिवासी बहुल क्षेत्र में नक्सलियों का प्रसार इसकी एक प्रमुख वजह है।
सरकार के प्रयासों के बावजूद प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। इनमें बालिका शिक्षा की स्थिति गंभीर है।
विश्व बैंक की हालिया रपट में भारत में माध्यमिक शिक्षा की उपेक्षा किए जाने पर जोर देते हुए कहा गया है कि इस क्षेत्र में हाल के वर्षो में निवेश में लगातार गिरावट देखने को मिली है।
भारत में माध्यमिक शिक्षा पर विश्व बैंक रपट में माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में निवेश में गिरावट का उल्लेख किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले खर्च का जहां प्राथमिक शिक्षा पर 52 प्रतिशत निवेश होता है वहीं दक्ष मानव संसाधान को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में कुल खर्च का 30 प्रतिशत ही निवेश होता है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के कुल खर्च का 18 प्रतिशत हिस्सा आता है।
भारत में माध्यमिक स्तर पर 14 से 18 वर्ष के बच्चों का कुल नामांकन प्रतिशत 40 फीसदी दर्ज किया गया जो पूर्वी एशिया और लैटिन अमेरिका में वैश्विक प्रतिद्वन्दि्वयों के कुल नामांकन अनुपात से काफी कम है।
भारत से कम प्रति व्यक्ति आय वाले वियतनाम एवं बांग्लादेश जैसे देशों में भी माध्यमिक स्तर पर नामांकन दर अधिक है।
उच्च शिक्षा की स्थिति भी उत्साहव‌र्द्धक नहीं है। फिक्की की ताजा रपट में कहा गया है कि महत्वपूर्ण विकास के बावजूद भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में कई तरह की खामियां हैं जो भविष्य की उम्मीदों के समक्ष चुनौती बन कर खड़ी है।
रपट के अनुसार इन चुनौतियों में प्रमुख उच्च शिक्षा के वित्त पोषण की व्यवस्था, आईसीटी का उपयोग, अनुसंधान, दक्षता उन्नयन और प्रक्रिया के नियमन से जुड़ी हुई है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन दर की खराब स्थिति को स्वीकार करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि स्कूल जाने वाले 22 करोड़ बच्चों में केवल 2.6 करोड़ बच्चे कालेजों में नामांकन कराते हैं। इस तरह से 19.4 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
सरकार का लक्ष्य उच्च शिक्षा में सकल नामांकन दर को 12 प्रतिशत से बढ़ा कर 2020 तक 30 प्रतिशत करने का है। इन प्रयासों के बावजूद 6।6 करोड़ छात्र ही कालेज स्तर में नामांकन करा पाएंगे, जबकि 15 करोड़ बच्चे कालेज स्तर पर नामांकन नहीं जा पाएंगे।
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क्या एसे ही 'बाल दिवस' मनाया जाएगा ?? मतलब मालूम है किसी नेता को 'बाल दिवस' का .......क्यों मनाया जाता है यह ?? क्या भावना थी 'बाल दिवस' मानाने के पीछे ??? कोई जवाब देगा क्या .............???
शायद आज के भारत में किसी भी नेता के पास इसका कोई जवाब नहीं है !! होगा भी कैसे ?? जो नेता अपने नेताओ को भूल गए वो उनकी बातो को याद रखेगे ...............न.. न ... हो ही नहीं सकता ........टाइम कहाँ है इतना ....और भी काम है .......बड़े आए 'बाल दिवस' मानाने .........कल आ जाना .....मूंछ दिवस के लिए ........तुम सब के सब हो ही ठलुआ ........चलो भागो यहाँ से !! यहाँ अपने लिए टाइम नहीं है और यह आए है 'बाल दिवस' मानाने ??
अच्छा सुनो जब आ ही गए हो तो P.A से मिल लो .......कुछ करवा देते है ........अरे कुछ और नहीं तो बच्चा सब टाफी तो खा ही लेगा .........है कि नहीं ?? अब खुश माना दिए न तुम्हारा 'बाल दिवस' !! अब जाओ बहुत काम बाकी है देश का निबटने को !!
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वैसे यह नेता ठीक कहते है क्या लाभ है 'बाल दिवस' मानाने का ?? जब आज भी हम इन बच्चो को वह माहौल नहीं दे पाये जब यह दो वक्त की रोटी की चिंता त्याग शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर पाए ! 'बाल दिवस' केवल मौज मस्ती के लिए तो नहीं था ........इसका मूल उद्देश तो हर बच्चे तक सब सरकारी सुविधाओ को पहुँचाना था .......कहाँ हो पाया यह आज़ादी के ६३ साल बाद भी ............ 
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जागो सोने वालों ...

बुधवार, 10 नवंबर 2010

कोटक लाइफ इंश्योरेंस कंपनी :- भगवान् बचाए !!!

आज दोपहर की बात है एक कॉल आया ....दिल्ली का नंबर था .... जब उठाया तो उधर से बहुत ही मधुर आवाज़ में दुआ सलाम की गई ... हमने भी पलट कर जवाब दे दिया ! पर यह समझ में नहीं आया था कि बोल कौन रहा है ...!!! 

खैर अगले ने इतने में बताया कि कोटक लाइफ इंश्योरेंस कंपनी  से बोल रहा हूँ .... हमने कहा जी बोलिए .....इतना कहना था कि अगला वही रटे रटाये जुमले बोलने लगा ....."आपका नंबर हमारे लकी ड्रा में निकला है "..... "कंपनी आपको हमारा सब से बेस्ट प्लान देना चाहती है" आदि आदि .. !!!

हमने कहा भाई पहले यह तो बता दो हमारा नंबर कहाँ से मिला .... जवाब मिला सर कंपनी ने दिया है ... बड़ा अजीब लगा ...खैर फिर पुछा उस से आपको मालुम है इस तरह फ़ोन करना गैर क़ानूनी है सरकार ने बैन लगाया हुआ है ....बस इतना कहना था कि उधर से वह शुरू हो गया .... आप यह बोलो आप को प्लान लेना है कि नहीं ....ज्यादा कानून ना समझाओ हम को ...!! जो अब तक एक शरीफ बन्दा लगा रहा था .... उसके बोलने का अंदाज़ कतई शरीफाना नहीं था हमारे मना करने के बाद !

हमने फिर पुछा कि जब हमारा नंबर NATIONAL DO NOT DISTURB REGISTRY में रजिस्टर किया  हुआ है तो आप इस नंबर पर कॉल कैसे कर सकते है ? जवाब आया क्यों नहीं कर सकते ?? बड़ी हैरत हुयी ... सरकार ने एक नियम बनाया हुआ है और किस बेपरवाही से यें लोग उस नियम को ताक पर रखे हुए अपनी मनमानी चला रहे है !

हद तो तब हो गई जब हमारे यह दोबारा कहने पर कि भाई आप हमें माफ़ करें और दोबारा फोन करने की तकलीफ ना उठायें उधर से जवाब आया कि हमें भी कोई शौक नहीं है आपको कॉल करने का ....भाड़ में जाओ... और कॉल काट दी गई !!!!


सवाल यह पैदा होता है जिस कंपनी के बन्दे अपने होने वाले ग्राहकों से किस मुद्दे पर असहमति होने पर ऐसा बर्ताव करते हो ....वह किसी ग्राहक को उसका पैसा लौटते समय क्या करते होंगे ???


खैर इस बदतमीजी देख सोचा कि इस मामले में कुछ तो जरूर किया जाना चाहिए .... नंबर को दोबारा जांचा तो पाया कि नंबर Reliance का है और दिल्ली का है .... हमारा नंबर भी Reliance का ही है और पोस्टपैड है सो तुरंत ही कस्टमर केयर पर कॉल लगाया और ड्यूटी पर मौजूद श्री अल्तमश जी से बात कर उनको पूरी बात बताई .... उन्होंने हमसे वह नंबर माँगा जिस से कॉल आई थी ... 011-32319222 नंबर दे दिया गया तो इस बात कि पुष्टि हुयी कि नंबर Reliance का ही है | श्री अल्तमश ने भी इस बात की पुष्टि की कि अगर आपका नंबर NATIONAL DO NOT DISTURB REGISTRY में रजिस्टर किया जा चूका है तो उस पर कोई भी Sales Call वर्जित है !

हमने यह भी जानना चाहा कि इस मामले में क्या हम कोई शिकायत दर्ज करवा सकते है ... जवाब मिला हाँ !! और हम से इस मामले से जुडी सब जानकारी ले कर हमारी शिकायत दर्ज कर ली गई  और हमे एक complaint नंबर  :- 140787594 दे दिया गया और यह भी सूचित किया गया है कि १५ दिनों के अंदर इस सम्बन्ध में उचित कारवाही कर सूचित किया जायेगा !

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जब देश का वित्त मंत्री इस तरह की कॉल से दुखी है तो आम आदमी भला क्या कर सकता है ?? 
देखें :-

सच यह है कि सरकार ने नियम तो बना दिया पर उसको सही तरीके से अमल में नहीं ला पा रही है ! और यह कंपनीयां इस का फायेदा उठा रही है और आम आदमी उनको झेलने के लिए मजबूर है !
देखें :-

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जागो सोने वालों ...

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

ओबामा बच्चो के साथ मनायेगे दिवाली !!

(चित्र संताबंता.कॉम से साभार )


दिवाली पर्व है खुशियों का, उजालो का, लक्ष्मी का !
यह दिवाली आपकी ज़िन्दगी खुशियों से भरी हो,
दुनिया उजालो से रोशन हो, घर पर माँ लक्ष्मी का आगमन हो!


शुभ दीपावली!
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जागो सोने वालों...

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

त्योहारी बाजार और लुभावनी स्कीमों का सच


त्योहारी बाजार सज चुका है। स्कीमों की हर तरफ से बौछार हो रही है। हो भी क्यों न, कई सालों के बाद यह साल कारोबारियों को ऐसा नजर आ रहा है, जिसमें उन्हें खूब मुनाफा होता दिख रहा है। इसकी वजहें कई हैं। अर्थव्यवस्था अब मंदी की मार से उबर चुकी है। शेयर बाजार आसमान की तरफ कुलांचे भर रहा है।

कई सालों बाद वर्ष 2010 ऐसा साल आया है, जब मानसून की भरपूर मेहरबानी हुई है। देश के सभी बांध पानी से लबालब हैं। खरीफ की फसल में तमाम नुकसान के बावजूद इस साल पिछले कई सालों के मुकाबले इजाफा हुआ है और रबी की बुआई का रकबा पांच से सात फीसदी तक बढ़ गया है।

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार डा. सी रंगराजन ने अनुमान व्यक्त किया है कि इस साल रबी की फसल में भारी इजाफे से कृषि के क्षेत्र में विकास की दर 4.5 फीसदी के आसपास रहेगी।

ये तमाम अनुकूल स्थितियां हैं, जिनकी वजह से इस बार त्योहारी बाजार में पिछले कुछ सालों के मुकाबले कहीं ज्यादा रौनक दिख रही है। 2009 औैर इसके पहले 2008 में भी हालांकि हमारी अर्थव्यवस्था की विकास दर छह फीसदी से ऊपर थी, लेकिन पूरी दुनिया में मंदी छाई होने के कारण त्योहारी बाजार में आशंकाओं के बादल मंडरा रहे थे, जिनसे इनकी रंगत फीकी रही, लेकिन अब हिंदुस्तान में तो कारपोरेट सेक्टर से खुशखबरियां आ रही हैं, दुनियावी अर्थव्यवस्था में भी धीरे-धीरे रंग दिखने लगे हैं।

यही कारण है कि इस बार त्योहारी बाजार नवरात्रों से कुछ पहले ही सज गया था और इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय तक पूरे शबाब में आ चुका था। शायद बाजार की नब्ज और ग्राहकों के मूड में दिख रहे सकारात्मक भावों का ही यह असर है कि इस साल त्योहारी बाजार ढेर सारे ऑफर लेकर आया है, जिससे ग्राहक खूब उत्साहित हैं और अपनी खरीददारी की सूची को या तो अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं या दे चुके हैं।

एलजी, सैमसंग, पैनासोनिक, फिलिप्स। लगभग हर कंपनी इस त्योहारी बाजार के लिए कोई न कोई धमाका ऑफर लेकर आई है। सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां ही नहीं, दूसरे उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियां भी ग्राहकों को लुभाने के लिए कई शानदार ऑफर लेकर आई हैं। यहां तक कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में रीयल मार्केट में डेवलपर्स फ्लैटों की कीमत में विशेष त्योहारी खरीददारी छूट देते हुए दो लाख से 15-16 लाख तक की छूट दे रहे हैं।

कई कंपनियां 'पुराना लाओ, नया ले जाओ' जैसी स्कीमों के तहत गिफ्ट और डिस्काउंट ऑफर कर रही हैं, जिससे बाजार में इस बार पिछली बार के मुकाबले 25 से 30 फीसदी ज्यादा बिक्री होने का अनुमान है। दिल्ली के कई शोरूम में विजिट के बाद यह देखने को मिला कि लोगों को पुराने के बदले नए ले जाने की स्कीम काफी लुभा रही है।

दरअसल, ग्राहक आमतौर पर दीवाली जैसे त्योहार के मौके पर घर की साफ-सफाई तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि वह चाहता है कि घर की पुरानी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसें भी नई हो जाएं। इस कारण पुराने के बदले में नया ले जाने का प्रस्ताव ग्राहकों को खूब आकर्षित कर रहा है।

बाजार के सेंटीमेंट अच्छे देखकर उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों ने इस बार समय से काफी पहले ही बाजार को गुलजार कर दिया है। उन्हें लगता है कि उपभोक्ताओं के पास इस साल खरीददारी के लिए इतने पैसे हैं कि वे उनकी उम्मीदों पर हर हाल में खरे उतरेंगे।

यही कारण है कि आश्वस्त बाजार अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए घडि़यां, डीवीडी प्लेयर, जूसर मिक्सर, वाटर प्योरीफायर से लेकर नकद और कैश बैक तक के ऑफर दे रहा है। पैनासोनिक इस त्योहारी शॉपिंग में ग्राहकों को 7,900 रुपये तक के गिफ्ट दे रही है तो कई दूसरी कंपनियों ने तोहफों की धनराशि 10,000 रुपये तक कर दी है, लेकिन यह भी सही है कि इतना बड़ा तोहफा पाने के लिए उसी अनुपात की खरीददारी भी करनी होगी।

एलजी ने इस बार ग्राहकों को 80 करोड़ रुपये तक के तोहफों को देने का मन बनाया है, क्योंकि उसकी बिक्री का अनुमान 4000 करोड़ रुपये से ऊपर का है। सिर्फ एलजी ही नहीं, सभी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों और दूसरे टिकाऊ उपभोक्ता सामग्री बनाने वाली कंपनियों को भरोसा है कि इस बार वह पिछले साल के मुकाबले 30 से 45 फीसदी तक की ज्यादा बिक्री करेंगी। हमेशा की तरह टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, म्यूजिक सिस्टम और ऑटोमोबाइल्स जैसे उपभोक्ता सामानों की बिक्री के इस साल भी ज्यादा रहने की उम्मीद है।

कुछ सालों पहले सीआईआई ने एक अध्ययन अनुमान से बताया था कि दीपावली के आसपास त्योहारी मौसम में भारतीय उपभोक्ता बाजार 40 से 50 हजार करोड़ की बिक्री कर लेता है, जो साल दर साल 15 से 20 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। मतलब यह कि अब इसके बढ़कर 55 से 60 हजार करोड़ रुपये हो होने की उम्मीद है।

जिस तरह से पिछले एक दशक से अर्थव्यवस्था में एक निरंतर वृद्धि जारी है, उसी तरह से पिछले एक दशक में उपभोक्ता बाजार में बिक्री का ग्राफ भी 15 से 20 फीसदी सालाना की दर से बढ़ा है और उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति में 25 से 30 फीसदी का उछाल आया है। लब्बोलुआब यह कि बढ़ी हुई बिक्री के बावजूद उपभोक्ता अभी भी ठोस बने हुए हैं।

हाल के सालों में टीवी, फ्रिज, एयरकंडीशनर, वैक्यूम क्लीनर, वाटर प्यूरोफायर, माइक्रोओवन, कंप्यूटर, होम थिएटर, लैपटॉप तथा ऑटोमोबाइल्स विशेषकर कारें और दुपहिया वाहन फेस्टिव सीजन में खरीददारों की खास पसंद बने हुए हैं। इन उत्पादों की बिक्री बाजार में होने वाले कुल कारोबार में 60 से 65 फीसदी तक की हिस्सेदारी रखती है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले एक दशक से इन उत्पादों का बाजार बिक्री के मामले में शीर्ष स्थान हासिल किए हुए है और अगले कई सालों तक बिक्री के लिहाज से शीर्ष में इन्हीं उत्पादों का कब्जा रहेगा।

यों तो हर कोई जानता है कि लुभावनी स्कीमों के पीछे ग्राहकों का भला नहीं, कंपनियों का अपना फायदा छिपा होता है। उनकी स्कीमें एक तरह से लुभावना जाल होती हैं, जो ग्राहकों को न सिर्फ खरीददारी के लिए फांसती हैं, बल्कि जरूरत न होने पर भी बाजार ग्राहकों का कुछ इस तरह से माइंड वॉश करता है कि माहौल के सुरूर में ही उपभोक्ता तमाम गैर जरूरी खरीददारी कर लेता है।

इस तरह देखा जाए तो स्कीमें ग्राहक को फांसने, उन्हें येन-केन प्रकारेण उत्पादों को बेचने का जरिया होती हैं। यही इनका एक मात्र मकसद भी होता है। बावजूद इसके आधुनिक अर्थशास्त्र में ऐसी स्कीमों की बिक्री की बढ़ोतरी में जबरदस्त हाथ होता है। इसलिए अगर त्योहारी बाजार में स्कीमों की बौछार हो रही हो तो इसके मकसद साफ हैं, ग्राहक को हर हाल में शिकार बनाना है।

खरीददारों का नया सलाहकार बन गया है इंटरनेट

इंटरनेट के जितने भी उपयोग दिखने में आएं, उतने कम हैं। दरअसल, इंटरनेट अब लगभग हर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है और हर किसी की जरूरत का जरूरी हिस्सा बन चुका है। यही कारण है कि त्योहारी खरीददारी में भी इंटरनेट की हाल के सालों में जबरदस्त भूमिका उभरकर सामने आई है।

इंटरनेट आज त्योहारी खरीददारों का ही नहीं, बल्कि हर मौसम और माहौल के खरीददारों का अच्छा खासा सलाहकार बन चुका है। फिर चाहे ऐसे खरीददार किसी भी उम्र समूह के हों। हां, यह बात जरूर है कि इंटरनेट के सबसे ज्यादा दीवाने और उस पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले युवा हैं। आज की तारीख में युवा जो कुछ भी खरीदते हैं, पहले उस उत्पाद को इंटरनेट में सर्च करते हैं और फिर ऑनलाइन ही बाजार में मौजूद वैसे ही तमाम उत्पादों की जांच-परख करते हैं। जो उत्पाद ज्यादा किफायती और ज्यादा बेहतर लगता है, उसे खरीदते हैं यानी अब युवा उपभोक्ताओं के खरीददारी की मन: स्थिति को तय करने में इंटरनेट की काफी बड़ी भूमिका है।

यही कारण है कि आज कंपनियां न सिर्फ इंटरनेट में ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन देने लगी हैं, बल्कि सभी कंपनियां खुद की वेबसाइटें प्राथमिकता के स्तर पर बनाती हैं ताकि इस वजह से उनकी बिक्री में किसी तरह की कमी न होने पाए। इंटरनेट ने जहां एक तरफ ग्राहकों के लिए एक जैसी विभिन्न उत्पादों की जांच-परख का मौका मुहैया कराया है, वहीं दूसरी तरफ वह उन्हें दुनिया के बाजारों तक भी ले गया है, जिससे ग्राहकों का भी फायदा हुआ है और उत्पादन जगत का भी। यही कारण है कि इंटरनेट की दोनों ही क्षेत्रों से खूब निभ रही है।

त्योहारी बाजार का मक्का क्यों बनी है दीवाली

आमतौर पर देखने में आता है कि जो लोग शॉपिंग में जरा भी रुचि नहीं रखते, दीवाली आते ही उन्हें भी शॉपिंगमेनिया घेर लेता है। अपने आगोश में ले लेता है। दरअसल, देश में तकरीबन दो करोड़ लोग संगठित क्षेत्र में नौकरी करते हैं और इस समय सात से नौ लाख तक लोग विभिन्न तरह की बहुराष्ट्रीय कंपनियों, निगमों आदि में काम करते हैं। इसके अलावा देश के छह से सात करोड़ लोग निजी क्षेत्र में काम करते हैं। इन सब लोगों को आमतौर पर वेतन वृद्धि का बकाया और बोनस दीवाली के मौके पर ही दिया जाता है।

देश का अधिकृत वित्तीय वर्ष भले अप्रैल माह से शुरू होता हो, लेकिन पारंपरिक वित्तीय वर्ष दीवाली से ही शुरू होता है। कुल मिलाकर देश का जॉब सेक्टर दीवाली के आसपास बाजार में खरीददारी के लिए उपभोक्ताओं के पास 90,000 से 1,00,000 करोड़ रुपये तक की नकदी मुहैया कराता है। इतने बड़े पैमाने पर बाजार में आने वाली यह नकदी बाजार का कायाकल्प कर देती है। तभी तो कई दुकानदार पूरे साल दीवाली के इंतजार में बिताते हैं। दीवाली के आसपास बाजार का न सिर्फ मुनाफा 20 से 40 फीसदी तक बढ़ जाता है, बल्कि बाजार की फ्रीक्वेंसी और बिक्री का वैल्यूम 400 से 600 फीसदी तक बढ़ जाता है। मीडिया और दूसरे संचार क्षेत्र वर्षा ऋतु जाते ही और त्योहारी मौसम के आहट देते ही इस किस्म का माहौल रच देते हैं कि उपभोक्ताओं में खरीददारी का एक जुनून पैदा हो जाता है।

नवरात्र के पहले ही उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियां अपने आकर्षक विज्ञापनों से बाजार को भर देती हैं। जिससे लोगों में उन उत्पादों की जरूरत न होने पर भी उनके खरीदने की लालसा कुलांचे भरने लगती है।

आलेख :- वीना सुखीजा

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अब यह आप को सोचना है कि आप बाज़ार की इस चाल में बाकी सब की तरह ही भेड़ चाल चलने वाले है या सच में एक जागरूक ग्राहक की तरह सिर्फ़ वही चीज़ बाज़ार से लेने जायेगे जिस की आपको सच में जरूरत है !

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जागो सोने वालो...

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

रिश्वत मांगे अधिकारी तो एक फोन लगाएं


रिश्वत नहीं देने के कारण यदि आपकी फाइल लंबे समय से किसी सरकारी दफ्तर में अटकी है या किसी काम के लिए सरकारी बाबू आपसे 'चढ़ावा' मांग रहे हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। अब सिर्फ एक फोन नंबर लगाते ही आपकी सारी परेशानी दूर हो सकती है। दरअसल, सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार रोकने की अपनी कवायद को धारदार बनाने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग [सीवीसी] ने एक रिश्वत रोधी हेल्पलाइन शुरू की है।

सरकारी बाबू द्वारा सताए गए लोगों को टोल फ्री नंबर 1800-11-0180 और 011-24651000 पर अपनी शिकायत दर्ज करानी होगी। सीवीसी के एक अधिकारी के मुताबिक यह सेवा उन लोगों के लिए फायदेमंद होगी जो किसी सरकारी विभाग के कर्मचारियों की रिश्वत की मांग के कारण अपने काम में अनावश्यक देरी से संबंधित समस्या का सामना कर रहे हैं। अधिकारी ने इस नई सेवा के बारे में कहा, 'कोई शिकायतकर्ता हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर सकता है और उसके साथ हुए अन्याय या उत्पीड़न की शिकायत कर सकता है। वह संबंधित विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी [सीवीओ] से भी सीधे संपर्क कर सकता है। सीवीओ फोन करने वाले व्यक्ति से सभी जानकारी लेंगे और पता लगाएंगे कि उसकी समस्या जायज है या नहीं। मामले के अनुसार जरूरी कार्रवाई की जाएगी।

अधिकारी ने कहा कि इस हेल्पलाइन का प्रारंभिक मकसद भ्रष्टाचार पर रोकथाम के अलावा बिना बाधा के लोगों का काम पूरा कराना है। उन्होंने बताया कि लोग केंद्र सरकार द्वारा संचालित विभागों और सार्वजनिक उपक्रम में रिश्वतखोरी व अन्य समस्याओं से संबंधित शिकायतें इस हेल्पलाइन में दर्ज करा सकते हैं। यह हेल्पलाइन सोमवार से शुक्रवार तक सुबह दस बजे से शाम सात बजे के बीच संचालित होगी।

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अब सब सुधर जाओ ....लेने वालो भी और देने वालो भी ......मालूम है इस हेल्पलाइन को पूरी तरह से लागू होने में थोडा समय लगेगा पर मान लो एक बार यह सही तरह से चल पड़ी तो फिर आप लोगो का क्या होगा ?? सिर्फ़ एक फोन और काम चालू ....सोचो.....सोचो ......अपने को तो बहुत मज़ा आ रहा है !!!

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जागो सोने वालो ...

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

पर्यावरण पर आलेख प्रतियोगिता


आज ललित शर्मा जी की एक पोस्ट देखी तो लगा इस मुद्दे को हम सब को मिल कर उठाना चाहिए | बहुत ही सराहनीय प्रयास है उनका | ललित जी को बहुत बहुत साधुवाद !

यहाँ मैं उनकी पोस्ट का लिंक दे रहा हूँ साथ साथ पूरी पोस्ट भी दे रहा हूँ ताकि आप सब भी उनके इस सराहनीय प्रयास के बारे में जान सकें !



मित्रों, पर्यावरण प्रदूषण के कारण बहुत सारी समस्याएं हमें घेरती जा रही हैं, नित नए रोग जन्म लेते जा रहे जा रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो निरोग हो। हमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन के प्रति सचेत होना पड़ेगा। पूरे विश्व में इस दिशा में बहुत कार्य हो रहे हैं। इससे बचने के लिए हमारा जागरुक होना अत्यावश्यक है। विगत कई दिनों मैं बच्चों के बीच पर्यावरण के प्रति जागरुक का संदेश देने वाले कार्यक्रमों में गया,तब मेरे मन में आया की ब्लॉग जगत में एक आलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए क्योंकि हमारे ब्लॉग जगत में धुरंधर लिक्खाड़ों और विद्वानों की कमी नहीं है। इसलिए हम एक आलेख प्रतियोगिता आयोजन करने जा रहे हैं। जिसमें नगद पुरस्कार दिए जाएगें और उन्हे समारोह पूर्वक सम्मानित भी किया जाएगा। यह आयोजन यहाँ होगा। जहाँ नियमित स्वीकृत आलेखों का प्रकाशन होगा। संभव हुआ तो सार्थक टिप्प्णीकारों के लिए भी पुरस्कार की व्यवस्था की जाएगी। बाकी जानकारी अगली पोस्ट में दी जाएगी।

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जागो सोने वालो ...

बुधवार, 29 सितंबर 2010

शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी का अंतिम पत्र

आज जब यह पोस्ट लिख रहा हूँ तो मन में केवल एक विचार आ रहा है .........जिस तरह हम लोगो ने कुछ लोगो को एकदम भुला दिया है ........क्या एक दिन हम लोगो को भी ऐसे ही भुला दिया जायेगा ?? 

वैसे इस सवाल का जवाब भी है मेरे पास .......जी हाँ ठीक इसी तरह ........बिलकुल इसी तरह से हम सब भी भुला दिए जाने वाले है !! अरे जब बड़े बड़े कारनामे करने वाले वीरो को हम लोग ने भुला दिया तो फिर हमारी तो औकात ही क्या है ?? क्यों कर याद रखा जाए हम लोगो को ......ऐसा क्या कर रहे है हम किसी के लिए भी जो हमे याद रखा जाए ??
आइये एक ख़त पढवाता हूँ आप सब को .....
 
22 मार्च,1931,

“साथियो,
 
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है – इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
 
आपका साथी,
भगत सिंह ”
 
 
यह है शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी का अंतिम पत्र अपने साथियों के नाम  ..... हमारे नाम !!!

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शायद अब कुछ कहने कि जरूरत नहीं है ..........और अगर अब भी है तो यह हम सब का दुर्भाग्य है |
 
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जागो सोने वालो ...

रविवार, 26 सितंबर 2010

सिर्फ़ २ बाते .... आपसे !!

आज आप लोगो से सिर्फ़ दो बाते कहनी है .......वह भी अपनी कही हुयी नहीं है ....निदा फ़ाज़ली साहब ने कही है ..... पर क्या खूब कही  है | अपना काम तो सिर्फ़ आप लोगो का ध्यान इन बातों की तरफ करना है ! आगे आप की मर्ज़ी !


१ )  बच्चा बोला देख कर मज्जिद आलिशान .....
     अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान !
 
और
 
२ ) अन्दर मूरत पर चढ़े ....घी, पुड़ी, मिष्ठान .....
     बाहर खड़ा देवता सब से मांगे दान !

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हो सके तो ज़रा सोचियेगा इन बातों पर, हो सकता है बहुत से सवालो के जवाब शायद आपको खुद बा खुद मिल जाएँ !
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जागो सोने वालो ...

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

ब्लॉग का जन्मदिन और ५० वी पोस्ट की गिफ्ट !!

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

आज कुछ खास नहीं बस यह बताना चाहता था कि आज आपके इस ब्लॉग ने १ साल पूरा कर लिए है और यह पोस्ट इस ब्लॉग की ५० वी पोस्ट है | इस डबल ख़ुशी के मौके पर आप सब को बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ठीक एक साल पहले यह ख्याल आया कि एक नया ब्लॉग बनाया जाए जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ उन मुद्दों की बात हो जिन पर लोगो ने चुप्पी साध रखी है या जागते हुए भी सोते रहने का रवैया अपनाया हुआ है !

ब्लॉग बनाना तो कोई मुश्किल ना था पर सवाल था कि ब्लॉग का नाम क्या रखा जाए ...........फिर जवाब मिला .......

जागो सोने वालों ...

बस फिर क्या था अपना ब्लॉग चालू हो गया और भगवान् करे ऐसे ही चलता रहे !

अब ब्लॉग के जन्मदिन पर पोस्ट से बढ़िया गिफ्ट क्या होगी ?? 

तो जैसे ही पोस्ट लिखने बैठे तो देखा की ४९ पोस्टे तो हो चुकी है और यह होगी इस ब्लॉग की ५० वी पोस्ट मतलब कि डबल धमाका ऑफर एक के साथ एक मुफ्त जैसा तो हम ने भी मौका देख कर चौका मारा और लीजिये हाजिर है इस पोस्ट को ले कर !
एक बार फिर आप सब को बहुत बहुत बधाइयाँ ............ब्लॉग के एक साल पूरा होने और ५० वी पोस्ट की |
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जागो सोने वालो ...

बुधवार, 8 सितंबर 2010

मैनपुरी में कम्प्यूटर शिक्षा :- खुद फर्जी और बांट रहे असली ज्ञान - प्रशासन बेखबर , छात्र हैरान !!

मैनपुरी में कम्प्यूटर सेंटर कमाई का एक अच्छा जरिया बन चुका है। जगह-जगह खुले कम्प्यूटर सेंटर में से कई सेंटर फर्जी रूप से संचालित हो रहे हैं। जिनकी किसी संस्था से मान्यता प्राप्त नहीं है।
कम्प्यूटर के बढ़ते प्रचलन से लगभग सभी छात्र-छात्राएं कम्प्यूटर में अपना भविष्य खोज रहे हैं। इसी का फायदा उठाते हुए जगह-जगह कम्प्यूटर सेंटर लोगों ने संचालित कर रखे है।
इन फर्जी सेंटरों पर कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर छात्र-छात्राओं का आर्थिक शोषण किया जा रहा है। सड़कों पर बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर पंपलेट, बैनर आदि पर कम्प्यूटर सेंटरों की विशेषताएं लिखी है। वहीं कई सेंटरों के होर्डिग्स में तो जॉब देने की गारंटी भी है। इन विज्ञापनों को पढ़कर छात्र-छात्राओं की भीड़ कम्प्यूटर सेंटरों पर पहुंचती है। यदि जांच कर देखा जाये तो कई कम्प्यूटर सेंटर तो ऐसे हैं जिनका किसी भी संस्था से सम्बन्ध ही नहीं है।
इन सेंटरों पर कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर सिर्फ छात्रों को गुमराह किया जा रहा है। क्षेत्र में इन दिनों कम्प्यूटर सेंटरों की बाढ़ आ चुकी है। इसके अलावा कुछ कम्प्यूटर सेंटर ऐसे भी है जहां सेंटर पर थोड़ा बहुत सीख चुके छात्र ही शिक्षक बन बैठे हैं। ऐसे अधूरे ज्ञान वाले शिक्षक दूसरे को क्या सिखाते होंगे यह तो खुद ही समझा जा सकता है !! लेकिन इन अवैध संचालकों पर प्रशासन की नजर ही नहीं पहुंच रही है। ऐसे में आये दिन होने वाले फर्जीवाडो से इन छात्र-छात्राओं को बचाने वाला कोई नहीं दिखता !
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प्रशासन से यही उम्मीद की जा रही है कि वह अपनी नींद से जागे और जल्द से जल्द उचित करवाई कर इन छात्र-छात्राओं के भविष्य को बर्बाद होने से बचा लें !
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जागो सोने वालों ...

रविवार, 29 अगस्त 2010

मेजर ध्यानचंद को भी मिले भारत रत्न !!


हाकी के जादूगर ध्यानचंद की उपलब्धियों को पेले, माराडोना और डान ब्रैडमेन के समकक्ष बताते हुए पूर्व दिग्गजों ने उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिए जाने की मांग की है। उनका यह भी कहना है कि भारतीय हाकी की सुध लेकर ही इस महान खिलाड़ी को सच्ची श्रृद्धांजलि दी जा सकती है।
तीन ओलंपिक [1928, 1932 और 1936] में स्वर्ण पदक जीतने वाले करिश्माई सेंटर फारवर्ड ध्यानचंद को पद्मभूषण से नवाजा जा चुका है हालांकि हाकी समुदाय का कहना है कि उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें 'भारत रत्न' मिलना चाहिए। अपने पिता को ध्यानचंद के साथ खेलते देख चुके पूर्व ओलंपियन कर्नल बलबीर सिंह ने कहा, 'यह दुख की बात है कि उनकी उपलब्धियों को भुला दिया गया है जबकि फुटबाल में जो स्थान पेले, माराडोना का या क्रिकेट में डान ब्रैडमेन का है, दद्दा ध्यानचंद का हाकी में वही दर्जा है। भारत में किसी खिलाड़ी का किसी खेल में इतना योगदान नहीं रहा होगा।'
वहीं 'चक दे इंडिया' फेम पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मीर रंजन नेगी ने कहा, 'लगातार पतन की ओर अग्रसर भारतीय हाकी की सुध लेकर ही उन्हें श्रृद्धांजलि दी जा सकती है।' उन्होंने कहा, 'आने वाली पीढि़यों को उनकी उपलब्धियों से वास्ता कराना जरूरी है और इसके लिए सत्तासीन लोगों को भारतीय हाकी की सुध लेनी होगी।' जीवन के आखिरी दौर में मुफलिसी से जूझते रहे ध्यानचंद पुरस्कारों के पीछे कभी नहीं रहे। उनके बेटे और पूर्व ओलंपियन अशोक कुमार ने बताया, 'उन्हें कभी कुछ ना मिलने का असंतोष नहीं रहा।'
म्युनिख [1972] और मांट्रियल ओलंपिक [1976] खेल चुके अशोक ने कहा, 'आखिरी दिनों में पूरा घर उनकी महज 400 रुपये मासिक पेंशन पर गुजारा करता रहा। घर में कुछ नहीं था लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली। वह कहते थे कि हमारा काम मैदान पर खेलना है, पुरस्कार मांगना नहीं।' उन्होंने कहा, '1936 ओलंपिक में जर्मनी की हार के बाद हिटलर ने उनसे पूछा कि तुम कौन हो तो उन्होंने कहा कि सेना में सूबेदार। हिटलर ने उन्हें जर्मनी आने और सेना में उच्च पद देने का न्यौता दिया जो उन्होंने ठुकरा दिया। राष्ट्रीयता की यह भावना मिसाल थी जो उनमें कूट कूटकर भरी थी।'
मांट्रियल ओलंपिक में भारत के सातवें स्थान पर रहने से दुखी ध्यानचंद ने एम्स में डाक्टर से कहा, 'भारतीय हाकी मर रही है। इसके बाद वे कोमा में चले गए और 1979 में उन्होंने दम तोड़ दिया।' अशोक ने कहा, 'हम मैच हारने के बाद उनसे मुंह छिपाते फिरते थे। वह आखिरी दिनों में भारतीय हाकी की दशा से काफी दुखी थे और दुख की बात तो यह है कि आलम आज भी कमोबेश वही है।' कर्नल बलबीर ने कहा, 'उन्होंने यूरोपीय हाकी का भी स्तर देखा था और वे भारतीय हाकी की दशा भी देख रहे थे। हम अतीत की उपलब्धियों पर गर्व करके खुश होते रहे लेकिन भविष्य की सुध नहीं ली और आज भी क्या बदला है।'
ध्यानचंद से कई मौकों पर मिल चुके कर्नल बलबीर ने कहा, 'इतने महान खिलाड़ी होने के बावजूद दंभ उन्हें छू तक नहीं गया था और वह हमेशा कहते थे कि उनके साथी खिलाड़ियों ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है।' उन्होंने कहा, 'वह कभी गेंद को एक सेकेंड से ज्यादा पकड़कर नहीं रखते थे और टीम वर्क की एक मिसाल थे। मुझे फख्र है कि मैंने उसी पंजाब रेजिमेंट की कमान संभाली जो कभी मेजर ध्यानचंद के हाथ में थी।' वहीं नेगी ने ध्यानचंद को अपेक्षित पुरस्कार और सम्मान नहीं मिल पाने की बात दोहराते हुए कहा, 'क्रिकेट के दीवाने इस देश में हाकी को भले ही राष्ट्रीय खेल बना दिया गया हो लेकिन उसे कभी उसका दर्जा नहीं मिल पाया।' उन्होंने कहा, 'सही मायने में तो ध्यानचंद को बरसों पहले भारत रत्न मिल जाना चाहिए था लेकिन हाकी की सुध किसे है। इसके लिए पावरफुल लोगों को पहल करनी होगी। हम खिलाड़ी कुछ नहीं कर सकते।' 
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अगर किसी प्रधानमंत्री को भारत रत्न दिया जा सकता है ........ किसी प्रधानमंत्री के घुटनों को बदलने वाले डाक्टर को भारत रत्न दिया जा सकता है ...........तो फिर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया अब तक ??
वह कौन से मानक है जिन से सरकार यह निर्धारित करती है कि किस को कौन सा सम्मान देना है  और कब देना है ?? 
कौन है जो जवाब देगा इस का ??
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जागो सोने वालो ...

बुधवार, 18 अगस्त 2010

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस :- साजिशो के दरमियाँ - कल भी और आज भी !!

आज १८ अगस्त है .........आपका सवाल होगा तो क्या ख़ास है इस दिन में ........तो साहब आज के ही दिन एक बहुत एक बहुत बड़ी पहेली शुरू हुयी थी .........जिस का आजतक कोई भी जवाब नहीं मिल पाया है !
बताया जाता रहा है कि आज के ही दिन यानि के १८ अगस्त १९४५ के दिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हुई थी। 

वैसे यह सच है या नहीं इस पर आज तक बहस चल रही है ! 

जो भी हो इस से नेता जी के भारत देश की आज़ादी के लिए किये गए योगदान पर कोई फर्क नहीं पड़ता ! 

मैं उन लोगो में से हूँ जो यह मानते है कि आज़ादी केवल किसी ' एक ' के कारण नहीं मिली और ना ही अहिंसा से मिली है बल्कि पूरे भारत की जनता की कोशिशो और खुनी बलिदानों का नतीजा है !
नेता जी की इस तथाकथित 'मौत' के पीछे क्या कारण थे इस से जुडी हुयी कुछ बातों पर लिखी एक पोस्ट का लिंक नीचे दे रहा हूँ .............हो सके तो जरूर पढियेगा और जानिये कि हम लोगो को क्या क्या नहीं बताया गया उनके बारे में .......एक सोची समझी साजिश के तहत !!! 

एक रिपोस्ट :- नेताजी की मृत्यु १८ अगस्त १९४५ के दिन किसी विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।

 

यहाँ आप सब के लिए एक और पोस्ट का भी लिंक दे रहा हूँ जिस में एक ऐसा चित्र है जो आप सब को चौंका देगा !!

 

नाज़-ए-हिन्द सुभाष की विशेष कड़ी: नेहरूजी के पार्थिव शरीर के पास खड़ा यह भिक्षु कौन है?

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अब फैसला ..............आप सब पर छोड़ता हूँ .......

जागो सोने वालो ...

रविवार, 15 अगस्त 2010

हमें नाज़ है आप सब पर !!




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कोई हमारे और आपके लिए इस देश की सीमा पर जाग रहा है ताकि हम और आप चैन से सो सकें .......... अपने अपने परिवारों के साथ रह सकें .......... खुद को आज़ाद कह सकें !! 
आज के दिन आईये हम भी जागे और कहें उन सब से .........हमें नाज़ है आप सब पर !! 
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जागो सोने वालों ...
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आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं ! 
जय हिंद !! 

सोमवार, 26 जुलाई 2010

विजय दिवस पर विशेष :- नहीं भुलने चाहिए कारगिल युद्ध के सबक

भारत और पाकिस्तान के बीच दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र में हुए कारगिल युद्ध के बारे में कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हमने इसके सबक को गंभीरता से लिया होता तो मुंबई पर  26 /11 को हुए हमले जैसे हादसे नहीं हुए होते। और रक्षा मामलों में हमारी सोच ज्यादा परिपक्व होती।
कारगिल युद्ध के महत्व का जिक्र करते हुए रक्षा विश्लेषक एवं नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन के निदेशक सी उदय भास्कर ने कहा कि यह युद्ध दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच हुआ। यह युद्ध चूंकि मई 1998 में पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद हुआ था, लिहाजा पूरी दुनिया की निगाहें इस पर टिकी थी और भारत ने इसमें स्वयं को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति साबित किया।
भास्कर ने एक बातचीत में कारगिल विजय को भारत की सामरिक जीत करार देते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में इसके परिणामस्वरूप दो बातें सामने आईं। पहली तो पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय साख विशेषकर आतंकवाद को शह देने के कारण काफी खराब हुई। दूसरा कारगिल युद्ध के बाद भारत और अमेरिका के रिश्तों में मधुरता का एक नया दौर शुरू हुआ।
कारगिल युद्ध से सीखे सबक के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस युद्ध को 11 साल बीतने के बाद भी हमने इससे कोई सबक नहीं लिया। इस तरह के युद्ध लड़ने के लिए सेना को जिस तरह के ढांचे की जरूरत है, वह आज तक मुहैया नहीं हो सकी है। इसका कारण बहुत हद तक लालफीताशाही है। भास्कर ने कहा कि कारगिल युद्ध की जांच के लिए समितियां बनीं, लेकिन उनकी सिफारिशों पर न तो पूर्व की राजग सरकार और न ही मौजूदा संप्रग सरकार ने कोई गंभीर काम किया। भास्कर ने भी इस बात को स्वीकार किया कि कारगिल युद्ध का एक बहुत बड़ा कारण हमारी खुफिया तंत्र की विफलता था। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध में हुई गलती से हमने कोई सबक नहीं लिया और इसी कारण मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले हुए। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि मुंबई हमला 'समुद्री कारगिल' था। रक्षा विशेषज्ञ और इंडियन डिफेंस रिव्यू पत्रिका के संपादक भरत वर्मा के अनुसार कारगिल युद्ध से मुख्य तीन बातें सामने आईं। राजनीतिक नेतृत्व द्वारा निर्णय लेने में विलंब, खुफिया तंत्र की नाकामी और रक्षा बलों में तालमेल का अभाव। उन्होंने कहा कि कारगिल के सबक को यदि हमनें गंभीरता से नहीं लिया तो मुंबई जैसे आतंकी हमले लगातार जारी रहेंगे।
उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन हमारी जमीन में अंदर तक घुस आया, लेकिन हमारे राजनीतिक नेतृत्व ने पाकिस्तान में स्कार्दू में प्रवेश कर घुसपैठियों की आपूर्ति को रोकने का निर्णय नहीं किया। यदि हमारा नेतृत्व यह फैसला करता तो इसके दूरगामी परिणाम होते, क्योंकि हम दुश्मन की जमीन में प्रवेश कर जाते और यह उसके लिए आगे तक एक सबक साबित होता, लेकिन हमारे नेतृत्व ने ऐसा नहीं किया और तर्क दिया कि पड़ोसी देश की सीमा में घुसने से युद्ध और लंबा खिंच जाएगा। वर्मा ने कहा कि कारगिल युद्ध के दौरान तीनों सेनाओं के बीच तालमेल का अभाव भी देखा गया, जिसके कारण वायुसेना का हस्तक्षेप थोड़ी देर से हुआ। अगर यह काम पहले हुआ होता तो मरने वाले सैनिकों की संख्या कम होती। कारगिल युद्ध के बारे में बनाई गई समिति की रिपोर्ट की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसकी करीब 2,000 पृष्ठों की रिपोर्ट का भी हश्र लगभग वही हुआ जो अन्य जांच समितियों का होता है। इस पर कोई गंभीर बहस नहीं की गई। सेना में हथियारों की खरीद प्रक्रिया सहित स्थितियां आज भी जस की तस हैं।
वर्मा ने कहा कि आज इस बात की बेहद जरूरत है कि हम अपनी शिक्षा में भारत के आधुनिक युद्धों के इतिहास को पढ़ाएं, ताकि आने वाली पीढ़ी सैन्य रणनीतियों के बारे में बुनियादी बातें समझ सके। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों के विपरीत आज हमारे राजनीतिक नेतृत्व में ऐसे लोगों का बेहद अभाव है जो सैन्य रणनीतियों के बुनियादी तथ्यों से अवगत हों। उन्होंने कहा कि जब हमारे बच्चे पानीपत की लड़ाई के बारे में पढ़ सकते हैं तो भारत-पाक या भारत-चीन युद्ध के बारे में उन्हें जानकारी क्यों नहीं दी जानी चाहिए।
रक्षा विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी के अनुसार कारगिल युद्ध का सबसे बड़ा सबक यह है कि पाकिस्तान हर उस स्थिति का फायदा उठाने से पीछे नहीं हटेगा, जहां सुरक्षा या सैन्य तैयारियों में कमी है। उन्होंने कहा कि कारगिल के बाद पाक समर्थित आतंकवादियों के आत्मघाती हमलों में काफी वृद्धि हो गई है। चेलानी ने कहा कि यह युद्ध हमारी धरती पर लड़ा गया और हमने युद्ध जीतकर अपने सैन्य साम‌र्थ्य का पूरी दुनिया को परिचय दिया। उन्होंने कहा कि यह कहना चीजों का बहुत सरलीकरण होगा कि कारगिल युद्ध राजनीतिक नेतृत्व द्वारा फैसले लेने में देरी और खुफिया तंत्र की विफलता के कारण हुआ।
उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान के बीच मई से 26 जुलाई 1999 के बीच जम्मू-कश्मीर के बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्र कारगिल में युद्ध हुआ था। इस युद्ध के शुरू होने का कारण पाक सेना द्वारा समर्थित घुसपैठियों का कारगिल में नियंत्रण रेखा के आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा करना था।
शुरू में भारतीय सेना ने जब घुसपैठियों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई शुरू की तो उसे थोड़ी कठिनाई हुई, क्योंकि दुश्मन उससे ऊँची चोटियों पर बैठे थे, लेकिन बाद में वायुसेना की मदद से भारतीय सेनाओं ने पाक सेना को मुहंतोड़ जवाब दिया और यह पूरा क्षेत्र घुसपैठियों से खाली करवा लिया। पाकिस्तान भारतीय सेना की कार्रवाई से इतना घबरा गया कि उसे अमेरिका जाकर अपने आका से गुहार करनी पड़ी कि युद्ध रोकने के लिए भारत से कहा जाए। कारगिल युद्ध में भारतीय पक्ष की ओर से मारे गए लोगों की आधिकारिक संख्या 5,33 थी, जबकि पाकिस्तानी पक्ष की ओर से करीब 4,000 लोगों के मारे जाने का अनुमान लगाया गया। 

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जागो सोने वालों...!!

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

एक सवाल - क्यों कहें हम इन्हें माननीय?

इन्हें हम माननीय कहते हैं। कहें भी क्यों न, ये सरकार के समक्ष जनता का प्रतिनिधित्व जो करते हैं। जनता और सरकार के बीच एक मजबूत कड़ी बनकर आम आदमी के लिए काम करते हैं। इनके हर कदम सराहनीय और अनुकरणीय होते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से हमारे सांसदों और विधायकों की जो छवि सामने आई है, क्या वह इनके माननीय होने पर सवालिया निशान नहीं लगाती ??

कभी सदन में माइक उखाड़ना तो कभी कुर्सी-मेजें तोड़ना। कई बार तो आपस में हाथापाई कर इन लोगों ने सदन को अखाड़ा तक बना डाला। बुधवार को तो हद ही हो गई। बिहार के कुछ माननीयों ने तो स्पीकर पर चप्पल तक फेक दिया। अब प्रश्न यह उठता है कि शर्मसार करने वाली इस घटना के बाद कोई भला इन्हें माननीय क्यों कहे...??

बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और गोवा में जो पॉलिटिकल 'ड्रामा' चल रहा है, उसे राष्ट्रीय स्तर पर सदन में अक्सर चलने वाले 'नाटक' से जोड़ कर देखा जा सकता है। देश की सबसे बड़ी पंचायत में होने वाले हंगामे से राज्य स्तर पर भी नेता खूब 'प्रेरणा' लेते हैं। जनता के प्रति जवाबदेह इन नेताओं की ऐसी करतूत से उनका भले ही कुछ न बिगड़े लेकिन गरीबी, महंगाई की मारी जनता की गाढ़ी कमाई जरूर पानी में बह रही है।

रुपए की बर्बादी

एक संस्था द्वारा कराए गए अध्ययन के आकड़े बताते हैं कि संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर 25,000 रुपये से भी ज्यादा [यानी एक घटे में 15 लाख रुपये] खर्च होते हैं. इस बार की बात करें तो बजट सेशन 385 घंटे का तय हुआ था। इनमें से लोकसभा में 70 घंटे [निर्धारित घंटों का 36%] बर्बाद हुआ। वहीं राज्यसभा की बात करें तो लगभग 45 घंटे यानी निर्धारित घंटों का 28% समय बेकार गया। लोकसभा में 138 घंटे और राज्यसभा में 130 घंटे को इस्तमाल किया गया। इस तरह इस सत्र में कुछ 117 घंटों का समय माननीयों के व्यवधान के कारण बर्बाद हो गया। अध्ययन के मुताबिक इस दौरान लगभग 18 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। एक अनुमान के मुताबिक विधानसभाओं के मामले में भी काफी अधिक खर्च आता है। यानी भ्रष्टाचार के विरोध के नाम पर नाटक करने वाले केवल कुछ विधायकों की करतूत के चलते जनता के करोड़ों रुपये पानी में गए।

जनता बदहाल

यह हाल उस देश के सांसदों का है, जहा के लोगों की प्रति व्यक्ति सालाना आमदनी 38000 रुपये है। जिस बिहार में यह ड्रामा चल रहा है, वहा लोगों की प्रति व्यक्ति सालना आय तो 10000 रुपये से भी कम है।

माल-ए-मुफ्त

सासद-विधायक हंगामा करके ही जनता के पैसे में आग नहीं लगाते हैं, वे उनके पैसे खर्च करने में भी ज्यादा दिमाग नहीं लगाते, ताकि पैसे का अधिकतम सदुपयोग हो सके। संसद में बजट से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए दिए जाने वाले समय का औसत वर्ष 1952 से 1979 के बीच 23% था। 1980 के बाद के वर्षो में यह औसत 10% पर पहुंच गया है। 2004 में तो वित्त विधेयक बिना चर्चा के पास हो गया।

खुद पर खर्च

जनता का पैसा बिना सोचे-समझे खर्च करने का नतीजा यह रहा कि सासद अपने ऊपर ही खर्च बढ़ाने में खूब आगे रहे। 1993-94 में प्रति सासद सरकारी खर्च 1.58 लाख रुपये बैठता था। दस साल [2003-04] में ही यह आकड़ा 55.34 लाख पर पहुंच गया। यानी 3,400% का इजाफा! इसी अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकाक में 500% और सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह में करीब 900% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। पिछले पाच सालों में भी सासदों पर सरकार का खर्च बढ़ा ही है और अब तो सासद अपनी तनख्वाह 80 हजार रुपये प्रति महीना करवाने वाले हैं। यह हाल तब है जब सदन में उनका काम लगातार घट रहा है। 1980 में सदन का सत्र औसतन 143 दिन चलता था, जो 2001 में 90 दिन पर आ गया था।

अगर आप चौदहवीं लोकसभा से जुड़े इन तथ्यों पर गौर फरमाए तो हकीकत जानकार आश्चर्य में पड़ जाएंगे।

ø 2008 में लोकसभा की बैठक मात्र 46 दिन हुई। इतिहास में सबसे कम लोकसभा की कार्यवाही चलाने में सरकार के 440 करोड़ रुपए खर्च हुए।

ø काम की इतनी हड़बड़ी रही कि 17 मिनट में आठ बिल पारित कर दिए गए वह भी बिना किसी बहस के।

ø राज्यसभा ने भी जल्दबाजी दिखाई और 20 मिनट में तीन बिल निपटा दिए गए।

ø जनता के 56 नुमाइंदों ने पाच साल के पूरे कार्यकाल में संसद में एक सवाल पूछने की भी जहमत नहीं उठाई।

ø 67 सासद ऐसे थे, जिन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में 10 या इससे भी कम सवाल पूछे।

ø इस पर भी पैसे लेकर सवाल पूछने का मामला सामने आ गया और दस सासदों को बर्खास्तगी झेलनी पड़ी।

यह कैसी आजादी

खास बात यह है कि नेता यह सब जनता और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर करते हैं। संविधान की धारा 19 के तहत तमाम नागरिकों के अभिव्यक्ति के अधिकार को मूल अधिकार का दर्जा दिया गया है। पर इसमें यह भी कहा गया है कि अभिव्यक्ति संविधान के दायरे में होनी चाहिए। नेता अक्सर इसकी अनदेखी करते हैं। संसद में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत संरक्षित किया गया है।

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जागो सोने वालों...

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

आखिर कब तक चलेगा यह सब ??

लापरवाही के चलते यहां खुले में रखा करोड़ों रुपये का गेहूं बारिश से बर्बाद हो गया। स्थानीय जिलाधिकारी ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

भारतीय खाद्य निगम [एफसीआई] के हापुड़ डिपो में पंजाब से आई गेहूं की ढाई लाख बोरियां खुले में रखी थी जो रविवार और सोमवार को हुई बरसात में भींगने से खराब हो गई। निगम के हापुड़ डिपो में पंजाब से 13 स्पेशल मालगाड़ियों से लाए गए ढ़ाई लाख गेहूं बोरे खुले में छोड़ दिए गए |

कुछ ऐसी ही खबर गुजरात के वलसाड से भी आ रही है ........ वहाँ भी करोड़ों रुपये का गेहूं बारिश में रखा हुआ है और सरकार चैन से सो रही है !

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कितनी बढ़िया बात है ना ....................जिस देश में जहाँ एक दिन पहले बंद रखा गया था बढती हुयी कीमतों के विरोध में .............उसी देश आज करोड़ों रुपये का गेहूं बारिश से बर्बाद हो गया और अब बात हो रही है इस पर जांच करवाने की !!

आपको क्या लगता है यह पहली बार हुआ है ................ नहीं साहब नहीं ......... पिछले साल भी कोलकाता के खिदिरपुर बंदरगाह में लाखों टन दाल सड़ गई थी |

देखें :-

बंदरगाह में सड़ गई लाखों टन दाल

क्या कर लिया था तब किसी ने जो अब कुछ किया जायेगा ! पर सवाल यह पैदा होता है सरकार कब तक जनता के खून पसीने की कमाई को युही बर्बाद करती रहेगी ??

आखिर कब हम लोगो को वह सब मिलेगा जिस का सपना लगातार ६३ सालो से देख रहे है हम ??

कब आखिर कब ???

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जागो सोने वालो...

मंगलवार, 29 जून 2010

अब क्या करोगे, राज भाई ??


महाराष्ट्र नव निर्माण सेना [मनसे] के प्रमुख राज ठाकरे उत्तर भारतीयों से मराठी सीखने को कहते हैं, जबकि उनका बेटा अमित मास मीडिया कोर्स अंग्रेजी में करने की तैयारी में है। वह भी तब, जबकि यह कोर्स मराठी में भी उपलब्ध है।

ठाकरे अपने करीब 50 पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ गुरुवार को अमित का एडमीशन बैचलर ऑफ मास मीडिया [बीएमएम] के अंग्रेजी माध्यम में कराने के लिए माटुंगा स्थित रुइया कॉलेज पहुंचे थे।

सूत्रों के मुताबिक, 'मराठी को उसका हक दिलाने की बात करने वाले ठाकरे अपने बेटे के साथ सीधे प्रिंसिपल के केबिन में पहुंचे। वह अपने बेटे का एडमीशिन अंग्रेजी माध्यम में चाहते हैं।

उन्होंने बीएमएम में पढ़ाए जाने वाले विषयों के बारे में भी पूछा।' ठाकरे के कॉलेज आने की पुष्टि प्रिंसिपल सुहास पड़नेकर ने भी की। उन्होंने इस सत्र से बीएमएम कोर्स मराठी में शुरू किए जाने की भी बात कही।

ठाकरे की पत्नी शर्मिला का कहना है, 'वे कई कॉलेजों में एडमीशन के लिए जा रहे हैं। लेकिन अमित बीएमएम किस भाषा में पढ़ेगा इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।' इस बीच मनसे के प्रवक्ता ने कहा ठाकरे रुइया कॉलेज एक पिता की हैसियत से गए थे, राजनेता की तरह नहीं |

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हम तो कहीं के नहीं रहे ..................... अब क्या कहेगे "मराठी मानुष" से ? कैसे रोकेगे उत्तर भारतीय लोगो को महाराष्ट्र में आने से और हिंदी में बोलने से ?

"घर को आग लग गयी घर के चिराग से..............."

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देख लिया राज भाई ............हो गए ना आप भी मजबूर ?? भाषा कोई भी बुरी या भली नहीं होती ! धर्मं कोई भी बुरा या भला नहीं होता ! यह तो हमारी सोच का खेल है जो कभी कभी भली चीजो को भी बुरा बना देती है और बुरी को भली ! सो अपनी सोच को बदलो और जागो ..............!!

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जागो सोने वालों ...

शनिवार, 26 जून 2010

भाई साहब गिफ्ट पसंद आया ?

और क्या हाल है ...........सब मस्त .............अरे..... वह गिफ्ट पसंद आया है नहीं ??


क्या कहा .................कौन सा गिफ्ट !!??

अरे वही जो आज मिला है ................

नहीं समझे ...........

हद करते हो आप भी ...............

आज कौन सा दिन है ........??

नहीं याद ..............कोई बात नहीं ............मैं हूँ ना ............अभी बताता हूँ !

आज से ठीक ३५ साल पहले तब की 'सरकार' ने देश भर में इमरजेंसी लगाई थी और आज के दिन अब की 'सरकार' ने उस इमरजेंसी की वर्षगाँठ पर जनता के बजट पर इमरजेंसी लगाई है या यह कहे कि जनता को एक 'महँगा' गिफ्ट दिया है |

तो क्या मैं गलत पूछ रहा हूँ कि गिफ्ट पसंद आया या नहीं !! नहीं ना |
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यह तो शायद सरकार भी नहीं जानती कि वह कर क्या रही है और हो क्या रहा है ?

"कांग्रेस का हाथ जनता के साथ" या यह कहे कि यह हाथ जनता के गाल पर पड़ता है हर बार |

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जागो सोने वालों................

रविवार, 20 जून 2010

पापा हार गए…


पापा हार गए…



रात-ठण्ड की


बिस्तर पर


पड़ी रजाईयों को अखाडा बनाता


मेरा छोटा बेटा पांच बरस का |


अक्सर कहता है -


पापा ! ढिशुम-ढिशुम खेले ?


और उसकी नन्ही मुठ्ठियों के वार से मै गिर पड़ता हूँ … धडाम


वह खिलखिला कर खुश हो कर कहता है .... ओ पापा हार गए |


तब मुझे


बेटे से हारने का सुख महसूस होता है |


आज, मेरा वो बेटा जवान हो कर ,


ऑफिस से लौटता है, फिर


बहू की शिकायत पर, मुझे फटकारता है


मुझ पर खीजता है,


तब मै विवश हो कर मौन हो जाता हूँ


अब मै बेटे से हारने का सुख नहीं,


जीवन से हारने का दुःख अनुभूत करता हूँ


सच तो ये है कि


मै हर एक झिडकी पर तिल तिल मरता हूँ |


बेटा फिर भी जीत जाता है,


समय अपना गीत गाता है …


मुन्ना बड़ा प्यारा, आँखों का दुलारा


कोई कहे चाँद कोई आँखों का तारा


- स्व। ओम व्यास ‘ओम’

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आज के दिन आइये एक संकल्प लें कि हमारे रहते कभी पापा को यह नहीं कहना पड़ेगा कि................. "मैं हार गया !"

आप सभी को पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎँ !!

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जागो सोने वालों ...