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शनिवार, 26 सितंबर 2009

उनके लिए तो इसी धरती पर अगर नरक कहीं है , तो यहीं है, यहीं है, यहीं है !!

अगर नरक कहीं है , तो यहीं है, यहीं है, यहीं है !!

हिमाचल प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में आज भी महिलाओं के लिए वो ३ दिन नर्क के बराबर हो जाते है जब वह मासिक धर्म से गुजर रही होती हैं। इस दौरान महिला को तीन रात गऊशाला या फिर भाड़ [औजार रखने का खुला टूटा-फूटा पुराना कमरा] में शरण लेनी पड़ती है। मौसम सर्द हो या गर्म ३ कठिन रातें अकेले में उसे औरत होने का एहसास करवाती हैं।
प्रदेश के जिला मंडी की चौहारघाटी, स्नोर बदार, कमरूघाटी, जंजैहली, करसोग, चच्योट, कांगड़ा के छोटा व बड़ा भंगाल में आज भी इस तरह का दंड महिलाओं को ३ दिनों तक भुगतना होता हे। इसके साथ-साथ शिमला के डोडारा क्वार, सिरमौर, किन्नौर, लाहुल-स्पीति के कई क्षेत्रों समेत कुल्लू की लग घाटी में भी ऐसा ही हो रहा है।
मान्यता है कि इस अवस्था में महिला किसी देव स्थल, घर के चूल्हे-चौके से छू गई तो घर से देवताओं का वास उठ जाएगा कई प्रकार के क्लेश उत्पन्न होंगे। इस दौरान महिलाओं को 3 दिन तक अलग से बर्तन में दूर से खाना परोसा जाता है, बिस्तर के नाम पर एक अदद फटा-पुराना कंबल, तलाई या फिर बिछाने के लिए धान की घास दी जाती है। तीसरे दिन उक्त महिला को घर से बाहर एकांत में नहलाकर पंचगव्य [पंचामृत] पिलाकर घर में प्रवेश दिया जाता है। कहीं-कहीं इसके बाद भी पांच या फिर सात दिन तक देव स्थलों पर जाने की मनाही रहती है।
विश्व के प्राचीनतम लोकतंत्र के रूप में विख्यात कुल्लू के मलाणा में औरतों के लिए परिस्थितियां राज्य के बाकी हिस्सों से विकट हैं। शेष हिमाचल के कुछ हिस्सों में तो औरतों को मासिक धर्म के दौरान पशुशालाओं में रखा जाता है। परंतु मलाणा में तो औरतों को गांव से बाहर रखा जाता है। इतना ही नहीं किसी औरत की प्रसूति होने पर तो उसे तेरह दिनों तक गांव से बाहर रखा जाता है।

अवैज्ञानिक है यह मान्यता

स्त्री रोग विशेषज्ञ डाक्टर हितेंद्र महाजन ने बताया कि औरत जननी है तथा मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। जिस दौरान 'वेस्ट ब्लड' बाहर निकलता है जिससे कोई संक्रमण नहीं फैलता है। औरतों को माहवारी के दौरान घर से बाहर रखना अन्याय है। यह मान्यता पूरी तरह अवैज्ञानिक है।

क्या कहेता है राज्य महिला आयोग ?

इस बारे में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष अंबिका सूद ने कहा कि अभी तक उनके पास ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है। उन्होंने कहा कि आयोग अपनी मर्जी से किसी भी प्रकार के रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
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सच बताये, इन महिला आयोगों में कौन सी महिलायों को जगह दी जाती है ?? वो जो सच में महिलायों का हित देखती है या चंद वो महिलाये जो सिर्फ मीडिया के सामने ही सज धज के महिलायों के पक्ष में नारे लगा अपनी अपनी imported गाडियों में बैठ चली जाती है ? कब इन्साफ मिलेगा इन महिलायों को जो अपने औरत होने की सजा सी पा रही है ?  
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 अंबिका जी , सिर्फ़ AC कमरों में बैठ लम्बी लम्बी डींगे हांकने से कुछ नहीं होने का, अगर सच में इन महिलायों का हित चाहती है तो 'Grass Root Level ' पर जा कर काम करें | जिन रीति-रिवाजों से इंसानियत पर दाग लगते हो उनके खिलाफ जाने में कोई जुर्म नहीं होता ....जा कर समझाए लोगो को  कि औरत जननी है तथा मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। आगे आपकी मर्ज़ी ..............अपनी तो आदत है सो कहेते है ...........जागो सोने वालो ........





3 टिप्‍पणियां:

  1. ह्रदय विदारक समाचार...इतना सब सामने होते देख कर भी हम अपने आपको सभ्य कहते हैं...शर्म शर्म...
    नीरज

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  2. हिमाचल और खासकर मलाणा में तो छुआछूत भी बहुत है, किसी ग्रामीण के कंधे पर यूँ ही हाथ भी रख कर दिखा दो तो मान जाएँ, मलाणा में तो आप मंदिर या घर को गलती से छू भी लें तो आपकी पिटाई तय है, जुर्माने (शुद्धिकरण) की भारी रकम अदा करके ही आप छूट पाएंगे.

    यहाँ के लोग कबाइली मानसिकता के हैं, यह क्षेत्र चरस गांजे के कारोबार की राजधानी है, यहाँ हर किसी की जेब में किसी भी वक्त चरस मिल जायेगी, हर साल कई विदेशी यहाँ लापता हो जाते हैं या मार डाले जाते है तब सरकार क्या कर लेती है जो इस मामले में करेगी? यहाँ के अपने कड़े रीति रिवाज़ और मान्यताएं है, लोगों का कानून से ज्यादा उन्ही पर भरोसा है.

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  3. ये शर्मनाक बात है ..... आज २१ वी सदी में भी ऐसे अत्याचार होते हैं .......

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