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गुरुवार, 10 सितंबर 2009

भारतीय लोकतंत्र का कृत्रिम चेहरा

वर्षों पहले लोकतंत्र की परिभाषा करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था-ऐसा तंत्र जो आम लोगों का होता है, आम लोगों द्वारा संचालित होता है और आम लोगों के लिए होता है। हमारे देश की लोकसभा ऐसे ही आम लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, किंतु क्या स्वतंत्र भारत की पंद्रहवीं लोकसभा सचमुच आम कहे जाने वाले लोगों की प्रतिनिधि सभा है? 
इस बार की लोकसभा तो ऐसी नहीं दिखती। लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या साढ़े पांच सौ से कुछ कम होती है। इस बार जो सदस्य चुन कर लोकसभा में आए हैं उनमें 300 से अधिक करोड़पति हैं। पिछले लोकसभा में ऐसे सदस्यों की गिनती 154 थी। यदि लोकसभा के सदस्यों की संख्या को देश की समूची आर्थिकता का पैमाना मान लिया जाए तो यह कहा जा सकता है कि गत पांच वर्षो में इस देश के आम आदमी की आर्थिक स्थिति दो गुना अच्छी हो गई है, किंतु क्या ऐसा हुआ है? 
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा से कांग्रेस टिकट पर चुनकर आए लगदापति राजगोपाल सबसे समृद्ध संसद सदस्य हैं। इनके पास 295 करोड़ रुपये की संपत्ति है। दूसरे स्थान पर भी खामम्भ क्षेत्र से तेलगूदेशम पार्टी के सदस्य नागेश्वर राव हैं। इनके पास 173 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति है। हरियाणा में कुरुक्षेत्र से कांग्रेस टिकट पर चुने गए सदस्य नवीन जिंदल भी बहुत पीछे नहीं हैं। ये 131 करोड़ रुपये की संपत्ति के स्वामी हैं। भंडारा-गोंदिया से राष्ट्रवादी कांग्रेस के सांसद प्रफुल्ल पटेल 90 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। आंध्र प्रदेश के पेड़ापल्ली क्षेत्र से कांग्रेस टिकट पर चुने गए डा. जी विवेकानंद 73 करोड़ के मालिक हैं। दिवंगत मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के पुत्र जगनमोहन कांग्रेस के सांसद हैं और 72.8 करोड़ रुपये की संपत्ति उनके पास है।
पंजाब से शिरोमणि अकाली दल के टिकट पर चुनी गई सांसद हरसिमरन कौर के पास 60 करोड़ से अधिक की संपत्ति है। उनसे थोड़ा पीछे केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शरद यादव की पुत्री सुप्रिया सुले 50 करोड़ से अधिक की स्वामिनी कही जाती हैं। गौतम बुद्ध नगर, नोएडा से बसपा के सांसद सुरेंद्र सिंह नागर और बेंगलूर से जनता दल के सांसद एचडी कुमारस्वामी भी 50 करोड़ के आसपास की संपत्ति के मालिक हैं। प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) से कांग्रेस की ओर से विजयी राजकुमारी रत्ना सिंह यह नहीं मानतीं कि वह धनवान हैं, क्योंकि उनके पास केवल 67 करोड़ मूल्य की संपत्ति है। यह हैं दस सबसे अमीर सांसद, जिनमें 5 को कांग्रेस ने अपना टिकट दिया था। सबसे अधिक करोड़पति सांसद भी कांग्रेस के पास है। 300 में से 138 सांसद कांग्रेस के हैं। भाजपा के 58, सपा के 14 और बसपा के 13 सांसद करोड़पति हैं। 
लोकसभा के सदस्यों के संबंध में विचार करते समय एक बात और दृष्टव्य है। नई लोकसभा में 150 सांसद ऐसे हैं जिनकी पृष्ठभूमि आपराधिक है। पिछली लोकसभा में इनकी संख्या 128 थी। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों में 72 सदस्य ऐसे हैं जिनके विरुद्ध गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं। अपराधी पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाने में कोई भी राजनीतिक दल किसी दूसरे दल से पीछे नहीं है। इस बार कांग्रेस पार्टी के 206 सदस्यों में 41 सदस्य ऐसे हैं जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। औरों से अलग दल होने का दावा करने वाली भाजपा की स्थिति बहुत चौंकाने वाली है। इस बार भाजपा के टिकट से चुने गए 116 सासदों में से 42 लोग आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं, कांग्रेस से एक अधिक। आपराधिक रिकार्ड वाले व्यक्तियों को लोकसभा में भेजने के मामले में इन दो प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा दूसरे दल भी किसी से पीछे नहीं हैं। सपा के 36 प्रतिशत सांसदों की पृष्ठभूमि आपराधिक है। बसपा के टिकट पर जीतने वाले 29 प्रतिशत सदस्यों का रिकार्ड आपराधिक है।
चिंताजनक स्थिति यह है कि वर्तमान लोकसभा के अधिकांश सदस्य या तो करोड़पति हैं या अपराधी वृत्ति वाले हैं। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिन्होंने अपराध का सहारा लेकर अकूत धन एकत्र किया है अथवा धन का सहारा लेकर अपराध की दुनिया में प्रवेश किया है। इस देश की राजनीति में धन और अपराध की जुगलबंदी आज का कटु यथार्थ बन गई है। इस बार जो चुनाव हुए थे उसमें सभी राजनीतिक दलों ने आम आदमी की बहुत चर्चा की थी। आम आदमी को जीवन की मूलभूत सुविधाएं प्राप्त हों, उसका जीवन स्तर ऊपर उठे, इसके प्रति सभी दलों ने अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी, किंतु सभी जानते हैं कि भारत के आम आदमी की स्थिति कैसी है? एक अरब से अधिक की जनसंख्या वाले इस देश में आज भी लगभग 30 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। करोड़ों लोग झुग्गी-झोपडि़यों में रहते हैं। इनके सिर पर ठीक-ठाक छत नहीं है। ऐसे निर्धन देश में सांसद और विधायक यदि करोड़पति हैं तो वे आम लोगों के दु:ख-दर्द के कितने सहभागी बन सकेंगे, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
इस बार चुनाव आयोग ने यह अनिवार्य कर दिया था कि जिस व्यक्ति को चुनाव लड़ना है उसे अपनी चल-अचल संपत्ति को ब्यौरा देना होगा। वे लोग जो दूसरी या तीसरी बार चुनाव के मैदान में थे, उन्होंने 2004 में हुए चुनाव के समय के आंकड़े भी दिए थे। अधिसंख्य उम्मीदवारों की संपत्ति पिछले चुनाव से इस चुनाव तक दोगुनी हो गई थी। क्या आम आदमी की आर्थिक स्थिति में भी इस अवधि में इतनी प्रगति हुई है? एक समय नारा दिया गया था-गरीबी हटाओ। गरीबी तो बहुत थोड़ी हटी, अमीरी जरूर बहुत बढ़ी है। गरीब व्यक्ति जहां का तहां है। आज दाल-रोटी जैसा आम भोजन भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गया है। कैसी विडंबना है? देश के आम लोगों की सभा समझी जाने वाली लोकसभा करोड़पतियों से भरी हुई है और आम आदमी दरिद्रता के बोझ से पिसता जा रहा है।

                                  - डा. महीप सिंह [लेखक जाने-माने साहित्यकार हैं]

खैर, साहब हमे क्या .... हमे तो आदत है कहेने की ....जागो सोने वालो ....

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